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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 31
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - वरुणो देवता छन्दः - विराट् आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    वने॑षु॒ व्यन्तरि॑क्षं ततान॒ वाज॒मर्व॑त्सु॒ पय॑ऽउ॒स्रिया॑सु। हृ॒त्सु क्रतुं॒ वरु॑णो वि॒क्ष्वग्निं दि॒वि सूर्य॑मदधा॒त् सोम॒मद्रौ॑॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वने॑षु। वि। अ॒न्तरि॑क्षम्। त॒ता॒न॒। वाज॑म्। अर्व॒त्स्वित्यर्व॑त्ऽसु। पयः॑। उ॒स्रिया॑सु। हृ॒त्स्विति॑ हृ॒त्ऽसु। क्रतु॑म्। वरु॑णः। वि॒क्षु। अ॒ग्निम्। दि॒वि। सूर्य्य॑म्। अ॒द॒धा॒त्। सोम॑म्। अद्रौ॑ ॥३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वनेषु व्यन्तरिक्षन्ततान वाजमर्वत्सु पय उस्रियासु हृत्सु क्रतुँ वरुणो विक्ष्वग्निन्दिवि सूर्यमदधात्सोममद्रौ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वनेषु। वि। अन्तरिक्षम्। ततान। वाजम्। अर्वत्स्वित्यर्वत्ऽसु। पयः। उस्रियासु। हृत्स्विति हृत्ऽसु। क्रतुम्। वरुणः। विक्षु। अग्निम्। दिवि। सूर्य्यम्। अदधात्। सोमम्। अद्रौ॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 31
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    भावार्थ -

    राजा के उपमानों का समुच्चय करते हैं । (वरुणा:) सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर ( वनेषु ) वनों के उपर उनके पालन करने, उन पर जलादि वर्षा करने के लिये ( अन्तरिक्षन) अन्तरिक्ष और उसमें स्थित वायु और मेघों को ( विततान ) तानता है, जिससे वे खूब बढें। और(अर्वत्सु ) वेगवान् अश्वों पर बलवान् पुरुषों में (वाजम्) बल, वीर्य और अन्न प्रदान करता है । ( उस्रियासु ) नदियों में जल, गौओं में दूध और सूर्य किरणो में सूक्ष्म पुष्टिकारक बल रखता है । ( दृत्सु क्रतुम् ) हृदयों में दृढ़ संकल्प को धारण कराता है । ( दिवि सूर्यम् ) आकाश में प्रकाशवान् सूर्य को स्थापित करता है । ( अद्रौ ) पर्वत पर ( सोमम् ) सोमवल्ली को या ( अद्रौ ) मेघ में ( सोमम् ) सर्वसृष्टयुत्पादक जल को ( अदधात्) वैश्वानर अग्नि के समान अग्नि अर्थात् अग्रणीनेता को भी स्थापित करता है । अर्थात् परमात्मा ही प्रजाओं में नेता को अधिक शक्तिमान बना कर उसको उत्तम उत्तम कर्तव्य भी सौंपता है । वह अन्तरिक्ष के समान सब पर आच्छादक, रक्षक रहे। अश्वों में वेग के समान संग्रामों में विजयी रहे। गौओं में दूध के समान निर्बलों का पोषण करे। हृदयों में दृढ़ संकल्प के समान प्रजा में स्थिरमति हो । आकाश में सूर्य के समान सबको प्रकाश दे। ज्ञान दे। मेघ में स्थित जल के समान सबको प्राणप्रद, अन्नप्रद हो । वह परमात्मा सबको उपास्य है जिसने ये सब पदार्थ भी रचे ।। 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    वरुणो देवता । विराडार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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