ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 124/ मन्त्र 5
ऋषिः - अग्निवरुणसोमानां निहवः
देवता - यथानिपातम्
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
निर्मा॑या उ॒ त्ये असु॑रा अभूव॒न्त्वं च॑ मा वरुण का॒मया॑से । ऋ॒तेन॑ राज॒न्ननृ॑तं विवि॒ञ्चन्मम॑ रा॒ष्ट्रस्याधि॑पत्य॒मेहि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनिःऽमा॑याः । ऊँ॒ इति॑ । त्ये । असु॑राः । अ॒भू॒व॒न् । त्वम् । च॒ । मा॒ । व॒रु॒ण॒ । का॒मया॑से । ऋ॒तेन॑ । रा॒ज॒न् । अनृ॑तम् । वि॒ऽवि॒ञ्चन् । मम॑ । रा॒ष्ट्रस्य॑ । अधि॑ऽपत्यम् । आ । इ॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
निर्माया उ त्ये असुरा अभूवन्त्वं च मा वरुण कामयासे । ऋतेन राजन्ननृतं विविञ्चन्मम राष्ट्रस्याधिपत्यमेहि ॥
स्वर रहित पद पाठनिःऽमायाः । ऊँ इति । त्ये । असुराः । अभूवन् । त्वम् । च । मा । वरुण । कामयासे । ऋतेन । राजन् । अनृतम् । विऽविञ्चन् । मम । राष्ट्रस्य । अधिऽपत्यम् । आ । इहि ॥ १०.१२४.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 124; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(त्ये-उ-असुराः) वे प्राणों-इन्द्रियों में रमण करनेवाले कामभाव विषय (निर्मायाः-अभूवन्) प्रज्ञारहित-रुचिरहित हो जावें (वरुण) हे प्राण ! तू (त्वं च) तू भी (कामयासे) नहीं काङ्क्षा करता है। ऐसा तू कर कि (राजन्) हे राजा के समान अधिकारकर्ता ! (ऋतेन-अनृतं विविञ्चन्) ज्ञान से ज्ञान प्राप्त करके असत्य शरीर को पृथक् कर (मम राष्ट्रस्य) मेरे स्वतन्त्रतारूप राष्ट्र के (आधिपत्यम् एहि) स्वामित्व को प्राप्त कर, यहाँ शरीर का अधिपति है, वहाँ मोक्ष में साङ्कल्पिक प्राण होकर आधिपत्य स्वामित्व कर ॥५॥
भावार्थ
शरीर में काम सांसारिक भोग नहीं चाहते हैं, मोक्ष को चाहते हैं, जहाँ आत्मा का स्वतन्त्र राज्य है, साङ्कल्पिक शरीर है ॥५॥
विषय
प्रभु के शासन में
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार जब मैं प्रभु का वरण करता हुआ गति करता हूँ, उस समय (त्ये) = वे (असुरा) = आसुरभाव (उ) = निश्चय से (निर्माया:) = माया से रहित (अभूवन्) = हो जाते हैं, इनकी माया का प्रभाव मेरे पर नहीं होता (च) = और हे (वरुण) = सब पापों का निवारण करनेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप (मा कामयासे) = मुझे चाहते हैं, मैं आपका प्रिय होता हूँ। जब आसुरभावों से हम ऊपर उठ जाते हैं तो प्रभु के प्रिय तो बनते ही हैं । [२] हे राजन्! मेरे जीवन राज्य के अधिपति प्रभो ! (ऋतेन अनृतं विविञ्चन्) = ऋत से अनृत को पृथक् करते हुए आप (मम) = मेरे (राष्ट्रस्य) = राष्ट्र के (अधिपत्यम्) = स्वामित्व को (एहि) = प्राप्त होइये। मेरे जीवन की प्रत्येक क्रिया आपके आदेश से हो। इस जीवन में अनृत का प्रवेश न हो, ऋत ही ऋत का समावेश हो ।
भावार्थ
भावार्थ- मैं प्रभु का वरण करूँ। आसुरभाव मायाशून्य हो जाएँ। मेरे जीवन - राज्य का अधिपति प्रभु हो ।
विषय
दोनों आत्माओं का साक्षात् योग दर्शन।
भावार्थ
उस ज्ञान-दशा में (त्ये असुराः) वे नाना प्राण के बल पर रमण करने वाले आंख, नाक, कान आदि प्राणगण (निर्मायाः अभूवन्) माया, अर्थात् चेतना आदि से रहित, बुद्धिहीन हो जाते हैं। और हे (वरुण) सर्वश्रेष्ठ, प्रभो ! (त्वं च मा कामयासे) उस समय तू मुझे चाहा करता है। तब तू हे (राजन्) प्रकाशस्वरूप प्रभो ! स्वामिन् ! (ऋतेन) सत्य ज्ञान से (अनृतं विविञ्चन्) असत्य का विवेक करता हुआ (मम राष्ट्रस्य) मेरे प्रकाशयुक्त अन्तःकरण-स्वाराज्य के (आधिपत्यम् एहि) पूर्ण स्वामित्व को प्राप्त करता है। इति नवमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१, ५–९ अग्निवरुणमोमानां निहवः । २—४ अग्निः। देवता—१—४ अग्निः। ५-८ यथानिपातम्। ९ इन्द्रः। छन्द:– १, ३, ८ त्रिष्टुप्। २, ४, ९ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ विराट् त्रिष्टुप्। ६ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ७ जगती। नवर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(त्ये-उ-असुराः) ते खलु असुषु प्राणेषु खल्विन्द्रियेषु रममाणाः कामा विषयाः (निर्मायाः-अभूवन्) प्रज्ञारहिता न तेषु मम प्रज्ञा बुद्धिर्यद्वा रुचिरस्ति तथा ते भूता भवन्ति वा (वरुण त्वं च मा कामयासे) हे प्राण ! त्वं च मा काङ्क्षसि, तर्हि त्वमेवं कुरु (राजन्) हे राजेवाधिकारकर्तः ! (ऋतेन-अनृतं विविञ्चन्) सत्यज्ञानेन सत्यज्ञानं प्राप्य तथाऽनृतमसत्यमस्थिरं शरीरं पृथक् कुर्वन् त्यजन् “विचिर् पृथग्भावे [रुधादि०] त्यक्त्वेत्यर्थः (मम राष्ट्रस्य-आधिपत्यम्-एहि) मम स्वतन्त्रतारूपस्य राष्ट्रस्य स्वामित्वं प्राप्नुहि, अत्र शरीरस्याधिपतिरसि मोक्षे साङ्कल्पिकः प्राणो भूत्वाऽऽधिपत्यं कुरु ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
When I get the freedom of my state of being, let the demonic forces be void of their powers, and O Varuna, lord of love, justice and fulfilment, pray bless me with love and protection. O ruling lord of existence, eliminating untruth by the rule of truth and divine law, come and take over the ultimate sovereignty of my free state.
मराठी (1)
भावार्थ
जेथे आत्म्याचे स्वतंत्र राज्य आहे. साङ्कल्पिक शरीर आहे. तेथे काम, सांसारिक भोग इच्छित नाहीत तर मोक्ष इच्छितात. ॥५॥
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