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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 21

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 21/ मन्त्र 11
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - बृहतीगर्भा त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त

    यू॒यमु॒ग्रा म॑रुतः पृश्निमातर॒ इन्द्रे॑ण यु॒जा प्र मृ॑णीत॒ शत्रू॑न्। सोमो॒ राजा॒ वरु॑णो॒ राजा॑ महादे॒व उ॒त मृ॒त्युरिन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यू॒यम् । उ॒ग्रा: । म॒रु॒त॒: । पृ॒श्नि॒ऽमा॒त॒र॒: । इन्द्रे॑ण । यु॒जा । प्र । मृ॒णी॒त॒ । शत्रू॑न् । सोम॑:। राजा॑ । वरु॑ण: । राजा॑ । म॒हा॒ऽदे॒व: । उ॒त । मृ॒त्यु: । इन्द्र॑: ॥२१.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यूयमुग्रा मरुतः पृश्निमातर इन्द्रेण युजा प्र मृणीत शत्रून्। सोमो राजा वरुणो राजा महादेव उत मृत्युरिन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यूयम् । उग्रा: । मरुत: । पृश्निऽमातर: । इन्द्रेण । युजा । प्र । मृणीत । शत्रून् । सोम:। राजा । वरुण: । राजा । महाऽदेव: । उत । मृत्यु: । इन्द्र: ॥२१.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 11

    पदार्थ -

    १. हे (मरुतः) = सैनिको! (यूयम्) = तुम (उग्रा:) = तेजस्वी हो, (पृश्निमातरः) = भूमि [पृश्नि] को अपनी माता समझनेवाले हो। (इन्द्रेण युजा) = शत्रुविद्रावक सेनापति के साथ मिलकर (शत्रून् प्रमृणीत) = शत्रुओं को कुचल दो। २. तुम्हारे राष्ट्र का (राजा) = शासक (सोमः) = बड़े सौम्य स्वभाव का व सोम [शक्ति] का पुञ्ज है। वह (राजा) = शासक (वरुण:) = प्रजा के कष्टों का निवारण करनेवाला है (उत) = और (इन्द्रः) = यह शत्रुविद्रावक सेनापति (महादेवः) = महान् विजिगीषु है [दिव् विजिगीषायाम], शत्रुओं को जीतने की कामनावाला है। यह तो शत्रुओं के लिए (साक्षात् मृत्यु:) = मौत ही है।

    भावार्थ -

    राष्ट्र के सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए विजिगीषु व शत्रुओं के लिए मृत्यभूत सेनापति के साथ मिलकर शत्रुओं को कुचलनेवाले हों।

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