ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 90/ मन्त्र 3
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - पिपीलिकामध्याविराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ते अ॒स्मभ्यं॒ शर्म॑ यंसन्न॒मृता॒ मर्त्ये॑भ्यः। बाध॑माना॒ अप॒ द्विषः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठते । अ॒स्मभ्यम् । शर्म॑ । यं॒स॒न् । अ॒मृताः॑ । मर्त्ये॑भ्यः । बाध॑मानाः । अप॑ । द्विषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते अस्मभ्यं शर्म यंसन्नमृता मर्त्येभ्यः। बाधमाना अप द्विषः ॥
स्वर रहित पद पाठते। अस्मभ्यम्। शर्म। यंसन्। अमृताः। मर्त्येभ्यः। बाधमानाः। अप। द्विषः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 90; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ते कीदृशाः किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
ये द्विषोऽपबाधमाना अमृता विद्वांसः सन्ति ते मर्त्येभ्योऽस्मभ्यं शर्म यंसन् प्रापयन्तु ॥ ३ ॥
पदार्थः
(ते) विद्वांसः (अस्मभ्यम्) (शर्म्म) सुखम् (यंसन्) यच्छन्तु ददतु (अमृताः) जीवन्मुक्ताः (मर्त्येभ्यः) मनुष्येभ्यः (बाधमानाः) निवारयन्तः (अप) दूरीकरणे (द्विषः) दुष्टान् ॥ ३ ॥
भावार्थः
मनुष्यैर्विद्वद्भ्यः शिक्षां प्राप्य दुष्टस्वभावान्निवार्य्य नित्यमानन्दितव्यम् ॥ ३ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वे कैसे हों और क्या करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
जो (द्विषः) दुष्टों को (अप बाधमानाः) दुर्गति के साथ निवारण करते हुए (अमृताः) जीवन्मुक्त विद्वान् हैं (ते) वे (मर्त्येभ्यः) (अस्मभ्यम्) अस्मदादि मनुष्यों के लिये (शर्म) सुख (यंसन्) देवें ॥ ३ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों से शिक्षा को पाकर खोटे स्वभाववालों को दूर कर नित्य आनन्दित हों ॥ ३ ॥
विषय
निर्द्वेषता व कल्याण
पदार्थ
१. (ते) = वे "वरुण, मित्र व अर्यमा" के उपासक (अमृताः) = संसार के विषयों के पीछे न मरनेवाले देवपुरुष (अस्मभ्यम्) = हम (मर्त्येभ्यः) = वासनाओं से आक्रान्त होनेवाले पुरुषों के लिए (शर्म यंसन्) = कल्याण प्राप्त कराएँ । २. अपने जीवन के उदाहरण से तथा ज्ञान देकर वे (द्विषः) = द्वेष की भावनाओं को (अपबाधमानाः) = हमसे परे खदेड़नेवाले हों । वस्तुतः द्वेष की भावना ही सब प्रकार की अशान्तियों का कारण होती है । द्वेष से ऊपर उठा हुआ पुरुष ही शान्ति प्राप्त करता है ।
भावार्थ
भावार्थ = 'वरुण, मित्र व अर्यमा' की वृत्तिवाले लोग सब द्वेषों से ऊपर उठकर औरों को भी द्वेष से ऊपर उठाते हुए शान्ति प्राप्त करनेवाले होते हैं ।
विषय
धर्मात्मा विद्वान् राजा और उसके अधीन वीर जनों और विद्वानों का कर्तव्य ।
भावार्थ
( ते ) वे ( अमृताः ) कभी न मरने वाले अर्थात् यशस्वी, बलवान्, अपराजित, जीवन्मुक्त, दीर्घजीवी, प्रजा, पुत्र, शिष्य, एवं उत्तराधिकारी आदि परम्परा से सदा बने रहने वाले अधिकारी विद्वान् जन (द्विषः) अप्रीति करने योग्य, द्वेष्य, दुष्ट पुरुषों और बुरे, खोटे कर्मों और विचारों को ( अपबाधमानाः ) दूर करते हुए, ( अस्मभ्यं ) हम ( मर्त्येभ्यः ) मरणधर्मा मनुष्यों के लिये ( शर्म ) सुख ( यंसन् ) प्रदान करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः—१,८ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २, ७ गायत्री । ३ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ४ विराड् गायत्री । ५, ६ निचृद् गायत्री । ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
विषय
विषय (भाषा)- फिर वे विद्वान् लोग कैसे हों और क्या करें?यह विषय इस मन्त्र में कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- ये द्विषः अप बाधमाना अमृताः विद्वांसः सन्ति ते मर्त्येभ्यः अस्मभ्यं शर्म यंसन् प्रापयन्तु ॥३॥
पदार्थ
पदार्थः- (ये)=जो, (द्विषः) दुष्टान्=दुष्टों को, (अप) दूरीकरणे=दूर करने में, [उनका] (बाधमानाः) निवारयन्तः=निवारण करते हैं और (अमृताः) जीवन्मुक्ताः= जीवन्मुक्त, अर्थात् बार-बार जन्म लेने के कष्ट से मुक्त हुए, (विद्वांसः) =विद्वान् लोग, (सन्ति)=हैं, (ते) विद्वांसः= विद्वान्, (मर्त्येभ्यः) मनुष्येभ्यः=मनुष्यों के द्वारा, (अस्मभ्यम्)=हमारे लिये, (शर्म्म) सुखम्=सुख को, (यंसन्) प्रापयन्तु-यच्छन्तु ददतु=प्राप्त करायें ॥३॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा विद्वानों से शिक्षा को प्राप्त करके, दुष्ट स्वभावों को दूर करके, नित्य आनन्दित होना चाहिए ॥३॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- (ये) जो (द्विषः) दुष्टों को (अप) दूर करने में [उनका] (बाधमानाः) निवारण करते हैं और (अमृताः) जीवन्मुक्त, अर्थात् बार-बार जन्म लेने के कष्ट से मुक्त हुए (विद्वांसः) विद्वान् लोग (सन्ति) हैं। [उन] (ते) विद्वान् (मर्त्येभ्यः) मनुष्यों के द्वारा (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (शर्म्म) सुख को (यंसन्) प्राप्त करायें ॥३॥
संस्कृत भाग
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा विद्वानों से शिक्षा को प्राप्त करके, दुष्ट स्वभावों को दूर करके, नित्य आनन्दित होना चाहिए ॥३॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी विद्वानांकडून शिक्षण घेऊन दुष्ट स्वभावाच्या माणसांना दूर करून सदैव आनंदात राहावे. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May they, lords of power and intelligence, immortal and free, bring us, for all the mortals, comfort and well-being, keeping off hate and enmity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should they be and what should they do is taught in the third Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May those learned persons who are immortal by nature and liberated in life, bestow upon us mortals happiness, destroying all evils and feelings of animosity.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(यंसन्) यच्छन्तु ददतु = bestow or give. (अमृताः) जीवनमुक्ताः = Liberated in life.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should always enjoy bliss by receiving education from learned persons and casting aside all evil habits.
Subject of the mantra
Then, how should those learned people be and what should they do? This topic is mentioned in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
(ye) =Who, (dviṣaḥ)=to evil ones, (apa)=in removing, [unakā]=their, (bādhamānāḥ) =preventing, (amṛtāḥ) immortal, that is free from the pain of being born again and again, (vidvāṃsaḥ)= scholars, (santi) =are, [una]=by those, (te) =scholars, (martyebhyaḥ)=by people, (asmabhyam) =for us, (śarmma)=happiness, (yaṃsan)=get attained.
English Translation (K.K.V.)
Those who remove the evil and prevent them and are scholars immortal people who are free from the pain of being born again and again. Let us attain happiness through those learned persons.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
By receiving education from learned men, by removing their evil natures, should be happy daily.
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