अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 21/ मन्त्र 8
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
यैरिन्द्रः॑ प्र॒क्रीड॑ते पद्घो॒षैश्छा॒यया॑ स॒ह। तैर॒मित्रा॑स्त्रसन्तु नो॒ऽमी ये यन्त्य॑नीक॒शः ॥
स्वर सहित पद पाठयै: । इन्द्र॑: । प्र॒ऽक्रीड॑ते । प॒त्ऽघो॒षै: । छा॒यया॑ । स॒ह । तै: । अ॒मित्रा॑: । त्र॒स॒न्तु॒ । न॒: । अ॒मी इति॑ । ये । यन्ति॑ । अ॒नी॒क॒ऽश: ॥२१.८॥
स्वर रहित मन्त्र
यैरिन्द्रः प्रक्रीडते पद्घोषैश्छायया सह। तैरमित्रास्त्रसन्तु नोऽमी ये यन्त्यनीकशः ॥
स्वर रहित पद पाठयै: । इन्द्र: । प्रऽक्रीडते । पत्ऽघोषै: । छायया । सह । तै: । अमित्रा: । त्रसन्तु । न: । अमी इति । ये । यन्ति । अनीकऽश: ॥२१.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 8
विषय - छायया सह इन्द्रः
पदार्थ -
१. शत्रुओं का छेदन करनेवाली सेना यहाँ 'छाया' कही गई है। (इन्द्रः) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला सेनापति (छायया सह) = शत्रुओं का छेदन करनेवाली सेना के साथ (यैः पद्घोषैः) = जिन चरणाघात-जनित शब्दों के साथ [Marching में होनेवाले शब्दों के साथ] (प्रक्रीडते) = युद्ध-कीड़ा करता है, (तै:) = उन पद्घोषों से (अमी) = वे (ये) = जो (अनीकश:) = एक-एक टुकड़ी करके (यन्ति) = गति करते हैं, वे (न: अमित्रा:) = हमारे शत्रु (त्रसन्तु) = भयभीत हों।
भावार्थ -
सेनापति के साथ सेना के पादापात-जनित घोषों से ही शत्रु-सैन्य भयभीत होकर भाग जाए।
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