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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
    सूक्त - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    यत्रे॒दानीं॒ पश्य॑सि जातवेद॒स्तिष्ठ॑न्तमग्न उ॒त वा॒ चर॑न्तम्। उ॒तान्तरि॑क्षे॒ पत॑न्तं यातु॒धानं॒ तमस्ता॑ विध्य॒ शर्वा॒ शिशा॑नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑ । इ॒दानी॑म् । पश्य॑सि । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । तिष्ठ॑न्तम् । अ॒ग्ने॒ । उ॒त । वा॒ । चर॑न्तम् । उ॒त । अ॒न्तरि॑क्षे । पत॑न्तम् । या॒तु॒ऽधान॑म् । तम । अस्ता॑ । वि॒ध्य॒ । शर्वा॑ । शिशा॑न: ॥३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्रेदानीं पश्यसि जातवेदस्तिष्ठन्तमग्न उत वा चरन्तम्। उतान्तरिक्षे पतन्तं यातुधानं तमस्ता विध्य शर्वा शिशानः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र । इदानीम् । पश्यसि । जातऽवेद: । तिष्ठन्तम् । अग्ने । उत । वा । चरन्तम् । उत । अन्तरिक्षे । पतन्तम् । यातुऽधानम् । तम । अस्ता । विध्य । शर्वा । शिशान: ॥३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 3; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    हे (जातवेदः) विद्वन् ! राजन् ! (यत्र इदानीम्) जहां कहीं भी और जब कभी भी (तिष्ठन्तम्) खड़े हुए, (चरन्तम्) विचरते हुए (उत) और (अन्तरिक्षे पतन्तम्) अन्तरिक्ष में, आकाश मार्ग से जाते हुए (यातुधानम्) पीड़ाकारी दुष्ट पुरुष को (पश्यसि) तू देखे, तभी और उसी स्थान पर तू (शिशानः) अतितीक्ष्ण (अस्ता) शरों के फेंकने में सावधान और (शर्वा) हिंसक, घातक अस्त्र, बाण या गोली से (तम्) उसको (विध्य) बेंध डाल, यदि किसी प्रकार वश में न आता हो और छिपता फिरता हो तो जहां भी मिले वहां ही उसको गोली का शिकार किया जाय। राजा स्वयं तो क्या करेगा ? वह (अस्ता) धनुर्धर बाण फेंकने और गोली चलाने वाले पुरुषों या (शर्वा, शिशानः) तीक्ष्ण हिंसक पुरुषों को लगा कर उनसे मरवा डाले।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - चातन ऋषिः। अग्निर्देवता, रक्षोहणम् सूक्तम्। १, ६, ८, १३, १५, १६, १८, २०, २४ जगत्यः। ७, १४, १७, २१, १२ भुरिक्। २५ बृहतीगर्भा जगती। २२,२३ अनुष्टुभो। २६ गायत्री। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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