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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 90/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    मधु॒ नक्त॑मु॒तोषसो॒ मधु॑म॒त्पार्थि॑वं॒ रजः॑। मधु॒ द्यौर॑स्तु नः पि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ । नक्त॑म् । उ॒त । उ॒षसः॑ । मधु॑ऽमत् । पार्थि॑वम् । रजः॑ । मधु॑ । द्यौः । अ॒स्तु॒ । नः॒ । पि॒ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधु। नक्तम्। उत। उषसः। मधुऽमत्। पार्थिवम्। रजः। मधु। द्यौः। अस्तु। नः। पिता ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 90; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्वयं कस्मै कं पुरुषार्थं कुर्य्यामेत्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यथा नोऽस्मभ्यं नक्तं मधूषसो मधूनि पार्थिवं रजो मधुमदुत पिता द्यौर्मध्वस्तु तथा युष्मभ्यमप्येते स्युः ॥ ७ ॥

    पदार्थः

    (मधु) मधुरा (नक्तम्) रात्रिः (उत) अपि (उषसः) दिवसानि (मधुमत्) मधुरगुणयुक्तम् (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितम् (रजः) अणुत्रसरेण्वादि (मधु) माधुर्यसुखकारिका (द्यौः) सूर्यकान्तिः (अस्तु) भवतु (नः) अस्मभ्यम् (पिता) पालकः ॥ ७ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अध्यापकैर्यथा मनुष्येभ्यः पृथिवीस्थाः पदार्था आनन्दप्रदाः स्युस्तथा गुणज्ञानेन हस्तक्रियया च विद्योपयोगः सर्वैरनुष्ठेयः ॥ ७ ॥

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    हिन्दी (5)

    विषय

    फिर हम किसके लिये किस पुरुषार्थ को करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जैसे (नः) हम लोगों के लिये (नक्तम्) रात्रि (मधु) मधुर (उषसः) दिन मधुर गुणवाले (पार्थिवम्) पृथिवी में (रजः) अणु और त्रसरेणु आदि छोटे-छोटे भूमि के कणके (मधुमत्) मधुर गुणों से युक्त सुख करनेवाले (उत) और पिता पालन करनेवाली (द्यौः) सूर्य्य की कान्ति (मधु) मधुर गुणवाली (अस्तु) हो, वैसे तुम लोगों के लिये भी हो ॥ ७ ॥

    भावार्थ

    पढ़ानेवाले लोगों से जैसे मनुष्यों के लिये पृथिवीस्थ पदार्थ आनन्दायक हों, वैसे सब मनुष्यों को गुण, ज्ञान, और हस्तक्रिया से विद्या का उपयोग करना चाहिए ॥ ७ ॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( नक्तम् मधु ) = हमारे लिए रात्रि मधु हो  ( उत ) = और  ( उषस: ) = प्रातः-काल मधु हों  ( पार्थिवम् रजः ) पृथिवी के ग्राम नगरादि  ( मधुमत् ) = माधुर्य युक्त हो  ( नः ) = हमारे लिए  ( पिता ) = बरसात करने से हमारा सबका पालन करनेवाला  ( द्यौः ) =  द्युलोक  ( मधु अस्तु ) = मधुवत् सुखप्रद हो ।  

    भावार्थ

    भावार्थ = हे जगत्पिता परमात्मन्! हमारे लिए, सब रात्रि और प्रातः काल मधुवत् सुखदायक हों। सब नगर ग्राम गृहादि भी सुखजनक हों । यह ऊपर का द्युलोक, जो बरसात द्वारा हम सबका पालक होने से पिता रूप है वह भी सुख देनेवाला हो।

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    विषय

    दिन - रात व पृथिवी - द्युलोक की अनुकूलता

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार ऋत व यज्ञ को अपनाने पर (नः) = हमारे लिए (नक्तम्) = रात्रि (मधु) = माधुर्यवाली हो (उत) = और (उषसः) = उषः काल [दिन] हमारे लिए माधुर्य को लिये हुए हो । २. (पार्थिवं रजः) = यह पार्थिव लोक, जोकि सब ओषधियों का उत्पत्ति - स्थान है (मधुमत्) = माधुर्यवाला हो, और (नः) = हमारा (पिता) = सूर्य - किरणों द्वारा प्राणशक्ति का सञ्चार करके रक्षण करनेवाला यह (द्यौः) = द्युलोक (मधु अस्तु) = माधुर्यवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हमारे कर्म यज्ञात्मक होंगे तो दिन - रात तथा पृथिवी व द्युलोक हमारा कल्याण ही करेंगे ।

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    विषय

    मधुमती ऋचाएं ।

    भावार्थ

    ( नक्तम् मधु ) रात्रि का समय हमारे लिये मधुर, सुखकारी हो । ( उत) और (उषसः ) उपाकाल, प्रभात वेलाएं हमारे लिये मधुर, सुखकारी, शान्तिप्रद, आरोग्यकारक हों । ( पार्थिवं रजः ) पृथिवी की धूलि और पृथिवी पर बसे यह समस्त लोक भी ( मधुमत् ) मधुर गुण से युक्त सुख और आरोग्य कारक और बलकारक हों । ( द्यौः ) सूर्य ( नः ) हमारे (पिता) पालक पिता के समान ( मधु अस्तु ) मधुर, सुखकारी, आरोग्यजनक हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः—१,८ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २, ७ गायत्री । ३ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ४ विराड् गायत्री । ५, ६ निचृद् गायत्री । ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विषय (भाषा)- फिर हम किसके लिये किस पुरुषार्थ को करें, इस विषय को इस मन्त्र में कहा है ॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे विद्वांसः ! यथा नः अस्मभ्यं नक्तं मधु उषसः मधूनि पार्थिवं रजः मधुमत् उत पिता द्यौः मध्व अस्तु तथा युष्मभ्यम् अपि एते स्युः ॥७॥

    पदार्थ

    पदार्थः- हे (विद्वांसः)=विद्वानों ! (यथा)=जिस प्रकार से, (नः) अस्मभ्यम्=हमारे लिये, (नक्तम्) रात्रिः= रात्रि, (मधु) माधुर्यसुखकारिका= मधुर, सुखी करनेवाली और, (उषसः) दिवसानि=दिन, (मधूनि)=मधुर, (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितम्=पृथिवी में जाने हुए, (रजः) अणुत्रसरेण्वादि=अणु और त्रसरेणु आदि, (मधुमत्) मधुरगुणयुक्तम्= मधुर गुण से युक्त को, (उत) अपि=भी, (पिता) पालकः= पालन करनेवाला, (द्यौः) सूर्यकान्तिः= सूर्य की कान्ति, (मध्व)=मधुर, (अस्तु) भवतु=होवे, (तथा)=वैसे ही, (युष्मभ्यम्)=तुम्हारे लिये, (अपि)= भी, (एते)=ये सब, (स्युः)=होवें॥७॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे मनुष्यों के लिये पृथिवी में स्थित पदार्थ आनन्दायक हों, वैसे ही अध्यापकों के द्वारा, गुणों के ज्ञान से हाथों से कर्म करके और विद्या के उपयोग का सबको व्यवहार कराना चाहिए ॥७॥

    विशेष

    अनुवादक की टिप्पणियाँ- त्रसरेणु-:- सूर्य-किरण में गतिमान धूल का कण या परमाणु (सबसे कम कोटि का आदर्श भार माना जाता है)।

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (विद्वांसः) विद्वानों ! (यथा) जिस प्रकार से (नः) हमारे लिये (नक्तम्) रात्रि (मधु) मधुर, सुखी करनेवाली और (उषसः) दिन (मधूनि) मधुर [होते हैं] । (पार्थिवम्) पृथिवी में जाने हुए (रजः) अणु और त्रसरेणु आदि, [अर्थात् सबसे छोटे कण], (मधुमत्) मधुर गुण से युक्त [पदार्थों के लिये] (उत) भी (पिता) पालन करनेवाली, (द्यौः) सूर्य की कान्ति (मध्व) मधुर (अस्तु) होवे, (तथा) वैसे ही (युष्मभ्यम्) तुम्हारे लिये (अपि) भी (एते) ये सब (स्युः) होवें॥७॥

    संस्कृत भाग

    मधु॑ । नक्त॑म् । उ॒त । उ॒षसः॑ । मधु॑ऽमत् । पार्थि॑वम् । रजः॑ । मधु॑ । द्यौः । अ॒स्तु॒ । नः॒ । पि॒ता ॥ विषयः- पुनर्वयं कस्मै कं पुरुषार्थं कुर्य्यामेत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अध्यापकैर्यथा मनुष्येभ्यः पृथिवीस्थाः पदार्था आनन्दप्रदाः स्युस्तथा गुणज्ञानेन हस्तक्रियया च विद्योपयोगः सर्वैरनुष्ठेयः ॥७॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे माणसांसाठी पृथ्वीवरील पदार्थ आनंददायक असतात. तसे अध्यापकांनी सर्व माणसांना गुण, ज्ञान व हस्तक्रियांनी विद्येचा उपयोग करून दिला पाहिजे. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May the night be soothing sweet as honey. May the days be energetic sweet as honey. May the dust of earth be fragrant sweet as honey. And may the sun in heaven, our father, shine bright and sweet as honey.

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    Subject of the mantra

    Then, for whom should we make what effort? This topic has been discussed in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (vidvāṃsaḥ) =scholars, (yathā) =in the manner, (naḥ) =for us, (naktam) =night, (madhu)=sweet, pleasing and, (uṣasaḥ) =days, (madhūni)= sweet, [hote haiṃ] =are, (pārthivam) =known in earth, (rajaḥ)= the atoms and trasareṇu etc., [arthāt sabase choṭe]= i.e. the smallest, (madhumat)= sweet-natured, [padārthoṃ ke liye]=for substances, (uta) =also, (pitā) =nourishing, (dyauḥ) =Sun’s radiance, (madhva) =sweet, (astu) =be, (tathā) =similarly, (yuṣmabhyam) =for you, (api) =also, (ete) =al these, (syuḥ) =be.

    English Translation (K.K.V.)

    O scholars! Just as the nights are sweet, soothing and the days are sweet for us. May the Sun's nourishing radiance be sweet, nourishing even for the atoms and trasareṇu etc. known in the earth, i.e. the smallest, substances having sweet qualities, similarly may all these be for you as well.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. Just as the things on earth are enjoyable for humans, in the same way everyone should be made to practice the use of knowledge by doing work with their hands and using knowledge through teachers.

    TRANSLATOR’S NOTES-

    TRANSLATOR’S NOTES- Trasareṇu:- The mote or atom of dust moving in a sun-beam (considered as an ideal weight either of the lowest denomination)

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