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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 13/ मन्त्र 6
    सूक्त - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - सर्पविषनाशन सूक्त

    अ॑सि॒तस्य॑ तैमा॒तस्य॑ ब॒भ्रोरपो॑दकस्य च। सा॑त्रासा॒हस्या॒हं म॒न्योरव॒ ज्यामि॑व॒ धन्व॑नो॒ वि मु॑ञ्चामि॒ रथाँ॑ इव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒सि॒तस्य॑ । तै॒मा॒तस्य॑ । ब॒भ्रो: । अप॑ऽउदकस्य । च॒ । सा॒त्रा॒ऽस॒हस्य॑ । अ॒हम् । म॒न्यो: । अव॑ । ज्याम्ऽइ॑व । धन्व॑न: । वि । मु॒ञ्चा॒मि॒ । रथा॑न्ऽइव ॥१३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असितस्य तैमातस्य बभ्रोरपोदकस्य च। सात्रासाहस्याहं मन्योरव ज्यामिव धन्वनो वि मुञ्चामि रथाँ इव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    असितस्य । तैमातस्य । बभ्रो: । अपऽउदकस्य । च । सात्राऽसहस्य । अहम् । मन्यो: । अव । ज्याम्ऽइव । धन्वन: । वि । मुञ्चामि । रथान्ऽइव ॥१३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 13; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. (असितस्य) = काले फनियार साँप के (तैमातस्य) = गीले स्थान पर रहनेवाले [तिम आदीभावे] साँप के (बभ्रो:) = भूरे रंगवाले (च) = और (अपोदकस्य) = जल से दूर रहनेवाले साँप के विष को अहम् मै इसप्रकार (विमुञ्चामि) = छुड़ाता हूँ (इव) = जैसेकि (सात्रासाहस्य) = सबको पराजित करनेवाले (मन्यो:) = क्रोधी राजा के (रथान्) = रथों को समझदार मन्त्री घोड़ों से मुक्त करता है तथा (इव) = जैसे वह इस क्रोधी राजा के (धन्वन:) = धनुष से (ज्याम्) = डोरी को (अव) = दूर करता है । २. यहाँ प्रसङ्गवश यह संकेत स्पष्ट है कि कभी-कभी एक शक्तिशाली क्रोधी राजा जोश में आक्रमण की तैयारी करता है, समझदार मन्त्री को उसे शान्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। इसीप्रकार वैद्य सर्प विष की बाधा को समुचित प्रयोगों से दूर करने का प्रयत्न करे।

    भावार्थ -

    एक बैद्य तैमात, बभु व अपोदक सों की विष-बाधा को समुचित प्रयोगों द्वारा दूर करने के लिए यत्नशील हो।

     

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