अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 17/ मन्त्र 8
सूक्त - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
उ॒त यत्पत॑यो॒ दश॑ स्त्रि॒याः पूर्वे॒ अब्रा॑ह्मणाः। ब्र॒ह्मा चे॒द्धस्त॒मग्र॑ही॒त्स ए॒व पति॑रेक॒धा ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । यत् । पत॑य: । दश॑ । स्त्रि॒या: । पूर्वे॑ । अब्रा॑ह्मणा: । ब्र॒ह्मा । च॒ । इत् । हस्त॑म् । अग्र॑हीत् । स: । ए॒व । पति॑: । ए॒क॒ऽधा॥१७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
उत यत्पतयो दश स्त्रियाः पूर्वे अब्राह्मणाः। ब्रह्मा चेद्धस्तमग्रहीत्स एव पतिरेकधा ॥
स्वर रहित पद पाठउत । यत् । पतय: । दश । स्त्रिया: । पूर्वे । अब्राह्मणा: । ब्रह्मा । च । इत् । हस्तम् । अग्रहीत् । स: । एव । पति: । एकऽधा॥१७.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 8
विषय - ब्रह्मजाया या ब्रह्मशक्ति का वर्णन।
भावार्थ -
(उत यत् पतयः दश स्त्रियाः पूर्वे अब्राह्मणाः) स्त्री रूप पृथिवी या राष्ट्र-सभा के पति अर्थात् रक्षक अधिकारी पहिले चाहें दस व्यक्ति हों भी, जो कि ब्राह्मण नहीं हैं, तो भी (ब्रह्मा चेत् हस्तामग्रहीत् स एव पतिरेकधा) जब योग्य ब्राह्मण कोई एक भी मिल जाय तो उसे ही इस पृथिवी का या राष्ट्र-सभा का वास्तविक पति अर्थात् रक्षक समझ लेना चाहिये।
टिप्पणी -
मनु अध्याय १२ में लिखा है कि “एकोऽपि वेद विद्धर्मं यं व्यवस्येद् द्विजोत्तमः। स विज्ञेयः परो धर्मः नाज्ञानामुदितौ शतैः॥” इस पर ऋषि दयानन्दजी महाराज लिखते हैं “यदि एक अकेला भी सब वेदों का जानने हारा, द्विजों में उत्तम ‘संन्यासी’ जिस धर्म की व्यवस्था करे वही श्रेष्ठ धर्म जानना चाहिये, सहस्रों, लाखों, करोड़ों अज्ञानी मिलकर जो व्यवस्था करें उसको कभी न मानना चाहिये।” दशावरा परिषत् में कम से कम १० सभासद् चाहियें। यदि ये सभासद् सच्चे ब्राह्मण न हों, और किसी योग्य ब्राह्मण के न मिलने पर ये ही कुछ काल के लिये व्यवस्थापक नियत किये गये हों तो भी जब कभी भी कोई एक भी सच्चा ब्राह्मण मिल जाय तो उन दस व्यक्तियों के स्थान में इसी एक सच्चे ब्राह्मण को ही व्यवस्थापक नियत कर देना चाहिये।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मजाया देवताः। १-६ त्रिष्टुभः। ७-१८ अनुष्टुभः। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
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