ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः
देवता - अग्निः
छन्दः - पादनिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
यमा॒सा कृ॒पनी॑ळं भा॒साके॑तुं व॒र्धय॑न्ति । भ्राज॑ते॒ श्रेणि॑दन् ॥
स्वर सहित पद पाठयम् । आ॒साः । कृ॒पऽनी॑ळम् । भा॒साऽके॑तुम् । व॒र्धय॑न्ति । भ्राज॑ते । श्रेणि॑ऽदन् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यमासा कृपनीळं भासाकेतुं वर्धयन्ति । भ्राजते श्रेणिदन् ॥
स्वर रहित पद पाठयम् । आसाः । कृपऽनीळम् । भासाऽकेतुम् । वर्धयन्ति । भ्राजते । श्रेणिऽदन् ॥ १०.२०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यं कृपनीडम्) जिस शक्ति-आगार या दयासदन ( भासा केतुम्) ज्ञानप्रकाशक को (आसा) उपासना से अथवा आश्रय कर (वर्धयन्ति) अपने आत्मा में साक्षात् करते हैं या अपने को बढ़ाते हैं और जो (श्रेणिदन् भ्राजते) परमात्मा या राजा प्राणिगण के लिए भोजन देता हुआ प्रकाशमान होता है ॥३॥
भावार्थ
शक्ति का सदन परमात्मा या राजा ज्ञानप्रकाशक होता है, उसकी उपासना या आश्रय से उपासक अपने आत्मा में उसे साक्षात् करते हैं और प्रजाएँ राजा के आश्रय से वृद्धि प्राप्त करती हैं। परमात्मा प्राणिगण को और राजा प्रजाओं को भोजन देता है ॥३॥
विषय
'कृप-नीड' प्रभु
पदार्थ
[१] (यम्) = जिस प्रभु को भक्त लोक (आसा) = [आस्येन] मुख के द्वारा, स्तुतिवचनों के उच्चारण के द्वारा (वर्धयन्ति) = बढ़ाते हैं अर्थात् जिस प्रभु का गुणगान करते हैं वे प्रभु (कृपनीडम्) = [कृपू सामर्थ्ये] सम्पूर्ण सामर्थ्यो के आश्रयस्थल हैं, सर्वशक्तिमान् हैं और (भासाकेतुं) = ज्ञान के प्रकाश के द्वारा [कित निवासे रोगापनयने च] हमारे निवास को उत्तम बनानेवाले तथा हमारे सब रोगों को दूर करनेवाले हैं। [२] वे प्रभु (श्रोणिदन्) = उपासकों के लिये अभीष्ट फलों की श्रेणियों के देनेवाले हैं- [अभीष्ट फलसमूह प्रदः सा० ] अथवा सब जीवों को कर्मानुसार विविध श्रेणियों के प्राप्त करानेवाले हैं। वे प्रभु हमारे कर्मानुसार 'पशु मनुष्य व देव' आदि श्रेणियों में जन्म देते हैं। ऐसे वे प्रभु (भ्राजते) = कण-कण में देदीप्यमान हो रहे हैं । उस प्रभु की महिमा सर्वत्र द्योतित होती है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु सम्पूर्ण सामर्थ्यो के आधार हैं, ज्ञान के द्वारा मार्ग का प्रकाशन करते हैं। हम करके अभीष्ट फल समूह को प्राप्त करनेवाले प्रभु का स्तवन करेंगे तो हम भी शक्ति व ज्ञान को प्राप्त होंगे।
विषय
वृत्तिदाता शासक।
भावार्थ
जो (श्रेणि-दन्) प्रजाओं और सेनाओं के पंक्तिबद्ध सब दलों को वेतन अन्नादि देने वाला है, और (यम्) जिस (कृप-नीडम्) महान् कर्म-सामर्थ्य और परानुग्रह, दया-कृपा के परम आश्रय, और (भासा-केतुं) ज्ञान दीप्ति से सब पदार्थों का ज्ञान कराने वाले को (आसा) मुख द्वारा वा (आसा) उपासना द्वारा (वर्धयन्ति) बढ़ाते हैं वह (भ्राजते) सर्वत्र देदीप्यमान होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः॥ अग्निर्देवता॥ छन्द:- १ आसुरी त्रिष्टुप्। २, ६ अनुष्टुप्। ३ पादनिचृद्गायत्री। ४, ५, ७ निचृद् गायत्री। ६ गायत्री। ८ विराड् गायत्री। १० त्रिष्टुप्। दशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यं कृपनीडम्) यं खलु शक्त्यागारं यद्वा दयासदनम् “नीडं गृहनाम” [निघ०३।४] (भासाकेतुम्) ज्ञानदीप्त्या ज्ञेयं ज्ञानप्रकाशकं वा (आसा) उपासनया यद्वाऽऽश्रयेण (वर्धयन्ति) स्वात्मनि साक्षात्कुर्वन्ति यद्वा स्वात्मानं वर्धयन्ति, यश्च (श्रेणिदन् भ्राजते) परमात्मा राजा वा श्रेण्यै प्राणिगणाय प्रजागणाय वा भोजनं ददत् तन्मध्ये प्रकाशते ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, refulgent giver of light and sustenance, profound abode of love, power and kindness, source of light and knowledge, whom people exalt with prayer and adoration shines in glory.
मराठी (1)
भावार्थ
शक्तीचे घर परमात्मा किंवा राजा ज्ञानप्रकाशक असतो. त्याची उपासना किंवा आश्रयाने उपासक आपल्या आत्म्यात साक्षात करतात व प्रजा राजाच्या आश्रयाने वाढते. परमात्मा प्राणिमात्राला व राजा प्रजेला भोजन देतो. ॥३॥
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