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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 92 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 92/ मन्त्र 4
    ऋषिः - शार्यातो मानवः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    ऋ॒तस्य॒ हि प्रसि॑ति॒र्द्यौरु॒रु व्यचो॒ नमो॑ म॒ह्य१॒॑रम॑ति॒: पनी॑यसी । इन्द्रो॑ मि॒त्रो वरु॑ण॒: सं चि॑कित्रि॒रेऽथो॒ भग॑: सवि॒ता पू॒तद॑क्षसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तस्य॑ । हि । प्रऽसि॑तिः । द्यौः । उ॒रु । व्यचः॑ । नमः॑ । म॒ही । अ॒रम॑तिः । पना॑यसी । इन्द्रः॑ । मि॒त्रः । वरु॑णः । सम् । चि॒कि॒त्रि॒रे । अथो॒ इति॑ । भगः॑ । स॒वि॒ता । पू॒तऽद॑क्षसः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतस्य हि प्रसितिर्द्यौरुरु व्यचो नमो मह्य१रमति: पनीयसी । इन्द्रो मित्रो वरुण: सं चिकित्रिरेऽथो भग: सविता पूतदक्षसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतस्य । हि । प्रऽसितिः । द्यौः । उरु । व्यचः । नमः । मही । अरमतिः । पनायसी । इन्द्रः । मित्रः । वरुणः । सम् । चिकित्रिरे । अथो इति । भगः । सविता । पूतऽदक्षसः ॥ १०.९२.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 92; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ऋतस्य हि) प्रकृति नामक उपादान का ही (प्रसितिः) जाल या प्रसार है, सो वह (द्यौः) द्युलोक (उरुः-व्यचः-अरमतिः) महान् अन्तरिक्ष जलादि कणों से व्याप्त (पनीयसी मही) अत्यन्त प्रशंसनीय विस्तृत पृथिवी (इन्द्रः) विद्युत् (मित्रः) वायु (वरुणः) जल (अथ-उ) और (भगः पूतदक्षसः-सविता) सेवन करने योग्य पवित्रकारक बल जिसका है, ऐसा सूर्य (नमः-चिकित्रिरे) ये सब दिव्य पदार्थ परमात्मा के शासन को मानते हैं, जनाते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने उपादान प्रकृति से दिव्य पदार्थों को उत्पन्न किया है, जो द्युलोक, अन्तरिक्ष, पृथिवी, वायु, जल और सूर्य प्रमुख हैं, ये परमात्मा के शासन के अनुसार चलते हैं और उसे दर्शाते हैं ॥४॥

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    विषय

    चराचर का शासक प्रभु

    पदार्थ

    [१] (प्रसिति:) = सूर्यों व नक्षत्रों को प्रकर्षेण अपने में बाँधनेवाला द्युलोक, (उरु व्यचः) = विस्तृत व्यापक अन्तरिक्ष तथा (अरमतिः) = पर्यन्तरहित जिसका कोई सिरा नहीं वह वृत्ताकार पनीयसी प्रशंसनीय व सब व्यवहारों की साधिका [पन स्तुतौ व्यवहारे] यह पृथिवी हि निश्चय से ऋतस्य उस ऋत के प्रवर्तक ऋतस्वरूप प्रभु के प्रति (नमः) = नत होते हैं, ये सब उस प्रभु के शासन में चलते हैं। यह सारा ब्रह्माण्डचक्र उस प्रभु से ही चलाया जा रहा है। [२] इस ब्रह्माण्ड में निवास करनेवाले (पूतदक्षसः) = पवित्र बलोंवाले लोग भी (संचिकित्रिरे) = उस प्रभु को (सम्यक्तया) = इस रूप में जानते हैं कि वह प्रभु (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली है, (मित्रः) = सबके साथ स्नेह करनेवाला है, सभी को रोगों व पापों से बचानेवाला है । (वरुणः) = श्रेष्ठ है, वरणीय है, द्वेषनिवारक है और निश्चय से (भगः) = वह प्रभु भजनीय व सेवनीय है । सविता सबका उत्पन्न करनेवाला व प्रेरक है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यह सारा चराचर संसार उस प्रभु के शासन में ही चल रहा है।

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    विषय

    सर्वोपरि शासक प्रभु।

    भावार्थ

    (ऋतस्य प्रसितिः) महान् तेज का उत्तम बन्धनस्थान (द्यौः) सूर्य, (उरु व्यचः) महान् अन्तरिक्ष, और (अरमतिः) विशाल, (पनीयसी) अति स्तुत्य (मही) पृथिवी, वे (नमः) उसी के शासन में हैं। (इन्द्रः मित्रः वरुणः) विद्युत्, वायु, जल, (अथो) और (भगः) सेवन योग्य वा ऐश्वर्ययुक्त (सविता) सर्वोत्पादक, सर्वप्रकाशक सूर्य, (पूत-दक्षसः) ये सब पवित्र बल वाले होकर उसी ही के (नमः चिकित्रिरे) शासन का ज्ञान कराते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः शार्यातो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः— १, ६, १२, १४ निचृज्जगती। २, ५, ८, १०, ११, १५ जगती। ३, ४, ९, १३ विराड् जगती। ७ पादनिचृज्जगती। पञ्चदशर्चं सूकम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ऋतस्य हि प्रसितिः) प्रकृत्याख्यस्योपादानभूतस्य हि जालं प्रसारः “प्रसितिः प्रसयनात्, तन्तुर्वा जालं वा” [निरु० ६।१२] किं तदुच्यते (द्यौः-उरुव्यचः-अरमतिः-मही पनीयसी) द्युलोकः महदन्तरिक्षं जलादिकणैर्व्याप्तम्-अति प्रशंसनीया विस्तृता पृथिवी “मही पृथिवीनाम” [निघ० १।१] (इन्द्रः) विद्युत् (मित्रः) वायुः “अयं वै वायुर्मित्रो योऽयं पवते” [श० ६।५।४।१४] ‘मित्रः-वायुः’ [ऋ० ४।१३।२ दयानन्दः] (वरुणः) जलम् “वरुणः-जलम्” [ऋ० १।१९।५ दयानन्दः] (अथ-उ) अथ च (भगः पूतदक्षसः-सविता) सेवितुमर्ह्यः पवित्रकारकं बलं यस्य तथाभूतः सविता सूर्यः (नमः-चिकित्रिरे) एते सर्वे देवा दिव्यपदार्थास्तस्य परमात्मनो वज्रं शासनं मन्यन्ते ज्ञापयन्ति वा ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All this existence is an extension, a web, of nature and her law under the ordinance of Agni: the heavens of light, the vast skies, adorable earth, expansive space, all are but fragrant manifestations of Agni, the cosmic high priest. Mitra, the sun, Varuna, the night, Bhaga, cosmic power, Savita, cosmic creativity, all reveal the omnipotence of the generous lord of light and purity that gives everything in plenty. They all do homage to Agni.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याने उपादान प्रकृतीपासून दिव्य पदार्थांना उत्पन्न केलेले आहे. द्युलोक, अंतरिक्ष, पृथ्वी, वायू, जल व सूर्य प्रमुख आहेत. ते परमात्म्याच्या शासनानुसार चालतात व दर्शन घडवितात. ॥४॥

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