Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 94

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 94/ मन्त्र 3
    सूक्त - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९४

    एन्द्र॒वाहो॑ नृ॒पतिं॒ वज्र॑बाहुमु॒ग्रमु॒ग्रास॑स्तवि॒षास॑ एनम्। प्रत्व॑क्षसं वृष॒भं स॒त्यशु॑ष्म॒मेम॑स्म॒त्रा स॑ध॒मादो॑ वहन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒न्द्र॒ऽवाह॑: । नृ॒ऽपति॑म् । वज्र॑ऽबाहुम् । उ॒ग्रम् । उ॒ग्रास॑: । त॒वि॒षास॑: । ए॒न॒म् ॥ प्रऽत्व॑क्षसम् । वृ॒ष॒भम् । स॒त्यऽशु॑ष्मम् । आ । ई॒म् । अ॒स्म॒ऽत्रा । स॒ध॒ऽमाद॑: । व॒ह॒न्तु॒ ॥९४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एन्द्रवाहो नृपतिं वज्रबाहुमुग्रमुग्रासस्तविषास एनम्। प्रत्वक्षसं वृषभं सत्यशुष्ममेमस्मत्रा सधमादो वहन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इन्द्रऽवाह: । नृऽपतिम् । वज्रऽबाहुम् । उग्रम् । उग्रास: । तविषास: । एनम् ॥ प्रऽत्वक्षसम् । वृषभम् । सत्यऽशुष्मम् । आ । ईम् । अस्मऽत्रा । सधऽमाद: । वहन्तु ॥९४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 94; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १. प्राण जीवात्मा के साथ रहते हैं-उपनिषद् के शब्दों में उसी प्रकार जैसेकि पुरुष के साथ छाया। छाया पुरुष का साथ नहीं छोड़ती, प्राण आत्मा का साथ नहीं छोड़ते, इसीलिए प्राणों को यहाँ 'सधमाद:' जीव के साथ आनन्दित होनेवाला कहा गया है। ये प्राण जितेन्द्रिय पुरुष को प्रभु के प्रति ले-चलनेवाले हैं, अत: 'इन्द्रवाहः' कहलाते हैं। शक्तिशाली होने से 'उनासः' हैं और अत्यन्त बढ़े हुए होने से सब उन्नतियों का कारण होने से 'तविषासः' कहे जाते हैं। २. इन प्राणों से कहते हैं कि (सधमाद:) = जीव को प्रभु के साथ आनन्द का अनुभव करानेवाले, (इन्द्रवाह:) = जितेन्द्रिय पुरुष को प्रभु के समीप प्राप्त करानेवाले, (उग्रास:) = तेजस्वी, (तविषास:) = प्रवृद्ध व बलसम्पन्न प्राणो! आप (एनम्) = इस जीव को (ईम्) = निश्चय से (अस्मत्रा) = हमारे समीप (आवहन्तु) = ले-आओ। उस जीव को जोकि (नपतिम्) = उन्नतिशील पुरुषों का प्रमुख है। (वज्रबाहुम्) = बाहुओं में क्रियाशीलतारूप वन को लिये हुए है। (उग्रम्) = तेजस्वी है। (प्रत्वक्षसम्) = अपनी बुद्धि को बड़ा सूक्ष्म बनानेवाला है। (वृषभम्) = शक्तिशाली होता हुआ सब पर सुखों का वर्षण करनेवाला है और इन गुणों को उत्पन्न करके प्राण इस साधक को प्रभु के समीप प्रास कराते हैं।

    भावार्थ - प्राणसाधना से जीव शक्तिशाली व सत्य के बलवाला और सूक्ष्मबुद्धि से युक्त होता है। इन तीनों बातों का सम्पादन करके यह प्रभु के समीप पहुँचता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top