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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 23/ मन्त्र 5
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२३

    म॒तयः॑ सोम॒पामु॒रुं रि॒हन्ति॒ शव॑स॒स्पति॑म्। इन्द्रं॑ व॒त्सं न मा॒तरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒तय॑: । सो॒म॒ऽपाम् । उ॒रुम् । रि॒हन्ति॑ । शव॑स: । पति॑म् ॥ इन्द्र॑म् । व॒त्सम् । न । मा॒तर॑: ॥२३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मतयः सोमपामुरुं रिहन्ति शवसस्पतिम्। इन्द्रं वत्सं न मातरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मतय: । सोमऽपाम् । उरुम् । रिहन्ति । शवस: । पतिम् ॥ इन्द्रम् । वत्सम् । न । मातर: ॥२३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    (मातरः) गोमाताएं (वत्सं न) जिस प्रकार अपने बछड़े को (रिहन्ति) चाटती हैं, (मतयः) मननशील पुरुष और उनकी मतियें उनकी की हुई स्तुतियें और ज्ञान-धाराएं उसी प्रकार (उरुम्) उस महान् (शवसस्पतिम्) समस्त बल के पालक स्वामी, सर्वशक्तिमान् (सोमपाम्) समस्त ऐश्वर्यमय जगत्, या परम आनन्द के पालक एक भोक्ता को (रिहान्ति) स्पर्श करती हैं, उसी को अपना लक्ष्य करती हैं, उसी का वर्णन करती हैं, उसी तक पहुंचती हैं। राजा के पक्ष में—समस्त (मतयः) मतिशील पुरुष भी गायें बछड़ों के समान बलशाली राष्ट्रपति बलवान् राजा को ही छूते, उसी के ऐश्वर्य का भोग करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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