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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२३

    इ॒मा ब्रह्म॑ ब्रह्मवाहः क्रि॒यन्त॒ आ ब॒र्हिः सी॑द। वी॒हि शू॑र पुरो॒डाश॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मा । ब्रह्म॑ । ब्र॒ह्म॒ऽवा॒ह॒: । क्रि॒यन्ते॑ ।आ । ब॒र्हि: । सी॒द॒ । वी॒हि । शू॒र॒ । पु॒रो॒लाश॑म् ॥२३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा ब्रह्म ब्रह्मवाहः क्रियन्त आ बर्हिः सीद। वीहि शूर पुरोडाशम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमा । ब्रह्म । ब्रह्मऽवाह: । क्रियन्ते ।आ । बर्हि: । सीद । वीहि । शूर । पुरोलाशम् ॥२३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    हे (ब्रह्मवाहः) ब्रह्म-वेद के विद्वान् ब्राह्मणों के ज्ञान-बल से वहन, धारण करने योग्य क्षत्रिय ! तेरे लिये (इमा ब्रह्म) ये वेदानुकूल नाना कर्म (क्रियन्ते) किये जाते हैं। तू (बर्हिः आ सीद) उच्च आसन पर विराजमान हो। हे (शूर) शूरवीर ! तू (पुरोलासम्) समक्ष स्थित राष्ट्र रूप ‘पुरोडाश’ आदरपूर्वक पुरस्कृत ऐश्वर्य को (वीहि) उपभोग कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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