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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 43/ मन्त्र 8
    ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरन्त । आ न॑ इन्दो॒ वाजे॑ भज ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । नः॒ । सो॒म॒ऽप॒रि॒बाधः॑ । मा । अरा॑तयः । जु॒हु॒र॒न्त॒ । आ । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । वाजे॑ । भ॒ज॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त । आ न इन्दो वाजे भज ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । नः । सोमपरिबाधः । मा । अरातयः । जुहुरन्त । आ । नः । इन्दो इति । वाजे । भज॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 43; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (मा) निषेधार्थे (नः) अस्मान् (सोमपरिबाधः) ये सोमानुत्तमान् पदार्थान् परितः सर्वतो बाधन्ते ते (मा) निषेधार्थे (अरातयः) शत्रवः (जुहुरन्त) प्रसह्यकारिणो भवन्तु। अत्र हृ प्रसह्यकरणे व्यत्ययेन आत्मनेपदं लङ्यडभावो बहुलं छन्दसि इत्युत्वं वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति अदभ्यस्तात् इति प्राप्तेऽद्भावो न भवति (आ) अभितः (नः) अस्मान् (इन्दो) आर्द्रीकारक सभाध्यक्ष (वाजे) युद्धे (भज) सेवस्व ॥८॥

    अन्वयः

    पुनः स किन्निवारयेदित्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे इन्दो सभाद्यध्यक्ष ! नोऽस्मान् सोमपरिबाधो विरोधिनो मा जुहुरन्त ये नोऽस्माकमरातयः सन्ति ताँस्त्वं कदाचिन्माऽऽभज ॥८॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः परमोत्तमबलसाहित्येन युद्धेन च सर्वान् दुष्टाञ्च्छत्रून् विजित्य सत्यन्याययुक्तं राज्यं कार्य्यमिति ॥८॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह किसका निवारण करे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    हे (इन्दो) सुशिक्षा से आर्द्र करनेवाले सभाध्यक्ष (नः) हम लोगों को (सोमपरिबाधः) जो उत्तम पदार्थों को सब प्रकार दूर करनेवाले विरोधी पुरुष हैं वे हम पर (मा जुहुरन्त) प्रबल न होवें और (अरातयः) जो दान आदि धर्मरहित शत्रु हठ करनेवाले हैं वे (नः) हम लोगों को इन शत्रुओं को (वाजे) युद्ध में पराजय करने को (आभज) अच्छे प्रकार युक्त कीजिये ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। मनुष्यों को अत्यन्त उत्तम बल के साहित्य से परमेश्वर वा सभासेनाध्यक्ष के आश्रय वा अपने पुरुषार्थ युक्त युद्ध में सब शत्रुओं को जीतकर न्याययुक्त होके राज्य का पालन करना चाहिये ॥८॥

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    विषय

    यज्ञशील व दानशील

    पदार्थ

    १. (नः) - हमें (सोमपरिबाधः) नि - [सोमं परितो बाधन्ते] सोम का सब ओर से बाधन करनेवाले, सोमयज्ञों व उत्तम कार्यों का विरोध करनेवाले लोग (मा जुहुरन्तः) - मत दबा लें [प्रसह्यकारिणो भवन्तु, द०] । 
    २. तथा (अरातयः) - दान न देनेवाले समाज के शत्रुभूत लोग (मा) - मत दबानेवाले हों । 
    ३. (इन्दो) - सर्वशक्तिमान् प्रभो ! (नः) - हमें (वाजे) - अपनी शक्ति में (आभज) - सब प्रकार से भागी बनाइए । आपकी शक्ति से शक्ति - सम्पन्न होकर हम सोमपरिबाध तथा अराति लोगों से दबनेवाले न हों, अपितु इनको अपने प्रभाव में लाकर यज्ञशील व दानशील बनाने में समर्थ हों । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - सोमपरिबाध [अयज्ञशील] लोग हमें न दबा पाएँ । हम इन्हें परिवर्तित करनेवाले हों । 
     

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    विषय

    रुद्र, वैद्य, परमेश्वर ।

    भावार्थ

    (सोमपरिबाधः) उत्तम पदार्थों, पुरुषों और राजा और राष्ट्र को पीड़ित करने वाले पुरुष (नः) हम पर (मा जुहुरन्त ) बलात्कार न कर सकें। हे (इन्दो) दयालो, वेग से या द्रुतगति से शत्रुओं पर आक्रमण करनेहारे! तू (नः) हमारे हित के लिए (वाजे) युद्ध के बीच (नः आ भज) हमें नियुक्त कर, या हमें प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-९ कण्वो घौर ऋषिः ॥ देवता १, २, ४—६ रुद्रः । ३ मित्रावरुणौ । ७-९ सोमः ॥ छन्दः—१, ७, ८ गायत्री । ५ विराङ्गायत्री । ६ पादनिचृद्गायत्री । ९ अनुष्टुप् ॥

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    विषय

    फिर वह किसका निवारण करे, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे इन्दः सभाद्यध्यक्ष ! नःअस्मान् सोमपरिबाधः विरोधिनः मा जुहुरन्त ये नःअस्माकम् अरातयः सन्ति तान् त्वं वाजे कदाचित् न मा भज ॥८॥

    पदार्थ

    हे (इन्दो) आर्द्रीकारक सभाध्यक्ष= नम्र (दयालु) स्वभाव के सभा के अध्यक्ष ! (नः) अस्मान्=हमें, (सोमपरिबाधः) ये सोमानुत्तमान् पदार्थान् परितः सर्वतो बाधन्ते ते विरोधिनः=जो सोम आदि उत्तम पदार्थों का हर ओर से प्रतिरोध करते हैं, वे विरोधी (मा) निषेधार्थे=नहीं, (जुहुरन्त) प्रसह्यकारिणो भवन्तु= जबरदस्ती से करनेवाले, (ये)=जो, (नः) अस्माकम्=हमारे, (अरातयः) शत्रवः=शत्रु, (सन्ति)=हैं, (तान्)=उनको, (त्वम्)=तुम, (वाजे) युद्धे=युद्ध में, (कदाचित्)=कभी, (न)=नहीं, (भज) सेवस्व=सेवा करो ॥८॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    मनुष्यों के द्वारा परम उत्तम बल, साहित्य और युद्ध के द्वारा सब दुष्ट शत्रुओं को जीतकर सत्य और न्याय से युक्त राज्य का कार्य स्थापित करना चाहिये ॥८॥

    विशेष

    अनुवादक की टिप्पणियाँ-सोम-सोम नाम की एक बेल प्रकृति में पाई जाती है। इस पौधे का रस सोम कहलाता है।

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (इन्दो) नम्र [अर्थात् दयालु स्वभाव के] सभा के अध्यक्ष ! (नः) हमें (सोमपरिबाधः) जो सोम आदि उत्तम पदार्थों का हर ओर से प्रतिरोध करते हैं, जो विरोधी हैं, वे (मा+जुहुरन्त) जबरदस्ती करनेवाले न हों। (ये) जो (नः) हमारे (अरातयः) शत्रु (सन्ति) हैं, (तान्) उनकी (वाजे) युद्ध में (त्वम्) तुम (भज) सेवा (न+कदाचित्) कभी न करो ॥८॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृत)- (मा) निषेधार्थे (नः) अस्मान् (सोमपरिबाधः) ये सोमानुत्तमान् पदार्थान् परितः सर्वतो बाधन्ते ते (मा) निषेधार्थे (अरातयः) शत्रवः (जुहुरन्त) प्रसह्यकारिणो भवन्तु। अत्र हृ प्रसह्यकरणे व्यत्ययेन आत्मनेपदं लङ्यडभावो बहुलं छन्दसि इत्युत्वं वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति अदभ्यस्तात् इति प्राप्तेऽद्भावो न भवति (आ) अभितः (नः) अस्मान् (इन्दो) आर्द्रीकारक सभाध्यक्ष (वाजे) युद्धे (भज) सेवस्व ॥८॥ विषयः- पुनः स किन्निवारयेदित्युपदिश्यते। अन्वयः- हे इन्दो सभाद्यध्यक्ष ! नोऽस्मान् सोमपरिबाधो विरोधिनो मा जुहुरन्त ये नोऽस्माकमरातयः सन्ति ताँस्त्वं वाजे कदाचिन्माऽऽभज ॥८॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैः परमोत्तमबलसाहित्येन युद्धेन च सर्वान् दुष्टाञ्च्छत्रून् विजित्य सत्यन्याययुक्तं राज्यं कार्य्यमिति ॥८॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी अत्यंत बलयुक्त बनून परमेश्वर व सभासेनाध्यक्षाच्या आश्रयाने आणि आपल्या पुरुषार्थाने युद्धात सर्व शत्रूंना जिंकून न्यायाने राज्याचे पालन करावे. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Lord of beauty and dignity, may the enemies of peace and prosperity and the agents of poverty and adversity never be able to challenge us. Help us and strengthen us in the struggle for peace, prosperity and dignity.

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    Subject of the mantra

    Then whom should he get rid of, this topic has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (indo)= humble, [arthāt dayālu svabhāva ke]=i.e. kind! (naḥ)=to us, (somaparibādhaḥ)=those who resist from all sides the good things like Soma, those who are opposed, they, (mā+juhuranta)=must not be forceful, (ye)=those, (naḥ)=our, (arātayaḥ)=enemy, (santi)=are, (tān)=their, (vāje)=in the battle, (tvam)=you, (bhaja)=serve, (na+kadācit)=never do.

    English Translation (K.K.V.)

    O humble, that is, the president of the assembly of kind nature! Those who oppose us from all sides, those who oppose the good things like Soma, should not force us. Never serve those who are our enemies in the battle.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    By conquering all the evil enemies through human beings' supreme strength, literature and war, the task of establishing a kingdom based on truth and justice should be established.

    TRANSLATOR’S NOTES-

    A creeper plant named Soma is found in nature. The juice of this plant is called Soma.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What else should he remove, is taught in the 8th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O kind President of the Assembly, etc. let not adversaries who put obstacles in the acquisition of good things, harass and injure us, overthrow us. Don't submit to our opponents in battles and always come to our help.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (इन्दो) आद्रीकारक सभाध्यक्ष = O kind President of the Assembly etc. इन्दुः-उन्दी क्लेदने उन्देरिच्चादे: ( उणादि० १.१२ )

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should administer a truthful and just State, conquering all enemies with the help of admirable force and strength.

    Translator's Notes

    The word a has been used in the Mantra, which according to the Vedic Lexicon Nighantu 2.7 means वान इति अन्न नाम (निघ० २.७) food and Nig. 2.9 वाज इति वलनाम (निघ० २.९) Strength. Prof. Wilson has rightly translated it as “food" and Griffith as "give us a share of strength. But to our great surprise, we find Prof. Maxmuller has translated it as “O Indu help us to booty' which is simply absurd and mischievous. Rishi Dayananda has taken the word वाजे in the sense of संग्रामे on the authority of the Nighantu 2.17 वाजे इति संग्राम (निघ० २.१७) Battle.

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