ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 124/ मन्त्र 6
ऋषिः - अग्निवरुणसोमानां निहवः
देवता - यथानिपातम्
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इ॒दं स्व॑रि॒दमिदा॑स वा॒मम॒यं प्र॑का॒श उ॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षम् । हना॑व वृ॒त्रं नि॒रेहि॑ सोम ह॒विष्ट्वा॒ सन्तं॑ ह॒विषा॑ यजाम ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । स्वः॑ । इ॒दम् । इत् । आ॒स॒ । वा॒मम् । अ॒यम् । प्र॒ऽका॒शः । उ॒रु । अ॒न्तरि॑क्षम् । हना॑व । वृ॒त्रम् । निः॒ऽएहि॑ । सो॒म॒ । ह॒विः । त्वा॒ । सन्त॑म् । ह॒विषा॑ । य॒जा॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं स्वरिदमिदास वाममयं प्रकाश उर्व१न्तरिक्षम् । हनाव वृत्रं निरेहि सोम हविष्ट्वा सन्तं हविषा यजाम ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । स्वः । इदम् । इत् । आस । वामम् । अयम् । प्रऽकाशः । उरु । अन्तरिक्षम् । हनाव । वृत्रम् । निःऽएहि । सोम । हविः । त्वा । सन्तम् । हविषा । यजाम ॥ १०.१२४.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 124; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे शरीर में वर्तमान इन्द्रियगण ! (इदं स्वः) यह सुख मोक्षरूप (इदम्-इत्-वामम्-आस) यह ही वननीय है (अयं प्रकाशः) यह प्रकाशलोक प्रकाशमान मोक्ष (उरु-अन्तरिक्षम्) महान् अवकाशरूप है, न कि अन्धकार बन्धनरूप (निर् एहि) शरीर से निकल (वृत्रं हनाव) पापसम्पर्क को नष्ट कर, स्थिर साङ्कल्पिक सामर्थ्य को धारण कर (त्वा हविः सन्तं हविषा यजाम) तुझे ग्राह्य होते हुए को ग्राह्य साङ्कल्पिक सुख से सङ्गत होते हैं ॥६॥
भावार्थ
मोक्ष का इच्छुक जीवन्मुक्त जन अपने इन्द्रियगण को शरीर से बाहिर अपने साथ निकलने की प्रेरणा करता है, मोक्ष में उनके लिये साङ्कल्पिक स्थिर सुख मिलते हैं, आत्मा के साथ इन्द्रियशक्ति भी जाती है, ऐसा आया है ॥६॥
विषय
प्रकाशमय जीवन
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार जब हमारे जीवन राष्ट्र के अधिपति प्रभु होते हैं तो (इदम्) = यह प्रभु का साम्राज्य ही (स्वः) = स्वर्ग होता है अथवा प्रकाशमय होता है । (इदं इत्) = यह ही निश्चय से (वामम्) = सुन्दर (आस) = होता है । (अयं प्रकाश:) = यह प्रकाश ही प्रकाश होता है, वहाँ किसी प्रकार का अन्धकार नहीं होता (उरु अन्तरिक्षम्) = यह प्रभु का राष्ट्र बना हुआ मेरा जीवन विशाल अन्तरिक्ष के समान होता है। इसमें सभी के लिए स्थान होता है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' सारी पृथ्वी इस व्यक्ति का परिवार बन जाती है। [२] इसकी प्रार्थना का स्वरूप यह होता है कि हे (सोम) = शान्त प्रभो ! (निः एहि) = आप मुझे निश्चय से प्राप्त होइये। मैं आपसे मिलकर, अर्थात् हम दोनों (वृत्रं हनाव) = ज्ञान की आवरणभूत वासना का हनन करें। (हविः सन्तं त्वा) = हवीरूप आपका हवि के द्वारा हम उपासन करें। हम त्यागपूर्वक अदन करनेवाले बनें और त्यागस्वरूप आपको प्राप्त करनेवाले हों। यज्ञरूप आपका यज्ञ के द्वारा ही तो उपासन हो सकता है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु का राज्य बना हुआ जीवन ही स्वर्गतुल्य, सुन्दर, प्रकाशमय व विशाल अन्तरिक्ष के समान है। प्रभु से मिलकर हम वासना का विनाश करें। हवीरूप प्रभु का हवि के द्वारा उपासन करें।
विषय
आत्म-साक्षात्कार, आत्मा सुखमय और प्रकाशमय।
भावार्थ
(इदं स्वः) यह साक्षात् सुखस्वरूप है, (इदम् इत् वामम् आस) यह सबसे उत्तम सेवन करने योग्य है। (अयम् प्रकाशः) यह उत्तम प्रकाशस्वरूप है। यह (उरु अन्तरिक्षम्) विशाल भीतरी निवास करने वाले आकाशवत् अनन्त तत्व है। हे (सोम) मेरे अपने आत्मन् ! (निः एहि) निकल, आ प्रकट हो, हम दोनों (वृत्रं इनाव) उस घेर लेने वाले अन्धकार को नाश करें। (हविः सन्तं) परम प्राप्य साधन रूप सत् स्वरूप तुझको ही हम (हविषा) इस आत्म हवि से (यजाम) उपासना करते हैं।
टिप्पणी
‘सोम’—स्वा वै मे आत्मा इति सोमः। शत०॥ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणाहुतम्। ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना॥ गीता॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१, ५–९ अग्निवरुणमोमानां निहवः । २—४ अग्निः। देवता—१—४ अग्निः। ५-८ यथानिपातम्। ९ इन्द्रः। छन्द:– १, ३, ८ त्रिष्टुप्। २, ४, ९ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ विराट् त्रिष्टुप्। ६ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ७ जगती। नवर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे शरीरे वर्तमान ! इन्द्रियगण ! (इदं स्वः) इदं सुखं मोक्षरूपम् (इदम्-इत्-वामम्-आस) इदमेव वननीयमस्ति (अयं प्रकाशः-उरु-अन्तरिक्षम्) अयं प्रकाशलोकः-प्रकाशमानो मोक्षो महानवकाशरूपोऽस्ति न बन्धनरूपः (निर्-एहि) निः सर शरीरात् (वृत्रं हनाव) पापसम्पर्कं नाशयाव स्वरात्मा चेन्द्रियगणः स्थिरं साङ्कल्पिकं सामर्थ्यं धारय (त्वा हविः सन्तं हविषा यजाम) त्वां ग्राह्यं सन्तं ग्राह्येण साङ्कल्पिकेन सङ्गमनाय अन्तर्गतो णिजर्थः ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, spirit of life in the state of freedom, this is the state of bliss, this is beauty, this is the light of life, this is the expansive space to sojourn at will. Come up out of all sense of bondage. We two shall eliminate darkness and nescience. You are the havi and you the object of love and adoration too. We powers of divine law and truth of existence serve and bless you, our darling, with your real self and blessings of total fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
मोक्षाचे इच्छुक जीवनमुक्त लोक आपल्या इंद्रियांना आपल्याबरोबरच शरीराबाहेर निघण्याची प्रेरणा देतात. मोक्षात त्यांच्यासाठी साङ्कल्पिक स्थिर सुख मिळते. आत्म्याबरोबर इंद्रियशक्तीही निघून जाते. ॥६॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal