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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 23/ मन्त्र 7
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२३

    व॒यमि॑न्द्र त्वा॒यवो॑ ह॒विष्म॑न्तो जरामहे। उ॒त त्वम॑स्म॒युर्व॑सो ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम् । इ॒न्द्र॒ । त्वा॒ऽयव॑: । ह॒विष्म॑न्त: । ज॒रा॒म॒हे॒ ॥ उ॒त । त्वम् । अ॒स्म॒ऽयु: । व॒सो॒ इति॑ ॥२३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयमिन्द्र त्वायवो हविष्मन्तो जरामहे। उत त्वमस्मयुर्वसो ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वयम् । इन्द्र । त्वाऽयव: । हविष्मन्त: । जरामहे ॥ उत । त्वम् । अस्मऽयु: । वसो इति ॥२३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    हे इन्द्र ! परमेश्वर ! एवं राजन् ! (वयं त्वायवः) हम तुझे चाहते हुए (हविष्मन्तः) ज्ञान एवं अन्नों से समृद्ध होकर तेरी (जरामहे) स्तुति करते हैं। प्रार्थना करते हैं (उत) और हे (वसो) सब मैं व्यापक और सबको बसानेहारे ! (त्वम्) तू (अस्मयुः) हमें चाहने वाला है, तू हमें प्रेम कर। तू भक्तन का भक्त तिहारे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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