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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 26
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    ए॒को गौरेक॑ एकऋ॒षिरेकं॒ धामै॑क॒धाशिषः॑। य॒क्षं पृ॑थि॒व्यामे॑क॒वृदे॑क॒र्तुर्नाति॑ रिच्यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एक॑: । गौ: । एक॑: । ए॒क॒ऽऋ॒षि: । एक॑म् । धाम॑ । ए॒क॒ऽधा । आ॒ऽशिष॑: । य॒क्षम् । पृ॒थि॒व्याम् । ए॒क॒ऽवृत् । ए॒क॒ऽऋ॒तु: । न । अति॑ । रि॒च्य॒ते॒ ॥९.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एको गौरेक एकऋषिरेकं धामैकधाशिषः। यक्षं पृथिव्यामेकवृदेकर्तुर्नाति रिच्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एक: । गौ: । एक: । एकऽऋषि: । एकम् । धाम । एकऽधा । आऽशिष: । यक्षम् । पृथिव्याम् । एकऽवृत् । एकऽऋतु: । न । अति । रिच्यते ॥९.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 26

    भावार्थ -
    उत्तर यह है कि (एकः गौः) वह एकमात्र परमात्मा ही (गौः) इस चराचर को चलाने वाला महावृषभ है। और वही (एकः) एकमात्र (ऋषिः) सर्वाध्यक्ष है। वही (एकं धाम) एक मात्र सबका धारण करने वाला ‘बल’ है और सबका आश्रय है। (एकधा आशिषः) वे सब नियामक शक्तियां भी एक ही रूप की ब्रह्ममयी है, (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (एकवृत्) एकमात्र वरणीय, सबसे श्रेष्ठ (एक-ऋतुः) एक ऋतु के समान या एकमात्र सबका प्रेरक प्राणरूप (यज्ञम्) सबको परस्पर संगत और व्यवस्थित करने वाला बल भी वही एक है, (न अति रिच्यते) उससे बढ़कर दूसर नियामक भी कोई नहीं है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा काश्यपः सर्वे वा ऋषयो ऋषयः। विराट् देवता। ब्रह्मोद्यम्। १, ६, ७, १०, १३, १५, २२, २४, २६ त्रिष्टुभः। २ पंक्तिः। ३ आस्तारपंक्तिः। ४, ५, २३, २४ अनुष्टुभौ। ८, ११, १२, २२ जगत्यौ। ९ भुरिक्। १४ चतुष्पदा जगती। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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