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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 23/ मन्त्र 4
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२३

    रा॑र॒न्धि सव॑नेषु ण ए॒षु स्तोमे॑षु वृत्रहन्। उ॒क्थेष्वि॑न्द्र गिर्वणः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    र॒र॒न्धि । सव॑नेषु । न॒: । ए॒षु । स्तोमे॑षु । वृ॒त्र॒ऽह॒न् ॥ उ॒क्थेषु॑ । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒ण॒: ॥२३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रारन्धि सवनेषु ण एषु स्तोमेषु वृत्रहन्। उक्थेष्विन्द्र गिर्वणः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ररन्धि । सवनेषु । न: । एषु । स्तोमेषु । वृत्रऽहन् ॥ उक्थेषु । इन्द्र । गिर्वण: ॥२३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    हे (गिर्वणः) समस्त वेदवाणियों द्वारा स्तुति योग्य प्रभो ! अथवा उनके सेवन करने हारे विद्वन् ! हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे (वृत्रहन्) और विघ्नों के विनाशक ! तू परमपूजनीय (नः) हमारे (एषु) इन (सवनेषु) कर्मों में और (स्तोमेषु) ज्ञानों और स्तुतियों में (ररन्धि) रमण कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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