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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 168 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 168/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - मरुतः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अव॒ स्वयु॑क्ता दि॒व आ वृथा॑ ययु॒रम॑र्त्या॒: कश॑या चोदत॒ त्मना॑। अ॒रे॒णव॑स्तुविजा॒ता अ॑चुच्यवुर्दृ॒ळ्हानि॑ चिन्म॒रुतो॒ भ्राज॑दृष्टयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अव॑ । स्वऽयु॑क्ताः । दि॒वः । आ । वृथा॑ । य॒युः॒ । अम॑र्त्याः । कश॑या । चो॒द॒त॒ । त्मना॑ । अ॒रे॒णवः॑ । तु॒वि॒ऽजा॒ताः । अ॒चु॒च्य॒वुः॒ । दृ॒ळ्हानि॑ । चि॒त् । म॒रुतः॑ । भ्राज॑द्ऽऋष्टयः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अव स्वयुक्ता दिव आ वृथा ययुरमर्त्या: कशया चोदत त्मना। अरेणवस्तुविजाता अचुच्यवुर्दृळ्हानि चिन्मरुतो भ्राजदृष्टयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अव। स्वऽयुक्ताः। दिवः। आ। वृथा। ययुः। अमर्त्याः। कशया। चोदत। त्मना। अरेणवः। तुविऽजाताः। अचुच्यवुः। दृळ्हानि। चित्। मरुतः। भ्राजद्ऽऋष्टयः ॥ १.१६८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 168; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यूयं त्मना कशया यथा स्वयुक्ता अमर्त्या अरेणवस्तुविजाता भ्राजदृष्टयो मरुतो दिव आययुर्दृढानि चिद्वृथाऽवाऽचुच्यवुस्तथैताञ्चोदत ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (अव) (स्वयुक्ताः) स्वेनैव गच्छन्तः (दिवः) आकाशात् (आ) (वृथा) (ययुः) गच्छन्ति (अमर्त्याः) मरणधर्म्मरहिताः (कशया) शासनेन गत्या वा (चोदत) प्रेरयत (त्मना) आत्मना (अरेणवः) न विद्यन्ते रेणवो येषु ते (तुविजाताः) तुविना बलेन सह प्रसिद्धाः (अचुच्यवुः)। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (दृढानि) (चित्) अपि (मरुतः) वायवः (भ्राजदृष्टयः) भ्राजन्त ऋष्टयो गतयो येषान्ते ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वायवो स्वयमेव गच्छन्त्यागच्छन्ति अग्न्यादीन् धृत्वा दृढत्वेन प्रकाशयन्ति तथा विद्वांसस्स्वयमेवाऽध्यापनोपदेशेषु नियुक्त्वा व्यर्थानि कर्माणि त्यक्त्वा त्याजयित्वा च विद्यासुशिक्षाभिस्सर्वाञ्जनान् द्योतयन्ति ॥ ४ ॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम (त्मना) आत्मा से (कशया) शिक्षा या गति से जैसे (स्वयुक्ताः) अपने से गमन करनेवाले (अमर्त्याः) मरणधर्मरहित (अरेणवः) जिनमें रेणु वालू नहीं विद्यमान (तुविजाताः) बल के साथ प्रसिद्ध और (भ्राजदृष्टयः) जिनकी प्रकाशमान गति वे (मरुतः) पवन (दिवः) आकाश से (आ, ययुः) आते प्राप्त होते हैं और (दृढ़ानि) पुष्ट (चित्) भी पदार्थों को (वृथा) वृथा निष्काम (अव, अचुच्यवुः) प्राप्त होते वैसे इनको (चोदत) प्रेरणा देओ ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पवन आप ही जाते-आते हैं और अग्नि आदि पदार्थों को धारण कर दृढ़ता से प्रकाशित करते हैं, वैसे विद्वान् जन आप ही पढ़ाने और उपदेशों में नियुक्त हो व्यर्थ कामों को छोड़कर और छुड़वा के विद्या और उत्तम शिक्षा से सब जनों को प्रकाशित करते हैं ॥ ४ ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वायू स्वतःच गमनागमन करतात व अग्नी इत्यादी पदार्थांना धारण करून दृढतेने प्रकाशित करतात. तसे विद्वान लोक स्वतःच अध्यापन व उपदेश करून निरर्थक कामाचा त्याग करून, करवून विद्या व उत्तम शिक्षणाने सर्व लोकांना प्रकाशित करतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Self-inspired, self-motivated and self-driven, Maruts descend from the heights of heaven freely, spontaneously and selflessly. Immortal are you, mighty heroes, inspire and excite the will to live with your heart and soul and use the will as a goal and an invitation to life. Pure and unsullied, born of energy and impetuous in motion, wielding weapons of light and lightning, O Maruts, you stir and move even the fixed and immovable mountains.

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