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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 90/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒त नो॒ धियो॒ गोअ॑ग्राः॒ पूष॒न्विष्ण॒वेव॑यावः। कर्ता॑ नः स्वस्ति॒मतः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । नः॒ । धियः॑ । गोऽअ॑ग्राः । पूष॑न् । विष्णो॒ उति॑ । एव॑ऽयावः । कर्त॑ । नः॒ । स्व॒स्ति॒ऽमतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत नो धियो गोअग्राः पूषन्विष्णवेवयावः। कर्ता नः स्वस्तिमतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। नः। धियः। गोऽअग्राः। पूषन्। विष्णो उति। एवऽयावः। कर्त। नः। स्वस्तिऽमतः ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 90; मन्त्र » 5
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे पूषन् विष्णवेवयावश्च विद्वांसो ! यूयं नोऽस्मभ्यं गोअग्रा धियः कर्त्तः। उतापि नोऽस्मान् स्वस्तिमतः कर्त्तः ॥ ५ ॥

    पदार्थः

    (उत) अपि (नः) अस्मभ्यम् (धियः) उत्तमाः प्रज्ञाः कर्माणि च (गोअग्राः) गाव इन्द्रियाण्यग्रे यासां ताः। सर्वत्र विभाषा गोः। (अष्टा०६.१.१२२) अनेन सूत्रेणाऽत्र प्रकृतिभावः। (पूषन्) विद्याशिक्षाभ्यां पुष्टिकर्त्तः (विष्णो) सर्वविद्यासु व्यापनशील (एवयावः) एति जानाति सर्वव्यवहारं येन स एवो बोधस्तं याति प्राप्नोति प्रापयति वा तत्सम्बुद्धौ। मतुवसोरादेशे वन उपसंख्यानम्। (अष्टा०वा०८.३.१) अनेन वार्त्तिकेनात्र सम्बोधने रुः। (कर्त्त) कुरुत। अत्र बहुलं छन्दसीति विकरणस्य लुक् लोडादेशस्य तस्य स्थाने तबादेशः। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (नः) अस्मान् (स्वस्तिमतः) सुखयुक्तान् ॥ ५ ॥

    भावार्थः

    अध्येतृभिर्यथाऽध्यापका विद्याशिक्षाः कुर्य्युस्तथैव सङ्गृह्यैताः सुविचारेण नित्यमुन्नेयाः ॥ ५ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वे क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

    पदार्थ

    हे (पूषन्) विद्या और उत्तम शिक्षा से पोषण करने वा (विष्णो) समस्त विद्याओं में व्यापक होने वा (एवयावः) जिससे सब व्यवहार ज्ञात होता है, उस अगाध बोध को प्राप्त होनेवाले विद्वान् लोगो ! तुम (नः) हम लोगों के लिये (गोअग्राः) इन्द्रिय अग्रगामी जिनमें हों, उन (धियः) उत्तम बुद्धि वा उत्तम कर्मों को (कर्त्त) प्रसिद्ध करो (उत) उसके पश्चात् (नः) हम लोगों को (स्वस्तिमतः) सुखयुक्त करो ॥ ५ ॥

    भावार्थ

    पढ़नेवालों को चाहिये कि पढ़ानेवाले जैसे विद्या की शिक्षा करे, वैसे उनका ग्रहण कर अच्छे विचार से नित्य उनकी उन्नति करें ॥ ५ ॥

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    विषय

    श्रुत्यानुसारिणी क्रिया [वेदानुकूल कर्म]

    पदार्थ

    १. हे (पूषन्) = सबका पोषण करनेवाले प्रभो ! (विष्णो) = [विष् व्याप्तौ] सर्वव्यापक प्रभो ! (एवयावः) = [एवैः याति] सर्वदा क्रियाओं के साथ विचरण करनेवाले प्रभो ! [स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च] आप (नः धियः) = हमारे कर्मों को (गो अग्राः) = वेदवाणी की प्रमुखतावाला (कर्त) = कीजिए । हमारा प्रत्येक कर्म वेदानुकूल हो । धर्म के विषय में परम प्रमाण श्रुति ही तो है । हमारे कर्म श्रुतिमूलक हों । वेद में हमारे जो कर्म प्रतिपादित हैं हम उन्हें ही करनेवाले हों । २. यहाँ 'पूषन्' शब्द पोषण का वाचक होता हुआ 'बल' का संकेत कर रहा है । 'विष्णो' शब्द व्यापकता का प्रतिपादन करता हुआ सर्वज्ञता का सूचक है । 'एवयावः' में क्रिया का संकेत है ही । प्रभु में ये 'बल, ज्ञान व क्रिया' स्वभावतः हैं ही । हम भी इन तीनों को अपनाकर ही धर्ममार्ग पर चलनेवाले होते हैं । "ज्ञान, बल व क्रिया" में से किसी की भी कमी हमारे जीवन को अधूरा कर देती है । ३. (उत) = और इस प्रकार हे प्रभो ! हमारे कर्मों को श्रुति के अनुकूल करते हुए आप (नः) = हमें (स्वस्तिमतः) = कल्याणवाला (कर्त) = कीजिए । धर्म का मार्ग ही सुख का मार्ग हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हम शरीर की शक्ति का पोषण करें । ज्ञान को व्यापक बनाएँ । क्रियाशील हों । हमारी क्रियाएँ श्रुतिमूलक हों, जिससे हमारा कल्याण हो ।

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    विषय

    धर्मात्मा विद्वान् राजा और उसके अधीन वीर जनों और विद्वानों का कर्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( पूषन् ) सबके पोषण करने हारे ! हे ( विष्णो ) व्यापक सामर्थ्य वाले परमेश्वर ! हे ( एवयावः ) ज्ञानों को स्वयं प्राप्त करने और औरों को प्राप्त कराने वाले ( मरुतः ) विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( नः ) हमारी (धियः) बुद्धियों को (गो-अग्राः कर्त्त) उत्तम वेद वाणियों से प्रकाशित होने वाला करो । अर्थात् हमारे कर्म और विचारों में ‘गो-अग्र’ अर्थात् वेदवाणी मुख्य साक्षी रूप से रहे । अथवा—( धियः गो अग्राः) हमारे समस्त विचार उत्तम वाणियों द्वारा आगे आने या प्रकाशित होने वाले हों । हमारे विचार उत्तम वचनों में प्रकाशित हों । इसी प्रकार अधीनस्थ सैनिक आदि अपने नायक से कहते हैं—हे पोषक ! हे विष्णो ! महान् सामर्थ्य और अधिकार वाले नायक ! ( नः धियः गो-अग्राः ) हमारे सब काम तेरी वाणी को आगे रख कर हों । तेरी आज्ञा पहले हो और हमारे कार्य तदनुसार हों । हे ( एवयावः ) गति देने हारे या शीघ्रगामी रथ से जाने हारे महारथ ! तू ( नः ) हमें ( स्वस्तिमतः ) सुख कल्याण से युक्त कर । अथवा— ( धियः गो-अग्राः ) हमारे सब काम ज्ञानवान् आदित्य के समान तेजस्वी पुरुषों के नायकत्व में हो । इति सप्तदशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः—१,८ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २, ७ गायत्री । ३ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ४ विराड् गायत्री । ५, ६ निचृद् गायत्री । ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विषय (भाषा)- फिर वे विद्वान् क्या करें, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे पूषन् विष्णो एवयावश्च विद्वांसः ! यूयं नः अस्मभ्यं गो अग्रा धियः कर्त्तः। उत अपि नः अस्मान् स्वस्तिमतः कर्त्तः ॥५॥

    पदार्थ

    पदार्थः- हे (पूषन्) विद्याशिक्षाभ्यां पुष्टिकर्त्तः=विद्या और शिक्षा से पुष्ट करनेवाले, (विष्णो) सर्वविद्यासु व्यापनशील=समस्त विद्याओं में व्याप्त हो रहे, (एवयावः) एति जानाति सर्वव्यवहारं येन स एवो बोधस्तं याति प्राप्नोति प्रापयति वा तत्सम्बुद्धौ= समस्त व्यवहारों में पहुँचनेवाली बुद्धिवालों, (च)=और, (विद्वांसः)=विद्वान् लोगों ! (यूयम्)=तुम सब, (नः) अस्मभ्यम्= हमें, (गोअग्राः) गाव इन्द्रियाण्यग्रे यासां ताः= इन्द्रियों प्रमुखता देनेवाले, (धियः) उत्तमाः प्रज्ञाः कर्माणि च= और उत्तम प्रज्ञा और कर्मोंवाले, (कर्त्तः) कुरुत=करो, (उत) अपि=भी, (नः) अस्मान्=हमें, (स्वस्तिमतः) सुखयुक्तान्=सुखों से युक्त, (कर्त्तः) कुरुत=करो॥५॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- अध्येताओं को जैसे अध्यापक विद्या और शिक्षा प्राप्त कराते हैं, वैसे ही इनका सङ्ग्रह करके, अच्छे प्रकार से विचार के द्वारा इनकी नित्य उन्नति करें॥५॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (पूषन्) विद्या और शिक्षा से पुष्ट करनेवाले, (विष्णो) समस्त विद्याओं में व्याप्त हो रहे, (एवयावः) समस्त व्यवहारों में पहुँचनेवाली बुद्धिवालों (च) और (विद्वांसः) विद्वान् लोगों ! (यूयम्) तुम सब (नः) हमें (गोअग्राः) इन्द्रियों को प्रमुखता देनेवाले (धियः) और उत्तम प्रज्ञा और कर्मोंवाले (कर्त्तः) करो। (नः) हमें (उत) भी (स्वस्तिमतः) सुखों से युक्त (कर्त्तः) करो॥५॥

    संस्कृत भाग

    उ॒त । नः॒ । धियः॑ । गोऽअ॑ग्राः । पूष॑न् । विष्णो॒ उति॑ । एव॑ऽयावः । कर्त॑ । नः॒ । स्व॒स्ति॒ऽमतः॑ ॥ विषयः- पुनस्ते किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अध्येतृभिर्यथाऽध्यापका विद्याशिक्षाः कुर्य्युस्तथैव सङ्गृह्यैताः सुविचारेण नित्यमुन्नेयाः ॥५॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    अध्ययन करणाऱ्यांनी अध्यापन करणाऱ्याप्रमाणे शिक्षण घ्यावे. तसेच ते ग्रहण करून सुविचाराने सदैव उन्नत व्हावे. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Pusha, lord of health and growth, Vishnu, lord omnipresent, and the leading man of enlightenment may, we pray, guide us to the intelligence and imagination which may issue in the right sense of perception, will and action, and may they confirm us in the good life of plenty and well-being.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should they ( learned) men) do is taught in the fifth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O our nourisher by giving us wisdom and good education, O great scholar pervading in all sciences i. e. well versed in them, O highly educated person, imparting that knowledge to others, give us good advice and prompt us to do noble deeds with our senses. Please make us full of happiness.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (धियः) उत्तमाः प्रज्ञा: कर्मारिण च = Good intellect or advice and good actions. धोरितिकर्मनाम (निघ० २.१ ) धीरिति प्रज्ञानाम (निघ० ३.६) (विष्णो) सर्वविद्यासु व्यापनशील = O Scholar well-versed in all sciences. (एवयाव:) एति जानाति सद्व्यबहारं येन स एवो बोधः तं याति प्राप्नोति प्रापयति वा तत्सम्बुद्धौ । = Full of knowledge and giver of that knowledge to others.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of the students together or collect all the knowledge and education got from the teachers and to spread and advance them thoughtfully.

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    Subject of the mantra

    Then, what should those scholars do? This subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O!(pūṣan) =who strengthen with knowledge and education, (viṣṇo)= pervading all the knowledge, (evayāvaḥ)= those with wisdom who are capable of all things, (ca) =and, (vidvāṃsaḥ) =scholars, (yūyam) =all of you, (naḥ) =to us, (goagrāḥ)= giving importance to senses, (dhiyaḥ)= and those with good intelligence and deeds, (karttaḥ) =make, (naḥ) =to us, (uta) =also, (svastimataḥ) =full of happiness, (karttaḥ) =make.

    English Translation (K.K.V.)

    O you who strengthen with knowledge and education, who are pervaded by all knowledge, who are wise and learned in all manners! You all make us give priority to our senses and have good intelligence and deeds. Fill us with happiness.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Just as teachers receive knowledge and education, so should the students, collect it and develop it daily through good thinking.

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