ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 90/ मन्त्र 8
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
मधु॑मान्नो॒ वन॒स्पति॒र्मधु॑माँ अस्तु॒ सूर्यः॑। माध्वी॒र्गावो॑ भवन्तु नः ॥
स्वर सहित पद पाठमधु॑ऽमान् । नः॒ । वन॒स्पतिः॑ । मधु॑ऽमान् । अ॒स्तु॒ । सूर्यः॑ । माध्वीः॑ । गावः॑ । भ॒व॒न्तु॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥
स्वर रहित पद पाठमधुऽमान्। नः। वनस्पतिः। मधुऽमान्। अस्तु। सूर्यः। माध्वीः। गावः। भवन्तु। नः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 90; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरस्माभिः किमर्थं विद्याऽनुष्ठानं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
भो विद्वांसो ! यथा नोऽस्मभ्यं वनस्पतिर्मधुमान् सूर्यश्च मधुमानस्तु नोऽस्माकं गावो माध्वीर्भवन्तु तथा यूयमस्मान् शिक्षध्वम् ॥ ८ ॥
पदार्थः
(मधुमान्) प्रशस्तानि मधूनि सुखानि विद्यन्ते यस्मिन्सः (नः) अस्मदर्थम् (वनस्पतिः) वनानां मध्ये रक्षणीयो वटादिवृक्षसमूहो मेघो वा (मधुमान्) प्रशस्तो मधुरः प्रकाशो विद्यते यस्मिन् सः (अस्तु) भवतु (सूर्यः) ब्रह्माण्डस्थो मार्त्तण्डः शरीरस्थः प्राणो वा (माध्वीः) माध्व्यः (गावः) किरणाः (भवन्तु) (नः) अस्माकं हिताय ॥ ८ ॥
भावार्थः
हे विद्वांसो ! यूयं वयं चेत्थं मिलित्वैवं पुरुषार्थं कुर्याम, येनाऽस्माकं सर्वाणि कार्याणि सिध्येयुः ॥ ८ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर हम लोगों को किसलिए विद्या का अनुष्ठान करना चाहिये ॥
पदार्थ
हे विद्वानो ! जैसे (नः) हम लोगों के लिये (मधुमान्) जिसमें प्रशंसित मधुर सुख है, ऐसा (वनस्पतिः) वनों में रक्षा के योग्य वट आदि वृक्षों का समूह वा मेघ और (सूर्यः) ब्रह्माण्डों में स्थिर होनेवाला सूर्य वा शरीरों में ठहरनेवाला प्राण (मधुमान्) जिसमें मधुर गुणों का प्रकाश है, ऐसा (अस्तु) हो तथा (नः) हम लोगों के हित के लिये (गावः) सूर्य को किरणें (माध्वीः) मधुर गुणवाली (भवन्तु) होवें, वैसी तुम लोग हमको शिक्षा करो ॥ ८ ॥
भावार्थ
हे विद्वान् लोगो ! तुम और हम आओ मिलके ऐसा पुरुषार्थ करें कि जिससे हम लोगों के सब काम सिद्ध होवें ॥ ८ ॥
विषय
वनस्पतियाँ, सूर्य व गौएँ
पदार्थ
१. (नः) = हमारे लिए (वनस्पतिः) = सब वनस्पतियाँ (मधुमान्) = माधुर्य को लिये हुए हों । (सूर्यः) = इन वनस्पतियों में प्राणशक्ति का सञ्चार करनेवाला सूर्य (मधुमान्) = माधुर्यवाला हो । उन वनस्पतियों का सेवन करके (गावः) = गौएँ (नः) = हमारे लिए (माध्वीः) = मधुर दुग्ध देनेवाली (भवन्तु) = हों । २. हमारा जीवन ऋतमय होने पर 'वनस्पतियाँ, सूर्य व गौएँ' सभी हमारे लिए हितकर होते
भावार्थ
भावार्थ = हमारे लिए यज्ञमय जीवन के परिणामस्वरूप 'वनस्पतियाँ, सूर्य व गौएँ' सभी माधुर्य को लिये हुए हों ।
विषय
मधुमती ऋचाएं ।
भावार्थ
( वनस्पतिः नः मधुमान् ) वनस्पति हमारे लिये मधुर रस, फल और छाया से युक्त हो और (सूर्यः नः मधुमान् अस्तु) सूर्य और शरीर गत प्राण हमारे लिये मधुर सुखदायी प्रकाश और बल देने वाला हो । ( नः ) हमारी ( गावः ) गौ आदि पशु और सूर्य की किरणें और वेद वाणियें और देहगत इन्द्रियें ( नः ) हमें क्रम से ( माध्वीः भवन्तु ) मधुर दुग्ध, घृत आदि रस, मधुर प्रकाश से उत्पन्न होने वाले रोग नाशक प्रभाव, ज्ञान और सुखप्रद अनुभव देने वाले हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः—१,८ पिपलिकामध्या निचृद्गायत्री । २, ७ गायत्री । ३ पिपीलिकामध्या विराड् गायत्री । ४ विराड् गायत्री । ५, ६ निचृद् गायत्री । ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
विषय
विषय (भाषा)- फिर हम लोगों को किसलिए विद्या का अनुष्ठान करना चाहिये ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- भो विद्वांसः ! यथा नः अस्मभ्यं वनस्पतिः मधुमान् सूर्यः च मधुमान् अस्तु नःअस्माकं गावः माध्वीः भवन्तु तथा यूयम् अस्मान् शिक्षध्वम्॥८॥
पदार्थ
पदार्थः- (भो)=हे (विद्वांसः)=विद्वानों ! (यथा)=जिस प्रकार से, (नः) अस्मभ्यम्=हमारे लिये, (वनस्पतिः) वनानां मध्ये रक्षणीयो वटादिवृक्षसमूहो मेघो वा=वनों में वट आदि के वृक्षों के समूह और बादल रक्षा किये जाने योग्य हैं, (मधुमान्) प्रशस्तानि मधूनि सुखानि विद्यन्ते यस्मिन्सः=प्रशस्त मधुर सुखवाले, (सूर्यः) ब्रह्माण्डस्थो मार्त्तण्डः शरीरस्थः प्राणो वा=ब्रह्माण्ड में स्थित सूर्य या शरीर में स्थित प्राण में, (च)=भी, (मधुमान्) प्रशस्तो मधुरः प्रकाशो विद्यते यस्मिन् सः= प्रशस्त और मधुर प्रकाशवाला, (अस्तु) भवतु=होवे, (नः) अस्माकं हिताय=हमारी भलाई के लिये, (गावः) किरणाः=सूर्य की किरणें, (माध्वीः) माध्व्यः=मधुर, (भवन्तु)=होवें, (तथा)=वैसे ही, (यूयम्)=तुम सब, (अस्मान्)=हमें, (शिक्षध्वम्)=शिक्षित कीजिये॥८॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- हे विद्वानों ! तुम सब और हम इस प्रकार मिल करके ऐसा ही पुरुषार्थ करें, जिससे हम लोगों के समस्त कार्य सिद्ध होवें ॥८॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- (भो) हे (विद्वांसः) विद्वानों ! (यथा) जिस प्रकार से (नः) हमारे लिये (वनस्पतिः) वनों में वट आदि के वृक्षों के समूह और बादल रक्षा किये जाने योग्य हैं, (मधुमान्) प्रशस्त मधुर सुखवाले (सूर्यः) ब्रह्माण्ड में स्थित सूर्य या शरीर में स्थित प्राण में (च) भी (मधुमान्) प्रशस्त और मधुर प्रकाशवाला (अस्तु) होवे। (नः) हमारी भलाई के लिये (गावः) सूर्य की किरणें (माध्वीः) मधुर (भवन्तु) होवें, (तथा) वैसे ही (यूयम्) तुम सब (अस्मान्) हमें (शिक्षध्वम्) शिक्षित कीजिये॥८॥
संस्कृत भाग
मधु॑ऽमान् । नः॒ । वन॒स्पतिः॑ । मधु॑ऽमान् । अ॒स्तु॒ । सूर्यः॑ । माध्वीः॑ । गावः॑ । भ॒व॒न्तु॒ । नः॒ ॥ विषयः- पुनरस्माभिः किमर्थं विद्याऽनुष्ठानं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- हे विद्वांसो ! यूयं वयं चेत्थं मिलित्वैवं पुरुषार्थं कुर्याम, येनाऽस्माकं सर्वाणि कार्याणि सिध्येयुः ॥८॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वान लोकांनो! तुम्ही व आम्ही मिळून असा पुरुषार्थ करावा की ज्यामुळे आमचे सर्व कार्य सिद्ध व्हावे. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May the trees be full of honey for us. May the sun be full of honey for us. May the cows be abundant in honey sweet milk for us.
Subject of the mantra
Then, why should we have commencement of study of vidya?
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
(bho) =O! (vidvāṃsaḥ) =scholars, (yathā)= just as, (naḥ) =for us, (vanaspatiḥ)= groups of banyan trees and clouds in forests are worth protecting, (madhumān)= full of sweet pleasure,s (sūryaḥ)= In the sun present in the universe or in the life present in the body, (ca) =also, (madhumān)= bright and sweet light, (astu) =be, (naḥ) =for our well-being, (gāvaḥ) =Sun rays, (mādhvīḥ) =sweet, (bhavantu) =be, (tathā) =similarly, (yūyam) =all of you, (asmān) =to us, (śikṣadhvam) =educate.
English Translation (K.K.V.)
O scholars! Just as the clusters of banyan trees and clouds in the forests are worthy of protection for us, let the Sun present in the universe with its vast and sweet happiness or the life force present in the body also have vast and sweet light. May the Sun's rays be sweet for our well-being, similarly you all should educate us.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
O scholars! All of you and we should work together like this so that all our works get accomplished.
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