Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 92 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 92/ मन्त्र 15
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - उषाः छन्दः - विराट्परोष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    यु॒क्ष्वा हि वा॑जिनीव॒त्यश्वाँ॑ अ॒द्यारु॒णाँ उ॑षः। अथा॑ नो॒ विश्वा॒ सौभ॑गा॒न्या व॑ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒क्ष्व । हि । वा॒जि॒नी॒ऽव॒ति॒ । अश्वा॑न् । अ॒द्य । अ॒रु॒णान् । उ॒षः॒ । अथ॑ । नः॒ । विश्वा॑ । सौभ॑गानि । आ । व॒ह॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युक्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वाँ अद्यारुणाँ उषः। अथा नो विश्वा सौभगान्या वह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युक्ष्व। हि। वाजिनीऽवति। अश्वान्। अद्य। अरुणान्। उषः। अथ। नः। विश्वा। सौभगानि। आ। वह ॥ १.९२.१५

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 92; मन्त्र » 15
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः सा किं करोतीत्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    हे स्त्रि यथा वाजिनीवत्युषोऽरुणानश्वान्युक्ष्व युनक्ति। अथेत्यनन्तरं नोऽस्मभ्यं विश्वाऽखिलानि सौभगानि प्रापयति हि तथाद्य त्वं शुभान् गुणान् युङ्ग्ध्यावह ॥ १५ ॥

    पदार्थः

    (युक्ष्व) युनक्ति। अत्र बहुलं छन्दसीति विकरणस्य लुक्। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (हि) खलु (वाजिनीवति) वाजयन्ति ज्ञापयन्ति गमयन्ति वा यासु क्रियासु ताः प्रशस्ता वाजिन्यो विद्यन्तेऽस्यां सा (अश्वान्) वेगवतः किरणान् (अद्य) अस्मिन्नहनि (अरुणान्) अरुणविशिष्टान् (उषः) उषाः (अथ) अनन्तरम्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (विश्वा) अखिलानि (सौभगानि) सुभगानां सुष्ठ्वैश्वर्यवतां पुरुषाणाम् (आ) समन्तात् (वह) प्रापय ॥ १५ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि प्रतिदिनं सततं पुरुषार्थेन विना मनुष्याणामैश्वर्य्यप्राप्तिर्जायते तस्मादेवं तैर्नित्यं प्रयतितव्यं यत ऐश्वर्य्यं वर्धेत ॥ १५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

    पदार्थ

    हे स्त्रि ! जैसे (वाजिनीवति) जिसमें ज्ञान वा गमन करानेवाली क्रिया हैं, वह (उषः) प्रातःसमय की वेला (अरुणान्) लाल (अश्वान्) चमचमाती फैलती हुई किरणों का (युक्ष्व) संयोग करती है, (अथ) पीछे (नः) हम लोगों के लिये (विश्वा) समस्त (सौभगानि) सौभाग्यपन के कामों को अच्छे प्रकार प्राप्त कराती (हि) ही है, वैसे (अद्य) आज तू शुभगुणों से युक्त और (आवह) सब ओर से प्राप्तकर ॥ १५ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। प्रतिदिन निरन्तर पुरुषार्थ के विना मनुष्यों को ऐश्वर्य्य की प्राप्ति नहीं होती, इससे उनको चाहिये कि ऐसा पुरुषार्थ नित्य करें, जिससे ऐश्वर्य बढ़े ॥ १५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सौभगों की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. हे (वाजिनीवति) = हविर्लक्षण अन्नों से युक्त, यज्ञादि क्रियाओंवाली (उषः) = उषा देवी ! (हि) = निश्चय से (अद्य) = आज (अरुणान् अश्वान्) = अरुण वर्ण के किरणरूप अश्वों को (युक्ष्व) = तू अपने रथ में जोत, अर्थात् अरुण वर्ण की किरणों को लिये हुए तू उदय हो । २. (अथ) = अब उदय होकर (नः) = हमारे लिए (विश्वा सौभगानि) = सम्पूर्ण सौभाग्यों को (आवह) = प्राप्त करा । 'ऐश्वर्यस्य समनस्य धर्मस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा' "ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य" = ये छह भग हैं । उषा से इनकी प्राप्ति के लिए यहाँ प्रार्थना की गई है । जीवन के प्रातः सवन में ऐश्वर्य व धर्म का, माध्यन्दिन सवन में यश व श्री तथा सायन्तन सवन में ज्ञान और वैराग्य का महत्त्व है । इस सब भगों को उस - उस समय यह उषा ही प्राप्त कराती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ = उषा आये और हमारे लिए सौभगों को लानेवाली हो ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उत्तम गृहपत्नी का स्वरूप ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (उषः) उषा प्रातकाल के समय उत्तम ज्ञान उत्पन्न करने वाली नाना क्रियाओं से युक्त होने से ‘वाजिनीवती’ है वह ( अरुणान् अश्वान् ) लाल घोड़ों के समान लाल वर्ण के प्रकाशों को फैलाती है, उसी प्रकार हे ( उषः ) कान्तिमती नववधू ! तू ( वाजिनीवती ) उत्तम ऐश्वर्यजनक मङ्गल क्रियाओं को करने हारी होकर ( अरुणान् ) लाल वर्ण के, या बें रोक चलने वाले ( अश्वान् ) अश्वों को ( युक्ष्व ) रथमें लगा और ( अरुणान् ) स्नेह से युक्त अश्व के समान बलवान् पुरुषों को ( युक्ष्व ) अपने अधीन भृत्य नियुक्त कर ( अथ ) और ( नः ) हमें ( विश्वा सौभगानि ) समस्त उत्तम ऐश्वर्यों को ( आवह ) प्राप्त करा ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, २ निचृज्जगती । ३ जगती । ४ विराड् जगती । ५, ७, १२ विराड् त्रिष्टुप् । ६, १२ निचृत्त्रिष्टुप् ८, ९ त्रिष्टुप् । ११ भुरिक्पंक्तिः । १३ निचृत्परोष्णिक् । १४, १५ विराट्परोष्णिक् । १६, १७, १८ उष्णिक् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. प्रत्येक दिवशी सतत पुरुषार्थाशिवाय माणसांना ऐश्वर्याची प्राप्ती होत नाही. त्यामुळे त्यांनी असा पुरुषार्थ नित्य करावा की ज्यामुळे ऐश्वर्य वाढेल. ॥ १५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Dawn, lady of radiance and the energy and vibrancy of life, yoke the red rays of sunbeams to your celestial chariot and then bear and bring us all the wealths and good fortunes of the world.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What does Usha do is taught further in the fifteenth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O lady! As the Usha enriched with noble actions yokes in purple rays and causes us to enjoy all felicities, in the same manner, you should also help us in cultivating noble virtues.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (वाजिनीवति) वाजयन्ति ज्ञापयन्ति गमयन्ति वा यासु क्रियासु ताः प्रशस्ता वाजिन्य: विद्यन्ते अस्यां सा = Enriched with noble actions that lead to happiness and peace. (अश्वान्) वेगवतः किरणान् = Speedy rays.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men can not attain prosperity without constant exertion, therefore they should always endeavour in such a way as to grow in wealth (both material and spiritual) more and more.

    Translator's Notes

    The word वाजिनी is derived from वज-गतौ गतेस्त्रयोथ: ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च here the first two meanings have been taken, hence the above interpretation. At dawn meditation on God, and study of the Vedas and Yajnas are performed which lead to happiness, bliss and peace; therefore the above epithet for Usha. अश्व इति पदनाम ( निघ० ५.३) पद-गतौ गतेस्त्रयोऽर्थाः प्रत्र प्राप्त्यर्थमादाय प्रापयन्ति प्रकाशमिति प्रश्वाः किरणा:

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top