ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 28/ मन्त्र 9
ऋषिः - इन्द्रवसुक्रयोः संवाद ऐन्द्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
श॒शः क्षु॒रं प्र॒त्यञ्चं॑ जगा॒राद्रिं॑ लो॒गेन॒ व्य॑भेदमा॒रात् । बृ॒हन्तं॑ चिदृह॒ते र॑न्धयानि॒ वय॑द्व॒त्सो वृ॑ष॒भं शूशु॑वानः ॥
स्वर सहित पद पाठश॒शः । क्षु॒रम् । प्र॒त्यञ्च॑म् । ज॒गा॒र॒ । अद्रि॑म् । लो॒गेन॑ । वि । अ॒भे॒द॒म् । आ॒रात् । बृ॒हन्त॑म् । चि॒त् । ऋ॒ह॒ते । र॒न्ध॒या॒नि॒ । वय॑त् । व॒त्सः । वृ॒ष॒भम् । शूशु॑वानः ॥
स्वर रहित मन्त्र
शशः क्षुरं प्रत्यञ्चं जगाराद्रिं लोगेन व्यभेदमारात् । बृहन्तं चिदृहते रन्धयानि वयद्वत्सो वृषभं शूशुवानः ॥
स्वर रहित पद पाठशशः । क्षुरम् । प्रत्यञ्चम् । जगार । अद्रिम् । लोगेन । वि । अभेदम् । आरात् । बृहन्तम् । चित् । ऋहते । रन्धयानि । वयत् । वत्सः । वृषभम् । शूशुवानः ॥ १०.२८.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 28; मन्त्र » 9
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(शशः प्रत्यञ्चं क्षुरं जगार) हे आत्मन् या राजन् ! मुझ प्राण के प्रभाव से या मुझ राज्यमन्त्री के प्रभाव से शश-छोटा प्राणी भी आक्रमण करते हुए तीक्ष्ण नखवाले सिंह को निगलने में-परास्त करने में समर्थ हो जाता है या शश जैसा अल्प शरीरवाला मनुष्य भी शस्त्रधारी पर-सैनिक को निगलने में-परास्त करने में समर्थ हो जाता है (लोगेन-अद्रिम्-आरात्-वि-अभेदम्) मैं प्राण मांसल केवल मांसवाले अङ्ग से भी सम्मुख आये शस्त्रधारी शत्रु को विदीर्ण कर देता हूँ (ऋहते बृहन्तं-चित् रन्धयानि) अल्पशरीरवाले के लिये महान् महाकायावाले को भी वश में ला सकता हूँ (वत्सः शूशुवानः-वृषभं वयत्) अल्प अवस्थावाले मेरे प्रभाव से प्रवृद्ध हुआ साँडसदृश कायावाले को दूर भगा दे ॥९॥
भावार्थ
प्राण के प्रबल होने पर शश जैसा छोटा प्राणी भी तीक्ष्ण पञ्जोंवाले सिंह जैसे पशु को परास्त कर देता है। मांसवाले अङ्ग पर्वतसदृश कठोर प्रदेश को छिन्न-भिन्न कर देता है। लघु शरीर के लिए महा शरीरवाले को दबा देता है। प्राण के प्रभाव से छोटा बच्चा भी बड़े सींगवाले को भगा देता है तथा कुशल राज्यमन्त्री के प्रभाव से साधारण प्रजाजन साधन से शस्त्रधारी शत्रु को परास्त कर देता है। हीन कायावाले प्रजाजन के लिए साँडसदृश सींगवाले को दूर भगा देता है ॥९॥
विषय
शश से शेर बन जाना [ वासना दहन से पूर्व और पीछे ]
पदार्थ
[१] गत मन्त्र में वासना वन के दहन का उल्लेख था। इस दहन के होने पर (शश:) = एक खरगोश के तुल्य निर्बल व्यक्ति भी इतना शक्तिशाली बन जाता है कि (प्रत्यञ्चम्) = आक्रमण के लिये सामने आनेवाले, (क्षुरम्) = तीक्ष्ण नखदंष्ट्रावाले शेर इत्यादि को भी (जगाम्) = निगल जाता है । खरगोश क्या वह तो शेर से भी अधिक शक्तिशाली बन जाता है। [२] इस वासना वन के दहन पर मैं इतना शक्तिशाली बन जाता हूँ कि (आरात्) = दूर स्थित भी (आद्रिम्) = पर्वत को (लोगेन) = एक मट्टी के ढेले से (व्यभेदम्) = विदीर्ण कर देता हूँ। वासनाक्रान्त व्यक्ति एक मट्टी के ढेले की तरह था तो दग्धवासन पुरुष पर्वत से भी दृढ़ बन जाता है । [३] वासनाओं के नष्ट होने पर (ऋहते) = हस्व - अल्पकाय पुरुष के लिये (बृहन्तं चित्) = अत्यन्त विशालकाय को भी (रन्धयानि) = वशीभूत कर देता हूँ अथवा [rend] विदीर्ण कर देता हूँ। वासना दहन से पहले हमारी स्थिति अल्प थी, इनके दहन को करके हम बड़ों को भी वशीभूत करनेवाले हो जाते हैं। [४] यह दग्धवासन व्यक्ति (शूशुवानः) = निरन्तर अपनी शक्ति को बढ़ाता हुआ (वत्सः) = बछड़े जैसा होता हुआ भी (वृषभम्) = एक शक्तिशाली वृषभ को (वयत्) = आक्रमण के लिये प्राप्त होता है । वत्स होता हुआ वृषभ को जीतनेवाला बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- वासना दहन से पूर्व जो शशधा वह दहन के बाद शेर बन जाता है, मट्टी का ढेला, पर्वत बन जाता है, ऋहत् - बृहत् हो जाता है और वत्स वृषभ में परिणत हो जाता है।
विषय
वे कैसे निर्भय हों। वे उत्साह से बड़े बली का भी मुकाबला करें।
भावार्थ
(शशः) मृग के समान तीक्ष्ण गति से जाने वाला, वीर (प्रत्यञ्चं क्षुरं) मुकाबले पर आने वाले छुरे, शस्त्रादि को भी (जगार) सहर्ष खा सकता है। और मैं (लोगेन) जन समूह के बल पर वा (लोगेन = रोगेण) शत्रु को भग्न करने वाले सैन्य बल वा विशेष शस्त्र से, प्रकाश वा विद्युत् से (अद्रिं) मेघ वा पर्वत के तुल्य विशाल शत्रु को भी (आरात् वि अभेदम्) विशेष रूप से छिन्न भिन्न करूं। और (ऋहते) बढ़ाने वाले स्वामी के लिये मैं तदधीन जन (बृहन्तं) बड़े भारी शत्रु को भी (रन्धयानि) वश करूं। (वत्सः) बच्चा भी (शूशुवानः) वृद्धि को प्राप्त होकर (वृषभं वयत्) बड़े बैल से टक्कर लेता है। यह वसुक्र का वचन है। वसु अर्थात् धन के द्वारा क्रीत वेतन भोगी, अधीन राजपुरुष राजा से ऐसा कहता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्रवसुक्रयोः संवादः। ऐन्द्र ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १,२,७,८,१२ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ६ त्रिष्टुप्। ४, ५, १० विराट् त्रिष्टुप् । ९, ११ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(शशः प्रत्यञ्चं क्षुरं जगार) हे आत्मन् ! राजन् ! वा मम प्राणस्य प्रभावेण यद्वा मम राज्यमन्त्रिणः प्रभावेण शशो लघुपशुरपि प्रत्यागच्छन्तं क्षुरं क्षुरवन्तं तीक्ष्णनखवन्तं सिंहमपि निगरति निगरणे शक्तो भवति यद्वा शशसदृशोऽल्पकायो जनोऽपि क्षुरवन्तं शस्त्रवन्तं परसैनिकं निगरणे शक्तो भवति (लोगेन-अद्रिम्-आरात्-वि-अभेदम्) अहं च प्राणो मांसलेनाङ्गेनापि पर्वतं भिन्नं कुर्यां समीपमागच्छन्तं यद्वाऽयं राज्यमन्त्री मुद्गरवता सैनिकेन सह पर्वतसमानं शस्त्रधारिणं परशत्रुं विदीर्णं कुर्यां समीपमागच्छन्तम् (ऋहते बृहन्तं चित्-रन्धयानि) ह्रस्वकायाय बृहन्तं महाकायं धर्षयितुमपि वशं नयामि “ऋहत् ह्रस्वनाम” निघं ३।२] (वत्सः शूशुवानः-वृषभं वयत्) अल्पवयस्को मम प्रभावेण प्रवृद्धः सन् “श्वि गतिवृद्ध्योः” [भ्वादि०] ततः यङन्तः प्रयोगः सम्प्रसारणं च वृषभकायं दूरं नयेत् ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The deer faces and beats up the tiger of fatal paw since I can break up the mountain with a lump of clay from far or near. I can crush the biggest with the tiniest, and the calf, waxing with strength, can force the bull to retreat and run. (This is the might of soul and prana).
मराठी (1)
भावार्थ
प्राण प्रबल झाल्यावर सशासारखा छोटा प्राणीही तीक्ष्ण पंजाच्या सिंहासारख्या पशूला पराजित करतो. मांसयुक्त अंगाने पर्वतासारख्या कठोर प्रदेशाला छिन्न-भिन्न करतो. लघु शरीरासाठी मोठ्या शरीराला वशमध्ये करू शकतो. प्राणाच्या प्रभावाने छोटा मुलगाही मोठी शिंगे असलेल्याला पळवून लावतो व कुशल राज्यमंत्र्याच्या प्रभावाने सामान्य प्रजाजन सामान्य साधनांनी पर्वताप्रमाणे बलवान शत्रूलाही नष्टभ्रष्ट करतात. दुर्बल प्रजाजनासाठी बैलसारखी शिंगे असणाऱ्यांना दूर पळवून लावतो. ॥९॥
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