Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 161 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 161/ मन्त्र 10
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - ऋभवः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    श्रो॒णामेक॑ उद॒कं गामवा॑जति मां॒समेक॑: पिंशति सू॒नयाभृ॑तम्। आ नि॒म्रुच॒: शकृ॒देको॒ अपा॑भर॒त्किं स्वि॑त्पु॒त्रेभ्य॑: पि॒तरा॒ उपा॑वतुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्रो॒णाम् । एकः॑ । उ॒द॒कम् । गाम् । अव॑ । अ॒ज॒ति॒ । मां॒सम् । एकः॑ । पिं॒श॒ति॒ । सू॒नया॑ । आऽभृ॑तम् । आ । नि॒ऽम्रुचः॑ । शकृ॒त् । एकः॑ । अप॑ । अ॒भ॒र॒त् । किम् । स्वि॒त् । पु॒त्रेभ्यः॑ । पि॒तरौ॑ । उप॑ । आ॒व॒तुः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्रोणामेक उदकं गामवाजति मांसमेक: पिंशति सूनयाभृतम्। आ निम्रुच: शकृदेको अपाभरत्किं स्वित्पुत्रेभ्य: पितरा उपावतुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्रोणाम्। एकः। उदकम्। गाम्। अव। अजति। मांसम्। एकः। पिंशति। सूनया। आऽभृतम्। आ। निऽम्रुचः। शकृत्। एकः। अप। अभरत्। किम्। स्वित्। पुत्रेभ्यः। पितरौ। उप। आवतुः ॥ १.१६१.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 161; मन्त्र » 10
    अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    यथैकः श्रोणाङ्गामुदकञ्चावाजति यथैकः सूनयाभृतं मांसं पिंशति यथैको निम्रुचः शकृदपाभरत्तथा पितरौ पुत्रेभ्यः किं स्विदुपावतुः ॥ १० ॥

    पदार्थः

    (श्रोणाम्) श्रोतव्याम् (एकः) विद्वान् (उदकम्) जलम् (गाम्) भूमिम् (अव) (अजति) जानाति प्रक्षिपति वा (मांसम्) मृतकशरीरावयवम् (एकः) असहायः (पिंशति) पृथक् करोति (सूनया) हिंसया (आभृतम्) समन्ताद्धृतम् (आ) (निम्रुचः) नित्यं प्राप्तस्य (शकृत्) विष्टेव (एकः) (अपः) (अभरत्) भरति (किम्) (स्वित्) प्रश्ने (पुत्रेभ्यः) (पितरौ) मातापितरौ (उप) (आवतुः) कामयेताम् ॥ १० ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पितरो यथा धेनुर्वत्समिव व्याधो मांसमिव वैद्यो रोगिणो मलनिवारणमिव पुत्रान् दुर्गुणेभ्यो निवर्त्य शिक्षाविद्याप्तान् कुर्वन्ति ते सन्तानसुखमाप्नुवते ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जैसे (एकः) विद्वान् (श्रोणाम्) सुनने योग्य (गाम्) भूमि और (उदकम्) जल को (अवाजति) जानता, कलायन्त्रों से उसको प्रेरणा देता है वा जैसे (एकः) इकेला (सूनया) हिंसा से (आभृतम्) अच्छे प्रकार धारणा किये हुए (मांसम्) मरे हुए के अङ्ग के टूंकटेड़े (=टुकड़े) को (पिंशति) अलग करता है। वा जैसे (एकः) एक (निम्रुचः) नित्य प्राप्त प्राणी को (शकृत्) मल के समान (अप, आ अभरत्) पदार्थ को उठाता है वैसे (पितरौ) माता-पिता (पुत्रेभ्यः) पुत्रों के लिये (किं स्वित्) क्या (उपावतुः) समीप में चाहैं ॥ १० ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पिता-माता जैसे गौएं बछड़े को सुख चाहती, दुःख से बचाती वा बहेलिया मांस को लेके अनिष्ट को छोड़े वा वैद्य रोगी के मल को दूर करे वैसे पुत्रों को दुर्गुणों से पृथक् कर शिक्षा और विद्यायुक्त करते हैं, वे सन्तान के सुख को पाते हैं ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ज्ञान, धन व शक्ति

    पदार्थ

    १. (एकः) = सौधन्वनों में प्रथम 'ऋभु' (श्रोणाम्) = श्रोतव्य (गाम्) = वेदवाणीरूप गौ से (उदकम्) - ज्ञान-जल को (अव अजति) = अपने में नीचे प्रेरित करता है। आचार्य ज्ञान के दृष्टिकोण से उच्चस्थल में है, विद्यार्थी नीचे। आचार्य से यह ज्ञान-जल विद्यार्थी की ओर आता है। विद्यार्थी ने इस ज्ञान को संसार में प्रचरित करना होता है। २. (एक:) = दूसरा 'विभ्वा' सूनया हिंसा से आभृतम् = प्राप्त मांसम्-मांस को पिंशति = (पृथक्करोति – दया०) अपने घर से पृथक् ही रखता है। जहाँ यह मांस-भोजन नहीं करता वहाँ यह भाव भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि यह हिंसा से धन प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करता। ३. (एक:) = तीसरा 'वाज' = वासनाओं का त्याग करता हुआ (निम्रुचः) = वासनाओं के अस्त होने के द्वारा (शकृत्) = शक्ति को (अप आभरत्) = आनन्दपूर्वक अपने में भरता है [अप हर्षे – आप्टे] । ४. इस प्रकार (पितरा) = द्युलोक व पृथिवीलोक-मस्तिष्क व शरीर इन (पुत्रेभ्यः) = पुत्रों-ऋभु, विभ्वा व वाज के लिए (किं स्वित्) = क्या-क्या (उपावतु) = प्राप्त कराते हैं [अवतिः प्रापणे - सा०] प्रथमाश्रम में ज्ञान प्राप्त होता है तो द्वितीयाश्रम में हिंसाशून्य धन प्राप्त होता है और वानप्रस्थ में वासनाविनाश के द्वारा शक्ति की प्राप्ति होती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्ञान, पवित्र धन तथा शक्ति की प्राप्ति के लिए हमें मस्तिष्क व शरीर दोनों को स्वस्थ बनाना है ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विद्वानों, राष्ट्रवासियों को लाभप्रद उपदेश ।

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुषों के कार्यों का वर्णन । ( एकः ) एक विद्वान् पुरुष (उदकं अव अजति) जल को यन्त्र द्वारा नीचे से ऊपर निकालता है और ( एकः ) दूसरा विद्वान् ( श्रोणाम् ) श्रवण करने योग्य ( गाम् ) उत्तम वाणी को ( अव अजति ) नीचे की तरफ हृदय या नाभिदेश से उठा कर ऊपर मुख द्वारा प्रकट करता है अथवा ( श्रोणाम् श्र्लोणाम् ) श्रवण योग्य, प्रसिद्ध गुणों से युक्त गौ को ( अव अजति ) चराता है अथवा ( श्रोणाम् ) उत्तम भूमि को प्राप्त करता है । और ( एकः ) एक पुरुष ( सूनया ) हल की फाली से या अन्नोत्पादक क्रिया से ( भृतं ) प्राप्त हुए ( मांसम् ) मन को उत्तम लगने वाले अन्नादि को (पिंशति) करता और पैदा करता या उसे रुचिर बनाता है या ( मांसं ) मनन करने योग्य ज्ञान जिसको ( सूनया आस्मृतम् ) गुरु की प्रेरणा या उपदेश क्रिया से प्राप्त किया गया है उसको (पिंशति) पृथक् पद पद करके अभ्यास करे । (एकः) विद्वान् (निभ्रुचः) अस्त जाते सूर्य के ( शकृत् ) शक्ति दायक अंश को ( अप अभरत् ) उससे प्राप्त करता है । ( पुत्रेभ्यः) बहुतों की रक्षा करने में समर्थ विद्वानों के हित के और जो कुछ भी (किंस्वित्) पदार्थ हैं उन्हें (पितरौ) पालक माता और पिता दोनों ( उप आवतुः ) प्राप्त कराना चाहें । ( २ ) पुत्रों में से एक गौ पाले, एक जल लावे, एक सूर्यास्त के पूर्व पूर्व गोबर के कण्डे ले आवे, फिर माता पिता क्या लावें जो पुत्रों से लाना शेष रहे ? कुछ नहीं । पुत्र ही माता पिता की सेवा किया करें । सूर्य की किरणों के तथा भौतिक पदार्थों के पक्ष में—(एकः) वह सूर्य या वायु सूर्य की किरण ( श्रोणाम् गाम् प्रति उदकं अवअजति ) सूखी या सेचने योग्य पृथ्वी पर जल बरसाता है । और एक ( सूनया भृतम् ) उत्पादन क्रिया द्वारा प्राप्त मांसमय शरीर को रूपवान् बनाता है । और एक आदित्य के अस्त होने तक शक्ति का संञ्चार करता है । इन रक्षकों से क्या शेष रहता है जिसे माता पिता के समान आकाश और पृथिवी प्राप्त करावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः– १ विराट् जगती ॥ ३, ५, ६, ८, १२ निचृज्जगती । ७, १० जगती च । ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ४, १३ भुरिक् त्रिष्टुप् । ९ स्वराट् त्रिष्टुप । ११ त्रिष्टुप् । १४ स्वराट् पङ्क्तिः । चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे गाय वासराचे सुख इच्छिते व दुःखापासून बचाव करते. पक्ष्यांना मारणारा मांस घेतो व इतर गोष्टी सोडून देतो, वैद्य रोग्याचा मल दूर करतो तसे जे माता पिता पुत्रांना दुर्गुणांपासून पृथक करून शिक्षण देऊन विद्यायुक्त करतात तेच संतानांचे सुख प्राप्त करतात. ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    One takes water to the disabled cow, the other dresses the wound suffered from accidental hurt, yet another looks after the shed and removes the dirt the whole day till sunset. What would the parents expect of children to approve, more than this?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    As a man brings water (sprinkles) to a fertile land, another throws away the flesh got by killing an animal and as a Vaidya gives medicines to pass excreta from the patient who approaches him, likewise, the parents desire from their sons similar service.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those parents get happiness from their children who remove all the vices of their offspring and make them highly educated and wise. The simile is a cow serves her calf, and a Vaidya (physician) makes his patient free from constipation by passing out excreta from his bowels.

    Foot Notes

    (श्रोणाम् ) श्रोतव्याम् = Good, praiseworthy. (निम्रुच:) नित्यं प्राप्तस्य = Approaching patient. ( सूनया ) हिंसया = By violence or ( पिशति ) पृथक् करोति = Keeps away or separates.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top