ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 119/ मन्त्र 7
यु॒वं वन्द॑नं॒ निर्ऋ॑तं जर॒ण्यया॒ रथं॒ न द॑स्रा कर॒णा समि॑न्वथः। क्षेत्रा॒दा विप्रं॑ जनथो विप॒न्यया॒ प्र वा॒मत्र॑ विध॒ते दं॒सना॑ भुवत् ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वम् । वन्द॑नम् । निःऽऋ॑तम् । ज॒र॒ण्यया॑ । रथ॑म् । न । द॒स्रा॒ । क॒र॒णा । सम् । इ॒न्व॒थः॒ । क्षेत्रा॑त् । आ । विप्र॑म् । ज॒न॒थः॒ । वि॒प॒न्यया॑ । प्र । वा॒म् । अत्र॑ । वि॒ध॒ते । दं॒सना॑ । भु॒व॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवं वन्दनं निर्ऋतं जरण्यया रथं न दस्रा करणा समिन्वथः। क्षेत्रादा विप्रं जनथो विपन्यया प्र वामत्र विधते दंसना भुवत् ॥
स्वर रहित पद पाठयुवम्। वन्दनम्। निःऽऋतम्। जरण्यया। रथम्। न। दस्रा। करणा। सम्। इन्वथः। क्षेत्रात्। आ। विप्रम्। जनथः। विपन्यया। प्र। वाम्। अत्र। विधते। दंसना। भुवत् ॥ १.११९.७
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 119; मन्त्र » 7
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे करणा दस्राश्विनौ स्त्रीपुरुषौ युवं जरण्यया युक्तं निर्ऋतं वन्दनं विप्रं रथं न समिन्वथः क्षेत्रादुत्पन्नमिवाजनथो योऽत्र वां युवयोर्गृहाश्रमे संबन्धः प्रभुवत्तत्र विपन्यया युक्तानि दंसना कर्माणि विधते विधातुं प्रवर्त्तमानायोत्तमान् राज्यधर्माधिकारान् दद्यातम् ॥ ७ ॥
पदार्थः
(युवम्) युवां स्त्रीपुरुषौ (वन्दनम्) वन्दनीयम् (निर्ऋतम्) निरन्तरमृतं सत्यमस्मिन् (जरण्यया) जरणान् विद्यावृद्धानर्हति यया विद्यया तया युक्तम् (रथम्) विमानादियानम् (न) इव (दस्रा) (करणा) कुर्वन्तौ (सम्) (इन्वथः) प्राप्नुतम् (क्षेत्रात्) गर्भाशयोदरान्निवासस्थानात् (आ) (विप्रम्) विद्यासुशिक्षायोगेन मेधाविनम् (जनथः) जनयतम्। शप आर्धधातुकत्वाण्णिलुक्। (विपन्यया) स्तोतुं योग्यया धर्म्यया नीत्या युक्तानि (प्र) (वाम्) युवयोः (अत्र) अस्मिञ् जगति (विधते) विधात्रे (दंसना) कर्माणि (भुवत्) भवेत्। अत्र लेट् ॥ ७ ॥
भावार्थः
मननशीलाः स्त्रीपुरुषा जन्मारभ्य यावद् ब्रह्मचर्य्येण सकला विद्या गृह्णीयुस्तावत्सन्तानान् सुशिक्ष्य यथायोग्येषु व्यवहारेषु सततं नियोजयेयुः ॥ ७ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (करणा) उत्तम कर्मों के करने वा (दस्रा) दुःख दूर करनेवाले स्त्री पुरुषो ! (युवम्) तुम दोनों (जरण्यया) विद्यावृद्ध अर्थात् अतीव विद्या पढ़े हुए विद्वानों के योग्य विद्या से युक्त (निर्ऋतम्) जिसमें निरन्तर सत्य विद्यमान (वन्दनम्) प्रशंसा करने योग्य (विप्रम्) विद्या और अच्छी शिक्षा के योग से उत्तम बुद्धिवाले विद्वान् को (रथम्) विमान आदि यान के (न) समान (समिन्वथः) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ और (क्षेत्रात्) गर्भ के ठहरने की जगह से उत्पन्न हुए सन्तान के समान अपने निवास से उत्तम काम को (आ, जनथः) अच्छे प्रकार प्रकट करो, जो (अत्र) इस संसार में (वाम्) तुम दोनों का गृहाश्रम के बीच सम्बन्ध (प्र, भुवत्) प्रबल हो उसमें (विपन्यया) प्रशंसा करने योग्य धर्म की नीति से युक्त (दंसना) कामों को (विधते) विधान करने को प्रवृत्त हुए मनुष्य के लिये उत्तम राज्य के अधिकारों को देओ ॥ ७ ॥
भावार्थ
विचार करनेवाले स्त्रीपुरुष जन्म से लेके जब-तक ब्रह्मचर्य्य से समस्त विद्या ग्रहण करें तब तक उत्तम शिक्षा देकर सन्तानों को यथायोग्य व्यवहारों में निरन्तर युक्त करें ॥ ७ ॥
विषय
जीर्णता का दूरीकरण
पदार्थ
१. हे (दस्रा) = अशुभों का क्षय करनेवाले (करणा) = शुभों के करनेवाले प्राणापानो ! (युवम्) = आप दोनों (जरण्यया) = बुढ़ापे से (निर्ऋतम्) = निःशेषेण प्राप्त हुए - हुए को , पूर्णरूप से घेर लिये गये को (वन्दनम्) = अभिवादन व स्तवन करनेवाले को (समिन्वथः) = इस प्रकार धारण करते हो , फिर युवा सा कर देते हो (न) = जैसे कि (रथम्) = एक शिल्पी रथ को नया कर देता है । प्राणसाधना से बुढ़ापे का स्थान यौवन ले - लेता है । प्राणसाधना मनुष्य की शक्तियों की वृद्धि का कारण बनती है । २. हे प्राणापानो ! आप (विपन्यया) = विशिष्ट स्तुति के द्वारा (क्षेत्रात्) = क्षेत्र से ही - जन्म से ही (विप्रम्) = ज्ञानी को (आजनथः) = उत्पन्न करते हो । गर्भस्थ बालक की माता प्राणसाधना में चलती है तो गर्भस्थ बालक जन्म से ही तीव्र बुद्धिवाला होता है । ३. हे प्राणापानो ! (अत्र) = यहाँ , इस जीवन में (वां दंसना) = आपके कर्म (विधते - प्र भुवत्) = प्रभाव को पैदा करनेवाले होते हैं । प्राणसाधक को शक्ति प्राप्त होती है । प्राणसाधना से मलों का संहार होकर पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त होता है । यह स्वास्थ्य शक्तिवृद्धि का मूल बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से जीर्णता दूर होती है , ज्ञान व शक्ति की वृद्धि होती है ।
विषय
विद्वान् प्रमुख नायकों और स्त्री पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
( जरण्यया = चरण्यया युक्तं रथं न ) जिस प्रकार उत्तम गति से जाने वाले रथ को प्राप्त कर ( दस्त्रा ) शत्रुओं के नाशकारी रथी और सारथी दोनों ( सम् इन्वथः ) परस्पर मिल कर दूर देश तक चले जाते हैं इसी प्रकार हे (दस्त्रा) दर्शनीय रूपवाले एवं एक दूसरे के दुःखों को दूर करने वाले स्त्री पुरुषो ! ( करणा ) कार्य करने में कुशल होकर ( जरण्यया ) उपदेश करने योग्य वेदवाणी से युक्त ( वन्दनं ) नित्याभिवादन योग्य ( निर्ऋतं ) निरन्तर सत्य ज्ञान के उपदेष्टा विद्या वृद्ध पुरुष को संसार की दूर यात्रा पार करने के लिये ( सम् इन्वधः ) सत्संग करो । हे विद्वान् स्त्री पुरुषो ! आप लोग ( क्षेत्रात् ) उत्पत्ति स्थान गर्भाशय से बालक के समान ( विप्रम् ) विविध विद्याओं में पूर्ण शिष्य को ( आजनथः ) उत्पन्न करो। और ( विपन्यया ) विशेष स्तुति योग्य वाणी से ( वाम् ) तुम दोनों को ( दंसना विधते ) नाना कर्मों का उपदेश करने वाले विद्वान् की प्रतिष्ठा ( प्रभुवत् ) अच्छी प्रकार रहो। [ २ ] बालक के पक्ष में—जब तुम दोनों ( करणा ) गृहस्थ के करने वाले स्त्री पुरुष ( समिन्वथः ) परस्पर संगत होवो तब तुम दोनों ( वन्दनं ) स्तुति योग्य ( जरण्यया निर्ऋतं ) जरण्या अर्थात् जरायु के साथ बाहर आये ( विप्रम् ) विविध गुणों से पूर्ण ( रथं ) रमणीय बालक को ( क्षेत्रात् आजनथः ) क्षेत्र अर्थात् गर्भाशय से उत्पन्न करो । और तब ( वाम् ) तुम दोनों की ( विपन्यया ) विशेष व्यवहारकुशलता से ( अत्र विधते ) इस कार्य में ( दसना ) नाना कार्यों को करने वाले की ( प्र भुवत् ) प्रभुत्व या प्रतिष्ठा हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कक्षीवान्दैर्घतमस ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः– १, ४, ६ निचृज्जगती । ३,७, १७ जगती । ८ विराड् जगती । २, ५, ९ भुरिक् त्रिष्टुप् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जन्मापासून ब्रह्मचारी राहून संपूर्ण विद्या प्राप्त करावी व उत्तम शिक्षण देऊन मननशील स्त्री पुरुषांनी संतानाला यथायोग्य व्यवहारात सदैव युक्त करावे. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, heroes of noble action, destroyers of suffering, with knowledge and admiration you reinvigorate the noble reverend scholar stricken with age and adversity as you would repair and recondition a chariot with your knowledge and expertise. With appreciation and praise regenerate and elevate the veteran of knowledge from his place of birth. Let your marvellous power and action be dedicated to the lord of humanity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O active learned men and women who are destroyers of miseries, you should get an offspring that is endowed with knowledge, absolutely truthful and highly intelligent. You must get him like a good vehicle in the form of an air-craft or something produced in the field. You must be engaged in doing praiseworthy noble deeds, with this object in view.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(निऋतम्) निरन्तरम् ऋतम अस्मिन् = Honest and absolutely truthful. (जरन्यया) जरणान् विद्यावृद्धान् अर्हति यया विद्यया तथा युक्तम् ॥ = Eudowed with good knowledge. (विपन्यया) स्तोतुं योग्यया धर्म्यया नीत्या युक्तानि = Endowed with praise worthy righteous policy.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of thoughtful parents to train their children well by making them observe the rules of Brahmacharya from birth onward and to urge upon them to engage themselves in proper activities.
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