ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 92/ मन्त्र 6
ऋषिः - शार्यातो मानवः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
क्रा॒णा रु॒द्रा म॒रुतो॑ वि॒श्वकृ॑ष्टयो दि॒वः श्ये॒नासो॒ असु॑रस्य नी॒ळय॑: । तेभि॑श्चष्टे॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मेन्द्रो॑ दे॒वेभि॑रर्व॒शेभि॒रर्व॑शः ॥
स्वर सहित पद पाठक्रा॒णाः । रु॒द्राः । म॒रुतः॑ । वि॒श्वऽकृ॑ष्टयः । दि॒वः । श्ये॒नासः॑ । असु॑रस्य । नी॒ळयः॑ । तेभिः॑ । च॒ष्टे॒ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । इन्द्रः॑ । दे॒वेभिः॑ । अ॒र्व॒शेभिः । अर्व॑शः ॥
स्वर रहित मन्त्र
क्राणा रुद्रा मरुतो विश्वकृष्टयो दिवः श्येनासो असुरस्य नीळय: । तेभिश्चष्टे वरुणो मित्रो अर्यमेन्द्रो देवेभिरर्वशेभिरर्वशः ॥
स्वर रहित पद पाठक्राणाः । रुद्राः । मरुतः । विश्वऽकृष्टयः । दिवः । श्येनासः । असुरस्य । नीळयः । तेभिः । चष्टे । वरुणः । मित्रः । अर्यमा । इन्द्रः । देवेभिः । अर्वशेभिः । अर्वशः ॥ १०.९२.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 92; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(असुरस्य) मेघ के (नीळयः) आवास या आधार (क्राणाः) वृष्टि करनेवाले (रुद्राः) शब्द करते हुए (मरुतः) मेघ में रहनेवाले वायु (विश्वकृष्टयः) सब मनुष्यों या खेतियों के निमित्त (दिवः श्येनासः) मेघमण्डल के प्रेरक हैं (तेभिः-देवेभिः) उन देवों (अर्वशेभिः) गति शक्तिवालों के द्वारा (अर्वशः) प्रशस्त गतिमान् (वरुणः) सबका वरनेवाला (मित्रः) सबका प्रेरक (अर्यमा) सबका स्वामी (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (चष्टे) देखता है-जानता है ॥६॥
भावार्थ
मेघ के आधारभूत वृष्टि के करनेवाले शब्द करते हुए मेघ में वर्त्तमान वायु हैं, जो सब मनुष्यादि प्राणियों, सब अन्नादि खेतियों की पुष्टि के कारण हैं, मेघमण्डल से प्रेरित होते हैं, उन गतिशील वायुओं के द्वारा प्रशस्त विभु गतिमान् सबको वरनेवाला सबका प्रेरक सबका स्वामी परमात्मा सर्वद्रष्टा है ॥६॥
विषय
प्राण व प्राणों द्वारा प्रभु-दर्शन
पदार्थ
[१] (मरुतः) = प्राण (क्राणा:) = शरीर में सब कर्मों को [कुर्वाणाः] कर रहे हैं। ये (रुद्राः) = रोगों का विद्रावण करनेवाले हैं (विश्वकृष्टयः) = मनुष्य को पूर्ण बनानेवाले हैं [विश्वः कृष्टिः यैः ] इनकी साधना से ही शरीर, मन व बुद्धि स्वस्थ होते हैं । (दिवः श्येनासः) = ये प्रकाश के द्वारा गति करनेवाले हैं। इनकी साधना से ज्ञान की दीप्ति होती है, उस ज्ञान के प्रकाश में सब क्रियाएँ बड़े ठीक ढंग से होती हैं। इस प्रकार ये प्राण (असुरस्य) = उस प्राणशक्ति का संचार करनेवाले प्रभु के निवास-स्थान बनते हैं । [२] (तेभिः) = उन प्राणों से ही इनकी साधना से ही, (वरुणः) = द्वेष का निवारण करनेवाला, (मित्र:) = सबके साथ स्नेह करनेवाला व [प्रमीतेः क्रयते] रोगों व पापों से ऊपर उठनेवाला, (अर्यमा) = दानशील अथवा [अदीन् यच्छति] शत्रुओं का नियमन करनेवाला (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (चष्टे) = उस प्रभु का दर्शन करता है । [३] यह (देवेभिः) = उत्तम दिव्य व्यवहारवाले (अर्वशेभिः) = इन्द्रियाश्वोंवाले प्राणों से (अर्वशः) = उत्तम इन्द्रियाश्वोंवाला होता है । प्राणायाम से इन्द्रियों के दोष दूर होते हैं। ये इन्द्रियाश्व उत्तम बनते हैं, गतिशील होते हैं और आत्मा के वश में होते हैं [अर् वश ] ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से हम 'वरुण, मित्र, अर्यमा व इन्द्र' बनकर प्रभु-दर्शन में प्रवृत्त हों ।
विषय
देहगत रुद्र गण प्राण।
भावार्थ
(रुद्राः मरुतः) सब को रुलाने वाले, प्राणगण, (क्राणाः) शरीर में सब कामना करने वाले हैं, वे (विश्व-कृष्टयः) समस्त मनुष्यदेहों में विद्यमान हैं। वे (श्येनासः) उत्तम रीति से देह में गति करते हुए (दिवः असुरस्य) तेजःस्वरूप प्राणों के दाता आत्मा के (नीडयः) आधारस्थान हैं। (अर्वशः अवशेभिः) अश्वों का स्वामी जिस प्रकार अश्वों से आगे बढ़ता है, उसी प्रकार (वरुणः) सर्वश्रेष्ठ (मित्रः) मृत्यु से बचाने वाला (अर्यमा) प्राणों का नियन्ता, (इन्द्रः) इस देह का संञ्चालक आत्मा, (तेभिः देवेभिः) नाना अर्थों, विषयों की कामना करने और ज्ञान को प्रकाशित करने वाले उन इन्द्रियगणों से (चष्टे) समस्त तत्वों को देखता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः शार्यातो मानवः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः— १, ६, १२, १४ निचृज्जगती। २, ५, ८, १०, ११, १५ जगती। ३, ४, ९, १३ विराड् जगती। ७ पादनिचृज्जगती। पञ्चदशर्चं सूकम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(असुरस्य) मेघस्य “असुरो मेघनाम” [निघ० १।१०३] (नीळयः) आवासा आधारभूता “नीडं गृहनाम” [निघ० ३।४] इकारश्छान्दसोऽकारस्य स्थाने (क्राणाः) वृष्टिं कुर्वाणाः “क्राणाः कुर्वाणाः” [निरु० ४।१९] (रुद्राः) शब्दयन्तः “रुद्रो रौतीति सतः” [निरु० १०।५] (मरुतः) मेघस्थवायवः (विश्वकृष्टयः) सर्वकृष्टिनिमित्ताः-सर्वमनुष्यहितकरा यद्वा सर्वकृषिनिमित्ताः (दिवः श्येनासः) मेघमण्डलस्य प्रेरकाः सन्ति (तेभिः-देवेभिः) तैर्देवैः (अर्वशेभिः) गतिशक्तिमद्भिः “अर्वा-ईरणवान्” [निरु० १०।३०] शः प्रत्ययो मत्वर्थीयः ‘अर्वशो यथा लोमशः’ (अर्वशः) प्रशस्तगतिमान् (वरुणः) सर्वेषां वरयिता (मित्रः) सर्वेषां प्रेरयिता (अर्यमा) स्वामी (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (चष्टे) पश्यति-जानाति ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Active currents of the cosmic energy of the Maruts, dwelling all over the universe, move from the regions of the sun as directed companions of the ocean of vapours, and along with those dynamic currents are seen the dynamic Varuna, Mitra, Aryama and Indra, forces of nature’s catalysis, integration, direction and motive energy.
मराठी (1)
भावार्थ
वायू हे मेघाचे आधारभूत वृष्टी करणारे, गर्जना करणारे असतात. सर्व माणसे व प्राणी सर्व अन्न इत्यादी शेतीच्या पुष्टीची कारणे असतात. मेघमंडलांनी प्रेरित असतात. या गतिशील वायूद्वारे प्रशस्त, विभू, गतिमान, सर्वांना वरणारा, सर्वांचा प्रेरक, सर्वांचा स्वामी परमात्मा सर्वद्रष्टा आहे. ॥६॥
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