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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 25
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    को नु गौः क ए॑कऋ॒षिः किमु॒ धाम॒ का आ॒शिषः॑। य॒क्षं पृ॑थि॒व्यामे॑क॒वृदे॑क॒र्तुः क॑त॒मो नु सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । नु । गौ: । क: । ए॒क॒ऽऋ॒षि: । किम् । ऊं॒ इति॑ । धाम॑ । का: । आ॒ऽशिष॑: । य॒क्षम् । पृ॒थि॒व्याम् । ए॒क॒ऽवृत् । ए॒क॒ऽऋ॒तु: । क॒त॒म: । नु । स: ॥९.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को नु गौः क एकऋषिः किमु धाम का आशिषः। यक्षं पृथिव्यामेकवृदेकर्तुः कतमो नु सः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । नु । गौ: । क: । एकऽऋषि: । किम् । ऊं इति । धाम । का: । आऽशिष: । यक्षम् । पृथिव्याम् । एकऽवृत् । एकऽऋतु: । कतम: । नु । स: ॥९.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 25

    भावार्थ -
    प्रश्न यह है कि (कः नु गौः) यह महान ‘गौः’ सब का चलाने वाला, ब्रह्माण्ड या जगत् रुप गाड़े का खैंचने वाला बैल कौन है ? और इस समस्त चराचर का (ऋषिः) द्रष्टा, उसका निरीक्षक, (एकः) एकमात्र सर्वाध्यक्ष (कः) कौन है ? (किम् उ धाम) इस सबको धारण करने वाला सर्वाश्रय क्या है ? (आशिषः) सब पदार्थों को शासन करने वाली, सबको नियम में रखने वाली शक्तियां (काः) कौनसी हैं ? (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (एकवृत्) एकमात्र वरण करने और पूजने योग्य (एक-ऋतुः) एक मात्र ऋतु के समान संवत्सर रूप काल (यक्षम्) सब पदार्थों को परस्पर संगति कराने और उनको व्यवस्थित करने वाला (सः) वह (नु) भी (कतमः) कौनसा है ?

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा काश्यपः सर्वे वा ऋषयो ऋषयः। विराट् देवता। ब्रह्मोद्यम्। १, ६, ७, १०, १३, १५, २२, २४, २६ त्रिष्टुभः। २ पंक्तिः। ३ आस्तारपंक्तिः। ४, ५, २३, २४ अनुष्टुभौ। ८, ११, १२, २२ जगत्यौ। ९ भुरिक्। १४ चतुष्पदा जगती। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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