Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 47 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 47/ मन्त्र 9
    ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - विराट्पथ्याबृहती स्वरः - मध्यमः

    तेन॑ नास॒त्या ग॑तं॒ रथे॑न॒ सूर्य॑त्वचा । येन॒ शश्व॑दू॒हथु॑र्दा॒शुषे॒ वसु॒ मध्वः॒ सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तेन॑ । ना॒स॒त्या॒ । आ । ग॒त॒म् । रथे॑न । सूर्य॑ऽत्वचा । येन॑ । शश्व॑त् । ऊ॒हथुः॑ । दा॒शुषे॑ । वसु॑ । मध्वः॑ । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेन नासत्या गतं रथेन सूर्यत्वचा । येन शश्वदूहथुर्दाशुषे वसु मध्वः सोमस्य पीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तेन । नासत्या । आ । गतम् । रथेन । सूर्यत्वचा । येन । शश्वत् । ऊहथुः । दाशुषे । वसु । मध्वः । सोमस्य । पीतये॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 47; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (तेन) पूर्वोक्तेन वक्ष्यमाणेन च (नासत्या) सत्याचरणस्वरूपौ (आ) समन्तात् (गतम्) गच्छतम् (रथेन) विमानादिना (सूर्य्यत्वचा) सूर्य्यइव त्वग् यस्य तेन (येन) उक्तेन (शश्वत्) निरन्तरम् (ऊहथुः) प्रापयतम् (दाशुषे) दानशीलाय मनुष्याय (वसु) कार्य्यकारणद्रव्यं वा (मध्वः) मधुरगुणयुक्तस्य (सोमस्य) पदार्थसमूहस्य (पीतये) पानाय भोगाय वा ॥९॥

    अन्वयः

    पुनस्तौ किं कुर्य्यातामित्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे नासत्या ! युवां येन सूर्य्यत्वचा रथेनागतं तेन दाशुषे मध्वः सोमस्य पीतये शश्वद्वसूहथुः प्रापयतम् ॥९॥

    भावार्थः

    राजपुरुषा यथा स्वहिताय प्रयतन्ते तथैव प्रजासुखायापि प्रयतेरन् ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वे क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    हे (नासत्या) सत्याचरण करने हारे सभासेना के स्वामी ! आप (येन) जिस (सूर्य्यत्वचा) सूर्य्य की किरणों के समान भास्वर (रथेन) गमन करानेवाले विमानादि यान से (आगतम्) अच्छे प्रकार आगमन करें (तेन) उससे (दाशुषे) दानशील मनुष्य के लिये (मध्वः) मधुरगुणयुक्त (सोमस्य) पदार्थसमूह के (पीतये) पान वा भोग के अर्थ (वसु) कार्य्यरूपी द्रव्य को (ऊहथुः) प्राप्त कराइये ॥९॥

    भावार्थ

    राजपुरुष जैसे अपने हित के लिये प्रयत्न करते हैं उसी प्रकार प्रजा के सुख के लिये भी प्रयत्न करें ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सूर्यत्वाच् रथ

    पदार्थ

    १. हे (नासत्या) = जिनके कारण असत्य नहीं रहता, ऐसे प्राणापानो ! (तेन) = उस (सूर्यत्वचा) = [सूर्यरश्मिसदृशेन] सूर्यरश्मियों के समान चमकनेवाले (रथेन) = शरीररूपी रथ से (आगतम्) = हमें प्राप्त होओ, (येन) = जिससे (दाशुषे) = दाश्वान् पुरुष के लिए (वसु) = निवास के लिए आवश्यक धनों को (शश्वत्) = सदा (ऊहथुः) = प्राप्त कराते हो । प्राणसाधना से यह शरीररूपी रथ सूर्य की भाँति चमकनेवाला बनता है, शरीर में निवास के लिए सब आवश्यक वसुओं - तत्वों की प्राप्ति से शारीरिक स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक बना रहता है । २. हे प्राणापानो ! आप (मध्वः सोमस्य) = शहद की भाँति सब भोजनों के सारभूत सोम के (पीतये) = पान व रक्षण के लिए होओ । प्राणसाधना से शरीर में सोम की ऊर्ध्वगति होती है और यह सुरक्षित सोम हमारे जीवन को अत्यन्त मधुर बनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना शरीर को पूर्ण स्वस्थ बनाकर सूर्य के समान दीप्त बनाती है ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सूर्यत्वचा रथ का रहस्य।

    भावार्थ

    हे (नासत्या) सत्याचरण वाले, सत्य मार्ग के प्रवर्त्तक अथवा नासिका के समान प्रमुख स्थान पर विराजने वाले! आप दोनों (दाशुषे) ऐश्वर्य को देने वाले राजा के (मध्वः) अति मधुर (सोमस्य पीतये) ऐश्वर्य को ओषधि रस के समान उपभोग के लिये (येन) जिस रथ से (शश्वत्) सदा से, निरन्तर (वसु) स्थायी ऐश्वर्य, प्रजा के वसाने वाले राष्ट्र को (ऊहथुः) प्राप्त कराते हो (तेन) उस ही (सूर्यत्वचा) सबके प्रेरक, आज्ञापक राजा को, शरीर या भोक्ता आत्मा को त्वचा या देह के समान सुरक्षित रखने वाले (रथेन) रथ से (गतम्) आया जाया करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रस्कण्वः काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः—१, ५ निचृत्पथ्या बृहती। ३, ७ पथ्या बृहती । ६ विराट् पथ्या बृहती । २, ६, ८ निचृत्सतः पंक्तिः । ४, १० सतः पंक्तिः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    फिर वे क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे नासत्या ! युवां येन सूर्य्यत्वचा रथेन आगतं तेन दाशुषे मध्वः सोमस्य पीतये शश्वत् वसु ऊहथुः प्रापयतम् ॥९॥

    पदार्थ

    हे (नासत्या) सत्याचरणस्वरूपौ= ! सत्य आचरण स्वरूप, (युवाम्)=तुम दोनों, (येन) उक्तेन=कहे गये, (सूर्य्यत्वचा) सूर्य्यइव त्वग् यस्य तेन=सूर्य के समान त्वचावाले, (रथेन) विमानदिना= विमान आदि से, (आगतम्) गच्छतम्=आये हो, (तेन) पूर्वोक्तेन वक्ष्यमाणेन च=उस कहे हुए को भी, (दाशुषे) दानशीलाय मनुष्याय=दानशील मनुष्य के लिये, (मध्वः) मधुरगुणयुक्तस्य=मधुर गुण युक्त, (सोमस्य) पदार्थसमूहस्य= पदार्थ समूह का, (पीतये) पानाय भोगाय वा=भोग करने के लिये, (शश्वत्) निरन्तरम्=निरन्तर, (वसु) कार्य्यकारणद्रव्यं वा=कार्य अथवा कारणवाले पदार्थों को, (ऊहथुः) प्रापयतम्=प्राप्त कराइये ॥९॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    राजपुरुष जैसे अपने हित के लिये प्रयत्न करते हैं, उसी प्रकार प्रजा के सुख के लिये भी प्रयत्न करें ॥९॥

    विशेष

    अनुवादक की टिप्पणी- * राजा और प्रजाजन पदों की अनुवृत्ति गत सूक्त से आ रही है, इसका उल्लेख भाष्यकार महर्षि ने मन्त्र तथा सूक्त के भावार्थ में किया है।

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (नासत्या) सत्य आचरण स्वरूप परमेश्वर! (युवाम्) तुम दोनों [राजा और प्रजाजन]*, (येन) कहे गये (सूर्य्यत्वचा) सूर्य के समान त्वचावाले (रथेन) विमान आदि से (आगतम्) आये हो। (तेन) उस कहे हुए को भी (दाशुषे) दानशील मनुष्य के लिये (मध्वः) मधुर गुण युक्त (सोमस्य) पदार्थ समूह का (पीतये) भोग करने के लिये (शश्वत्) निरन्तर (वसु) कार्य अथवा कारणवाले पदार्थों को (ऊहथुः) प्राप्त कराइये ॥९॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (तेन) पूर्वोक्तेन वक्ष्यमाणेन च (नासत्या) सत्याचरणस्वरूपौ (आ) समन्तात् (गतम्) गच्छतम् (रथेन) विमानादिना (सूर्य्यत्वचा) सूर्य्यइव त्वग् यस्य तेन (येन) उक्तेन (शश्वत्) निरन्तरम् (ऊहथुः) प्रापयतम् (दाशुषे) दानशीलाय मनुष्याय (वसु) कार्य्यकारणद्रव्यं वा (मध्वः) मधुरगुणयुक्तस्य (सोमस्य) पदार्थसमूहस्य (पीतये) पानाय भोगाय वा ॥९॥ विषयः- पुनस्तौ किं कुर्य्यातामित्युपदिश्यते। अन्वयः- हे नासत्या ! युवां येन सूर्य्यत्वचा रथेनागतं तेन दाशुषे मध्वः सोमस्य पीतये शश्वद्वसूहथुः प्रापयतम् ॥९॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- राजपुरुषा यथा स्वहिताय प्रयतन्ते तथैव प्रजासुखायापि प्रयतेरन् ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजपुरुष जसे आपल्या हितासाठी प्रयत्न करतात त्याचप्रकारे प्रजेच्या सुखासाठीही प्रयत्न करावेत. ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Ashvins, ever true and dedicated to the light of truth, come by that very chariot of sunbeams by which you always bear and bring the wealth of life for the man of charity, for the taste and protection of the honeyed soma of yajnic glory.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (nāsatyā)= God, who is embodiment of truth, (yuvām) =both of you, [rājā aura prajājana]*=king and people, (yena) =aforesaid, (sūryyatvacā) =having skin like Sun, (rathena) =by aircraft etc., (āgatam) =have arrives, (tena) =to that said too, (dāśuṣe) =for the man having nature of philanthropy, (madhvaḥ)=having melodious qualities, (somasya)=of the substance group, (pītaye)=to enjoy, (śaśvat)=continuously, (vasu)=action or causative substances, (ūhathuḥ) =get obtained.

    English Translation (K.K.V.)

    O God who is the embodiment of truth! You both, the king and the people, have come by a plane etc. which has a skin like the Sun. For that said also, for a charitable person to enjoy a group of substances with sweet qualities, get the continuous work or causative substances.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Just as the royal men try for their own interest, in the same way, they must try for the happiness of the people as well.

    TRANSLATOR’S NOTES-

    The two terms *“rājā aura prajājan” are in continuance from the last hymn, it has been mentioned by the commentator Maharishi Dayanand in the gist of commentary of this mantra and hymn.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O embodiments of truth, come on your vehicle like the aero plane etc. shining like the sun and bring wealth (of-all kinds) to the liberal donor for drinking sweet Soma (herbal juice) and enjoying prosperity.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    ( रथेन) विमानादिना = With the vehicle like the aero plane etc. (सोमस्य) पदार्थसमूहस्य = Of various article ( पीतये ) पानाय भोगाय वा = For drinking or enjoyment.

    Translator's Notes

    As the word सोम (Soma ) is derived from षु-प्रसवैश्वर्ययोः taking the second meaning of wealth or of the articles produced, it may mean पदार्थसमूह: besides Soma Juice with which पीतये पानाय has been used in the Mantra and in the Rishi's commentary. ( षूयन्ते-उत्पद्यन्ते ये ते पदार्था: ऋ० १.२३.१ भाष्ये )

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top