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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    उदे॑नं॒ भगो॑ अग्रभी॒दुदे॑नं॒ सोमो॑ अंशु॒मान्। उदे॑नं म॒रुतो॑ दे॒वा उदि॑न्द्रा॒ग्नी स्व॒स्तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ए॒न॒म् । भग॑: । अ॒ग्र॒भी॒त् । उत् । ए॒न॒म् ।सोम॑: । अं॒शु॒ऽमान् । उत् । ए॒न॒म् । म॒रुत॑: । दे॒वा: । उत् । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । स्व॒स्तये॑ ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदेनं भगो अग्रभीदुदेनं सोमो अंशुमान्। उदेनं मरुतो देवा उदिन्द्राग्नी स्वस्तये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । एनम् । भग: । अग्रभीत् । उत् । एनम् ।सोम: । अंशुऽमान् । उत् । एनम् । मरुत: । देवा: । उत् । इन्द्राग्नी इति । स्वस्तये ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    मनुष्य के जीवन के आधार बतलाते हैं। (एनं) इस पुरुष को (भगः) भजन या सेवन करने योग्य अन्न ने (उत् अग्रभीत्) शरीर के रूप में ग्रहण किया है (एनं) और इसको (अंशुमान्) व्यापन शक्ति या रस से युक्त (सोमः) जल ने (उत्) ग्रहण किया है। (एनम्) और इसको (देवाः) गतिशील (मरुतः) प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, कृकल, देवदत्त, नाग, कूर्म, धनंजय नामक वायुरूप जीवन के साधन प्राणों ने (उत्) ग्रहण किया है, और (इन्द्राग्नी) इन्द्र, मुख्यप्राण और अग्नि-जाठर अग्नि, वैश्वानर इन्होंने इस देहमय पुरुष को (उत्) धारण किया है। क्यों ? (स्वस्तये) जिससे यह जीव शरीर में सुखपूर्वक जीवन सत्ता का उपभोग करे॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। आयुर्देवता। १, ५, ६, १०, ११ त्रिष्टुभः। २,३, १७,२१ अनुष्टुभः। ४,९,१५,१६ प्रस्तारपंक्तयः। त्रिपाद विराड् गायत्री । ८ विराट पथ्याबृहती। १२ त्र्यवसाना पञ्चपदा जगती। १३ त्रिपाद भुरिक् महाबृहती। १४ एकावसाना द्विपदा साम्नी भुरिग् बृहती।

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