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  • यजुर्वेद - अध्याय 40/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - आत्मा देवता छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    कु॒र्वन्ने॒वेह कर्मा॑णि जिजीवि॒षेच्छ॒तꣳ समाः॑।ए॒वं त्वयि॒ नान्यथे॒तोऽस्ति॒ न कर्म॑ लिप्यते॒ नरे॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कु॒र्वन्। ए॒व। इ॒ह। कर्मा॑णि। जि॒जी॒वि॒षेत्। श॒तम्। समाः॑ ॥ ए॒वम्। त्वयि॑। न। अ॒न्यथा॑। इ॒तः। अ॒स्ति॒। न। कर्म॑। लि॒प्य॒ते॒। नरे॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समाः । एवन्त्वयि नान्यथेतो स्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कुर्वन्। एव। इह। कर्माणि। जिजीविषेत्। शतम्। समाः॥ एवम्। त्वयि। न। अन्यथा। इतः। अस्ति। न। कर्म। लिप्यते। नरे॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 40; मन्त्र » 2
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    पदार्थ -

     पदार्थ = ( इह ) = इस जगत् में मनुष्य  ( कर्माणि ) = वैदिक कर्मों को  ( कुर्वन् एव ) = करता हुआ ही  ( शतम् समाः ) = सौ वर्ष पर्य्यन्त  ( जिजीविषेत् ) = जीने की इच्छा करे। हे मनुष्य!  ( एवम् ) = इस प्रकार  ( त्वयि नरे ) = कर्म करनेवाले तुझ पुरुष में  ( कर्म न लिप्यते ) =  अवैदिक कर्म का लेप नहीं होता  ( इतः अन्यथा ) = इससे किसी दूसरे प्रकार से  ( न अस्ति ) = कर्म का लेप लगे बिना नहीं रहता।
     

    भावार्थ -

    भावार्थ = मनुष्यों को चाहिए कि वैदिक कर्म, सन्ध्या, प्रार्थना, उपासना, वेदों का स्वाध्याय, महात्मा सन्त जनों का सत्संगादि सदा करता हुआ, सौ वर्ष पर्यन्त जीने की इच्छा करे । ब्रह्मचर्यादि साधन ही पुरुष की आयु को बढ़ानेवाले हैं। व्यभिचारी, दुराचारी, ब्रह्मचारी नहीं बन सकता इसलिए दुराचाररूप पाप कर्म त्यागकर, ब्रह्मचर्यादि साधनपूर्वक वैदिक कर्म करता हुआ पुरुष, चिरञ्जीव बनने की इच्छा करे । पुरुष कुछ कर्म किये बिना नहीं रह सकता, अच्छे कर्म न करेगा तो बुरे कर्म ही करेगा। इसलिए वेद ने कहा है, पुरुष अच्छे कर्म करे, तब पाप कर्मों से पुरुष का लेप कभी नहीं होगा। पाप कर्मों से छूटने का और कोई उपाय नहीं है।

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