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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 71

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 14
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१

    अ॒स्मे धे॑हि॒ श्रवो॑ बृ॒हद्द्यु॒म्नं स॑हस्र॒सात॑मम्। इन्द्र॒ ता र॒थिनी॒रिषः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्मे इति॑ । धे॒हि॒ । श्रव॑: । बृ॒हत् । द्यु॒म्नम् । स॒ह॒स्र॒ऽसात॑मम् ॥ इन्द्र॑ । ता: । र॒थिनी॑: । इष॑: ॥७१.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मे धेहि श्रवो बृहद्द्युम्नं सहस्रसातमम्। इन्द्र ता रथिनीरिषः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मे इति । धेहि । श्रव: । बृहत् । द्युम्नम् । सहस्रऽसातमम् ॥ इन्द्र । ता: । रथिनी: । इष: ॥७१.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 14

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे बाधक शत्रुओं के निवारक राजन् ! तू (अस्मे) हमें (बृहत श्रवः) बड़ा यश, अन्न, ज्ञान, बल और (सहस्रसातमम्) सहस्रों भोगों के देने वाले (द्युम्नम्) ऐश्वर्य को (धेहि) प्रदान कर। और (ताः) वे (रथिनीः) रथों, वाहनों से युक्त (इषः) सेनाएं और (रथिनीः = रसिनीः इषः) भीतरी ब्रह्मरस से युक्त प्रेरणाएं और उत्तम रस से युक्त अन्नादि खाद्य पदार्थ प्रदान कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—इन्द्रः॥ छन्दः—गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम॥

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