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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 23/ मन्त्र 11
    सूक्त - कण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृमिघ्न सूक्त

    ह॒तो राजा॒ क्रिमी॑णामु॒तैषां॑ स्थ॒पति॑र्ह॒तः। ह॒तो ह॒तमा॑ता॒ क्रिमि॑र्ह॒तभ्रा॑ता ह॒तस्व॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ह॒त: । राजा॑ । क्रिमी॑णाम् । उ॒त । ए॒षा॒म् । स्थ॒पति॑:। ह॒त: । ह॒त: । ह॒तमा॑ता । क्रिमि॑: । ह॒तऽभ्रा॑ता । ह॒तऽस्व॑सा ॥२३.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हतो राजा क्रिमीणामुतैषां स्थपतिर्हतः। हतो हतमाता क्रिमिर्हतभ्राता हतस्वसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हत: । राजा । क्रिमीणाम् । उत । एषाम् । स्थपति:। हत: । हत: । हतमाता । क्रिमि: । हतऽभ्राता । हतऽस्वसा ॥२३.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 23; मन्त्र » 11

    पदार्थ -

    १. (कृमीणां राजा इत:) = कृमियों का राजा मारा गया है, (उत) = और (एषां स्थपतिः हतः) = इनका स्थानपति [स्थान के बनानेवाला] कृमि भी मारा गया है। २. (हतमाता) = जिसकी माता मारी गई है, (हतभ्राता) = जिसका भाई मारा गया है, (इतस्वसा) = जिसकी बहिन मारी गई है, वह (क्रिमिः हत:) = कृमि भी मार दिया गया है।

    भावार्थ -

    कृमियों के परिवार-के-परिवार का ही विनाश अभीष्ट है।

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