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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 21

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 21/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - जगती सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त

    यथा॑ श्ये॒नात्प॑त॒त्रिणः॑ संवि॒जन्ते॒ अह॑र्दिवि सिं॒हस्य॑ स्त॒नथो॒र्यथा॑। ए॒वा त्वं दु॑न्दुभे॒ऽमित्रा॑न॒भि क्र॑न्द॒ प्र त्रा॑स॒याथो॑ चि॒त्तानि॑ मोहय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । श्ये॒नात् । प॒त॒त्रिण॑: । स॒म्ऽवि॒जन्ते॑ । अह॑:ऽदिवि । सिं॒हस्य॑ । स्त॒नथो॑: । यथा॑ । ए॒व । त्वम् । दु॒न्दु॒भे॒ । अ॒मित्रा॑न् । अ॒भि । क्र॒न्द॒ । प्र । त्रा॒स॒य॒ । अथो॒ इति॑ । चि॒त्तानि॑ । मो॒ह॒य॒ ॥२१.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा श्येनात्पतत्रिणः संविजन्ते अहर्दिवि सिंहस्य स्तनथोर्यथा। एवा त्वं दुन्दुभेऽमित्रानभि क्रन्द प्र त्रासयाथो चित्तानि मोहय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । श्येनात् । पतत्रिण: । सम्ऽविजन्ते । अह:ऽदिवि । सिंहस्य । स्तनथो: । यथा । एव । त्वम् । दुन्दुभे । अमित्रान् । अभि । क्रन्द । प्र । त्रासय । अथो इति । चित्तानि । मोहय ॥२१.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. (यथा) = जैसे (अजा-अवयः) = भेड़-बकरियों (वृकात्) = भेड़िये से (बहु बिभ्यती:) = बहुत डरती हुई (धावन्ति) = भाग खड़ी होती है, (एव) = इसीप्रकार हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य! (त्वम्) = तू (अमित्रान् अभिक्रन्द) = शत्रुओं पर गर्जना कर (प्रत्रासय) = उन्हें भयभीत कर दे, (अथ उ चित्तानि मोहय) = और उनके चित्तों को मूढ बना डाल । २. (यथा) = जैसे (श्येनात्) = बाजपक्षी से (पतत्रिण:) = पक्षी संविजन्ते भयभीत होकर उड़ जाते हैं और (यथा) = जैसे (अहर्दिवि) = दिन प्रतिदिन (सिंहस्य स्तनयो:) = सिंह की गर्जना से पशु भय-सञ्चलित हो जाते हैं, (एव) = उसी प्रकार हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य ! (त्वम्) = तू (अमित्रान् अभिक्रन्द) = शत्रुओं पर गरज उठ, (प्रत्रासय) = उन्हें भयभीत कर दे (अथ उ) = और निश्चय से (चित्तानि मोहय) = उनके चित्तों को मूढ बना डाल।

    भावार्थ -

    युद्धवाद्य के बजने पर शत्रु इसप्रकार भय-सञ्चलित हो जाएँ जैसे भेड़िये से भेड़-बकरियाँ, बाज़ से पक्षी व शेर की गर्जना से पशु भाग खड़े होते हैं।

     

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