ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 90/ मन्त्र 4
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
वि नः॑ प॒थः सु॑वि॒ताय॑ चि॒यन्त्विन्द्रो॑ म॒रुतः॑। पू॒षा भगो॒ वन्द्या॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठवि । नः॒ । प॒थः । सु॒वि॒ताय॑ । चि॒यन्तु॑ । इन्द्रः॑ । म॒रुतः॑ । पू॒षा । भगः॑ । वन्द्या॑सः ॥
स्वर रहित मन्त्र
वि नः पथः सुविताय चियन्त्विन्द्रो मरुतः। पूषा भगो वन्द्यासः ॥
स्वर रहित पद पाठवि। नः। पथः। सुविताय। चियन्तु। इन्द्रः। मरुतः। पूषा। भगः। वन्द्यासः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 90; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ते कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
य इन्द्रः पूषा भगश्च वन्द्यासो मरुतस्ते नोऽस्मान् सुविताय पथो विचियन्तु ॥ ४ ॥
पदार्थः
(वि) विशेषार्थे (नः) अस्मान् (पथः) उत्तममार्गान् (सुविताय) ऐश्वर्यप्राप्तये (चियन्तु) चिन्वन्तु। अत्र बहुलं छन्दसीति विकरणलुक् इयङादेशश्च। (इन्द्रः) विद्यैश्वर्यवान् (मरुतः) मनुष्याः (पूषा) पोषकः (भगः) सौभाग्यवान् (वन्द्यासः) स्तोतव्याः सत्कर्त्तव्याश्च ॥ ४ ॥
भावार्थः
विद्वद्भिर्मनुष्यैरैश्वर्यं पुष्टिं सौभाग्यं प्राप्यान्येऽपि तादृशा सौभाग्यवन्तः कर्त्तव्याः ॥ ४ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वे कैसे वर्त्तें, यह उपदेश अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
जो (इन्द्रः) विद्या और ऐश्वर्ययुक्त वा (पूषा) दूसरे का पोषण पालन करनेवाला (भगः) और उत्तम भाग्यशाली (वन्द्यासः) स्तुति और सत्कार करने योग्य (मरुतः) मनुष्य हैं वे (नः) हम लोगों को (सुविताय) ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (पथः) उत्तम मार्गों को (वि चियन्तु) नियत करें ॥ ४ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों से ऐश्वर्य, पुष्टि और सौभाग्य पाकर उस सौभाग्य की योग्यता को औरों को भी प्राप्त करावें ॥ ४ ॥
विषय
इन्द्र - मरुत् - पूषा - भग [शुभ मार्ग]
पदार्थ
१. (इन्द्रः) = इन्द्रियों को जीतनेवाला, (मरुतः) = प्राणों की साधना करनेवाला, (पूषा) = पोषण के लिए आवश्यक सामग्री को जुटानेवाला, (भगः) = भजनीय - सेवनीय धन को प्राप्त करनेवाला ये सब (नः) = हमारे (वन्द्यासः) = वन्दना के योग्य हैं । यहाँ इन्द्रादि शब्द देवताओं के वाचक होते हुए जिन गुणों का संकेत करते हैं, उन गुणों से युक्त पुरुष हमारे लिए वन्दनीय होते ही हैं । २. ये (सुविताय) = उत्तम स्वर्गादि लोकों की प्राप्ति के लिए (पथः) = मार्गों को (विचियन्तु) = अशोभन मार्गों से पृथक् करनेवाले हों । अशुभ मागों को छोड़कर शुभ मार्गों से चलते हुए ये पुरुष उत्तमताओं को प्राप्त करें । वस्तुतः शुभ मार्ग यही है कि हम 'इन्द्र, मरुत्, पूषा व भग' बनें । जितेन्द्रिय बनें । जितेन्द्रियता की सिद्धि के लिए प्राणों की साधनावाले हों । पूषा - अपना पोषण करनेवाले हों । पोषण के लिए उत्तम मार्गों से धन कमानेवाले हों । 'इन्द्र' बनने के लिए 'मरुत्' बनें, 'पूषा' बनने के हेतु 'भग' बनें ।
भावार्थ
भावार्थ = स्वर्ग - सुख - विशेष प्राप्ति का शुभमार्ग यही है कि हम प्राणसाधना द्वारा जितेन्द्रिय बनें, सेवनीय धनों को प्राप्त करके अपना उचित पोषण करें ।
विषय
धर्मात्मा विद्वान् राजा और उसके अधीन वीर जनों और विद्वानों का कर्तव्य ।
भावार्थ
( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान्, विद्यावान् और शत्रुओं का नाश करने वाला ( पूषा ) सबका पोषक, अन्न देने वाला और राजा ( भगः ) उत्तम सेवनीय पदार्थों और गुणों से युक्त परमेश्वर, विद्वान् आचार्य और राजा आदि ( मरुतः ) और विद्वान् वीर तथा वैश्यादि गण, (नः) हमारे (सुविताय) सुखपूर्वक देश देशान्तर में जाने और उत्तम ऐश्वर्यों के प्राप्त करने के लिये ( पथः ) मार्गों और नाना उपायों को ( वि चियन्तु ) निर्धारित करें, बनावें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः—१,८ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २, ७ गायत्री । ३ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ४ विराड् गायत्री । ५, ६ निचृद् गायत्री । ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
विषय
विषय ( भाषा)- फिर वे कैसे व्यवहार करें, यह उपदेश इस मन्त्र में कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- यः इन्द्रः पूषा भगः च वन्द्यासः मरुतः ते नः अस्मान् सुविताय पथः वि चियन्तु ॥४॥
पदार्थ
पदार्थः- (यः)=जो, (इन्द्रः) विद्यैश्वर्यवान्=विद्या के ऐश्वर्यवाले, (पूषा) पोषकः= पोषण करनेवाले, (च)=और, (भगः) सौभाग्यवान्= सौभाग्यवान् हैं, (वन्द्यासः) स्तोतव्याः सत्कर्त्तव्याश्च=स्तुति और आदर किये जाने योग्य भी हैं, (मरुतः) मनुष्याः= मनुष्यों, (ते)=वे, (नः) अस्मान्=हमें, (सुविताय) ऐश्वर्यप्राप्तये=ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये, (पथः) उत्तममार्गान्=उत्तम मार्गों को, (वि) विशेषार्थे=प्रयोजन के लिये, (चियन्तु) चिन्वन्तु=चुनें ॥४॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा पोषण और सौभाग्य को पा करके अन्य लोगों को भी को भी उसी प्रकार से सौभाग्यशाली बनाना चाहिए ॥०४॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- (यः) जो (इन्द्रः) विद्या के ऐश्वर्यवाले, (पूषा) पोषण करनेवाले (च) और (भगः) सौभाग्यवान् हैं। (वन्द्यासः) स्तुति और आदर किये जाने योग्य भी हैं। (ते) वे (मरुतः) मनुष्य लोग (नः) हमें (सुविताय) ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये और (पथः) उत्तम मार्गों को (वि) विशेष प्रयोजन के लिये (चियन्तु) चुनें ॥४॥
संस्कृत भाग
वि । नः॒ । प॒थः । सु॒वि॒ताय॑ । चि॒यन्तु॑ । इन्द्रः॑ । म॒रुतः॑ । पू॒षा । भगः॑ । वन्द्या॑सः ॥ विषयः- पुनस्ते कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- विद्वद्भिर्मनुष्यैरैश्वर्यं पुष्टिं सौभाग्यं प्राप्यान्येऽपि तादृशा सौभाग्यवन्तः कर्त्तव्याः ॥४॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी विद्वानांकडून ऐश्वर्य, पुष्टी व सौभाग्य प्राप्त करावे व ते सौभाग्य इतरांनाही प्राप्त करून द्यावे. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May Indra, lord of power and majesty, Maruts, vibrant powers of nature and leaders of humanity, Pusha, lord of health and growth, Bhaga, lord of plenty and good fortune, all worthy of adoration, select and prepare for us the right paths of living and confirm us in the good life for comfort and well-being.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should learned persons behave is taught further in the fourth Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Learned men should attain wealth, strength and prosperity of all kind and so being fortunate, should make others full of prosperity and good luck.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(सुविताय) ऐश्वर्यप्राप्तये = For the attainment of wealth and prosperity. (मरुतः) मनुष्या: = Mortals, men.
Subject of the mantra
Then how should they behave? This has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
(yaḥ)= Who, (indraḥ) =have opulence of vidya, (pūṣā)=are nurturing, (ca) =and, (bhagaḥ)=are fortunate, (vandyāsaḥ) =are worthy of praise and respect as well, (te) =they, (marutaḥ) =human beings, (naḥ) =to us, (suvitāya)= for attaining opulence, (pathaḥ)=to best paths, (vi) =for a specific purpose, (ciyantu)=should choose.
English Translation (K.K.V.)
Who have opulence of vidya, are nurturing and fortunate. Are also worthy of praise and respect. Those human beings should choose us for attaining opulence and the best paths for a specific purpose.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
By getting nourishment and good fortune from humans, other people should also be made fortunate in the same way.
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