अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 91/ मन्त्र 10
य॒दा वाज॒मस॑नद्वि॒श्वरू॑प॒मा द्याम॑रुक्ष॒दुत्त॑राणि॒ सद्म॑। बृह॒स्पतिं॒ वृष॑णं व॒र्धय॑न्तो॒ नाना॒ सन्तो॒ बिभ्र॑तो॒ ज्योति॑रा॒सा ॥
स्वर सहित पद पाठय॒दा । वाज॑म् । असनत् । वि॒श्वऽरूपम् । आ । द्याम् । अरु॑क्षत् । उत्ऽत॑राणि । सद्म ॥ बृह॒स्पति॑म् । वृष॑णम् । व॒र्धय॑न्त: । नाना॑ । सन्त: । बिभ्र॑त: । ज्योति॑: । आ॒सा ॥९१.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
यदा वाजमसनद्विश्वरूपमा द्यामरुक्षदुत्तराणि सद्म। बृहस्पतिं वृषणं वर्धयन्तो नाना सन्तो बिभ्रतो ज्योतिरासा ॥
स्वर रहित पद पाठयदा । वाजम् । असनत् । विश्वऽरूपम् । आ । द्याम् । अरुक्षत् । उत्ऽतराणि । सद्म ॥ बृहस्पतिम् । वृषणम् । वर्धयन्त: । नाना । सन्त: । बिभ्रत: । ज्योति: । आसा ॥९१.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 91; मन्त्र » 10
विषय - विद्वन्, राजा ईश्वर।
भावार्थ -
(यदा) जब बृहस्पति, महान् राष्ट्र का स्वामी या विद्वान् पुरुष (विश्वरूपम्) सब प्रकार के (वाजम्) ऐश्वर्य या ज्ञानी को (असनत्) प्राप्त कर लेता है और (द्याम्) ज्ञान की उत्तम कोटि, राजसभा और (उत्तराणि) उत्कृष्ट (सद्म) स्थानों या पदों को (आ अरुक्षत्) प्राप्त होता है तब (वृषणम्) बलवान् (बृहस्पतिम्) बड़े राष्ट्र के पालक एवं वेद के विद्वान को (आसा) मुखसे (ज्योतिः बिभ्रतः) तेज और प्रकाश के धारण करने वाले (सन्तः) सज्जन पुरुष स्तुति द्वारा (नाना वर्धयन्तः) नाना प्रकार से उसकी वृद्धि करते हैं। उसका गुणानुवाद करते हैं।
योगी के पक्ष में—वह जब (विश्वरूपम् वाजम्) परमेश्वरीय वाज बल ज्ञान या विभूति को प्राप्त कर लेता है और मोक्ष और उत्कृष्ट लोकों को प्राप्त कर लेता है तब उसके (आसा ज्योतिः बिभ्रतः) मुख द्वारा या उपदेश द्वारा ज्ञान ज्योति को धारण करने वाले सत्पुरुष नाना प्रकार से उसके गुणानुबाद करते हैं।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अयास्य आङ्गिरस ऋषिः। बृहस्पति देवता। त्रिष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें