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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 168 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 168/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - मरुतः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क्व॑ स्विद॒स्य रज॑सो म॒हस्परं॒ क्वाव॑रं मरुतो॒ यस्मि॑न्नाय॒य। यच्च्या॒वय॑थ विथु॒रेव॒ संहि॑तं॒ व्यद्रि॑णा पतथ त्वे॒षम॑र्ण॒वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्व॑ । स्वि॒त् । अ॒स्य । रज॑सः । म॒हः । पर॑म् । क्व॑ । अव॑रम् । म॒रु॒तः॒ । यस्मि॑न् । आ॒ऽय॒य । यत् । च्य॒वय॑थ । वि॒थु॒राऽइ॑व । सम्ऽहि॑तम् । वि । अद्रि॑णा । प॒त॒थ॒ । त्वे॒षम् । अ॒र्ण॒वम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्व स्विदस्य रजसो महस्परं क्वावरं मरुतो यस्मिन्नायय। यच्च्यावयथ विथुरेव संहितं व्यद्रिणा पतथ त्वेषमर्णवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्व। स्वित्। अस्य। रजसः। महः। परम्। क्व। अवरम्। मरुतः। यस्मिन्। आऽयय। यत्। च्यवयथ। विथुराऽइव। सम्ऽहितम्। वि। अद्रिणा। पतथ। त्वेषम्। अर्णवम् ॥ १.१६८.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 168; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मरुतोऽस्य रजसो महस्परं क्व स्वित् क्वावरं वर्त्तत इति पृच्छामः। यस्मिन् यूयमायय यच्च्यावयथ यस्मिन् विथुरेव संहितमिदं जगद्येनाद्रिणा सह वायवस्त्वेषमर्णवं विपतथ तदेव सर्वस्य जगतो महत् कारणं वर्त्तत इत्युत्तरम् ॥ ६ ॥

    पदार्थः

    (क्व) कस्मिन् (स्वित्) एव (अस्य) (रजसः) भूगोलस्य (महः) महत् (परम्) कारणम् (क्व) (अवरम्) कार्यम् (मरुतः) विद्वांसः (यस्मिन्) (आयय) आगच्छत। अत्र लोडर्थे लिट्। (यत्) (च्यावयथ) चालयथ (विथुरेव) यथा व्यथितानि (संहितम्) कृतसाधनम् (वि) (अद्रिणा) मेघेन सह (पतथ) अध आगच्छथ (त्वेषम्) सूर्य्यदीप्तिम् (अर्णवम्) समुद्रम् ॥ ६ ॥

    भावार्थः

    यस्मिन्निदं भूगोलादिकं गच्छत्यागच्छति कम्पते तदेवाकाशवत् कारणं विजानीत यस्मिन्नेते लोका उत्पद्यन्ते विद्यन्ते भ्रमन्ति प्रलीयन्ते च तत्परं निमित्तं कारणं ब्रह्मेति ॥ ६ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (मरुतः) विद्वानो ! (अस्य) इस (रजसः) भूगोल का (महः) बड़ा (परम्) कारण (क्व, स्वित्) निश्चय से कहाँ और (क्व) कहाँ (अवरम्) कार्य्य वर्त्तमान है इसको हम लोग पूछते हैं (यस्मिन्) जिसमें तुम (आयय) आओ (यत्) जिसको (च्यावयथ) चलाओ जिसमें (विथुरेव) दबाये पदार्थों के समान (संहितम्) मेल किये हुए यह जगत् है जिससे (अद्रिणा) मेघवृन्द के पवन (त्वेषम्) सूर्य के प्रकाश और (अर्णवम्) समुद्र को (वि, पतथ) नीचे प्राप्त होते हैं वही परब्रह्म सब जगत् का बड़ा कारण है, यही उक्त प्रश्नों का उत्तर है ॥ ६ ॥

    भावार्थ

    जिसमें यह भूगोल आदि जगत् जाता-आता, कम्पता उसीको आकाश के समान कारण जानो, जिसमें ये लोक उत्पन्न होते, भ्रमते और प्रलय हो जाते हैं, वह परम उत्कृष्ट निमित्त कारण ब्रह्म है ॥ ६ ॥

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    विषय

    परले पार

    पदार्थ

    १. हे (मरुतः) = प्राणो! (अस्य महः रजसः) = इस विशाल ब्रह्माण्ड का (परं क्वस्वित्) = परला सिरा कहाँ ? और (क्व अवरम्) = निचला सिरा कहाँ ? इन दोनों में तो आकाश-पाताल का अन्तर है। हे प्राणसाधको! इस परले सिरे से निचला सिरा बहुत पीछे रह गया है। यह परला सिरा सचमुच [पर] उत्कृष्ट है (यस्मिन् आयय) = जिसमें आप अब आ गये हो। इस अश्मन्वती नदी के अवर किनारे पर सब अशुभों को छोड़कर आप शिव वाजोंवाले परले किनारे पर पहुँच गये हो । २. (यत्) = जब आप (संहितम्) = बड़ी दृढ़ता से मानसक्षेत्र में स्थापित वासनाओं को (विरा इव) = अत्यन्त शिथिल वस्तुओं के समान (च्यावयथ) = पृथक् कर देते हो तो (अद्रिणा) = आदरणीय प्रभु के साथ (विपतथ) = विशिष्ट मार्ग पर गति करते हो और (त्वेषम्) = दीप्त (अर्णवम्) = ज्ञान-समुद्र को [विपतथ] प्राप्त करते हो । वेद में वेदज्ञान के लिए 'रायः समुद्राँश्चतुरः' इन शब्दों में समुद्र शब्द का प्रयोग हुआ है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमें इस संसाररूपी अश्मन्वती नदी के परले पार पहुँचना है। उसके लिए प्राणसाधना के द्वारा वासनाओं का उन्मूलन करना है। वासना के उन्मूलन के लिए ही प्रभुस्मरणपूर्वक कार्यों को करना है और ज्ञान प्राप्ति के लिए स्वाध्याय में प्रवृत्त होना है।

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    विषय

    परमेश्वर का सर्वोपरि बल ।

    भावार्थ

    ( अस्य रजसः ) इस महान् लोक का ( परम् ) सबसे उत्कृष्ट ( महः ) बड़ा भारी कारण या आश्रय ( क्व स्वित् ) कहां है । ( क्व अवरम् ) ‘अवर’ अर्थात् उत्पन्न कार्य जगत् कहां, किस पर आश्रित है । हे ( मरुतः ) विद्वान् लोगों ! ( यस्मिन् आयत ) जिस परम आश्रय पर आप पहुंचते हैं उसका उपदेश करो। इसी प्रकार ( रजसः ) जल का उत्कृष्ट कारण सूक्ष्म रूप और ‘अवर’ स्थूल रूप किसके आश्रय है ? और देव गण किसके बल से गति करते हैं ? जिस प्रकार ( विथुरा च्यावयथ ) शिथिल जलों को वायु गिरा देते हैं उसी प्रकार हे विद्वान् पुरुषो ! वह कौनसा बल है जिससे प्रेरित होकर ( विथुरा इव ) व्यथित दुखितों को आप प्राप्त होते हैं और जिस प्रकार वायु गण ( अद्रिणा ) विद्युत् या मेघ से ( त्वेषम् अर्णवम् ) दीप्तिमान् जलमय मेघ को ( वि पतथ ) लाते और बरसाते हैं उसी प्रकार आप लोग भी (संहितं) सर्वत्र समान भाव से व्यापक, सबके लिये हितकारी, ( त्वेषम् ) सूर्य के समान दीप्तिमान् ( अर्णवम् ) समुद्र के समान महान्, सब शक्तियों के सागर की ( अद्रिणा ) मेघ के समान आनन्दवर्षी धर्ममेघ, या आत्मा सहित ( विपतथ ) विशेष विविध उपाओं से प्राप्त करते हो । वह कौन सा है ? उत्तर—वह परमेश्वर है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः– १, ४, निचृज्जगती । २,५ विराट् त्रिष्टुप् । ३ स्वराट् त्रिष्टुप् । ६, ७, भुरिक् त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । ९ निचृत् त्रिष्टुप् । १० पङ्क्तिः ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्याच्यामध्ये हा भूगोल इत्यादी जगत जाते येते, कंपित होते, त्यालाच आकाशाप्रमाणे कारण जाणा. ज्यात हे लोक (गोल) उत्पन्न होतात, भ्रमण करतात व प्रलय होतो तो परम उत्कृष्ट निमित्त कारण ब्रह्म आहे. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Maruts, what is the ultimate beyond this great region of the skies, and what is the ultimate this side wherein you move hither and shake the things concentrated here like precarious objects of no value, or fly down with the clouds to the shining seas?

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The Greatness of God is underlined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! where is the Great and Efficient cause of this universe and where is the effect? This is the question we put to you. The Great and Efficient cause of the whole universe is the Brahma-God. Under His laws you come and move various articles. Under whose command, the winds come along with clouds towards the luster of the sun and the sea? The answer is God is that First Efficient cause of the universe.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    What is the origin of this universe consisting of the earth etc., it comes and goes and trembles ? Who is the Great cause like the sky? In whom all these planets are born, get their sustenance and dissolve at the end? The answer is the Greatest Efficient cause called Brahma or the Supreme Being.

    Foot Notes

    (रजसः) भूगोलस्य — Of the globe. (अद्रिणा) मेघेन सह = With the cloud.

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