ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 94/ मन्त्र 4
ऋषिः - अर्बुदः काद्रवेयः सर्पः
देवता - ग्रावाणः
छन्दः - विराड्जगती
स्वरः - निषादः
बृ॒हद्व॑दन्ति मदि॒रेण॑ म॒न्दिनेन्द्रं॒ क्रोश॑न्तोऽविदन्न॒ना मधु॑ । सं॒रभ्या॒ धीरा॒: स्वसृ॑भिरनर्तिषुराघो॒षय॑न्तः पृथि॒वीमु॑प॒ब्दिभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठबृ॒हत् । व॒द॒न्ति॒ । म॒दि॒रेण॑ । म॒न्दिना॑ । इन्द्र॑म् । क्रोश॑न्तः । अ॒वि॒द॒न् । अ॒ना । मधु॑ । स॒म्ऽरभ्य॑ । धीराः॑ । स्वसृ॑ऽभिः । अ॒न॒र्ति॒षुः॒ । आ॒ऽघो॒षय॑न्तः । पृ॒थि॒वीम् । उ॒प॒ब्दिऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहद्वदन्ति मदिरेण मन्दिनेन्द्रं क्रोशन्तोऽविदन्नना मधु । संरभ्या धीरा: स्वसृभिरनर्तिषुराघोषयन्तः पृथिवीमुपब्दिभि: ॥
स्वर रहित पद पाठबृहत् । वदन्ति । मदिरेण । मन्दिना । इन्द्रम् । क्रोशन्तः । अविदन् । अना । मधु । सम्ऽरभ्य । धीराः । स्वसृऽभिः । अनर्तिषुः । आऽघोषयन्तः । पृथिवीम् । उपब्दिऽभिः ॥ १०.९४.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 94; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मधु-अविदन्) विद्वान् जन परमात्मा के आनन्द मधु को जब प्राप्त करते हैं (अना-इन्द्रं क्रोशन्तः) मुख से परमात्मा को स्तुत करते हुए (मन्दिना-मदिरेण) स्तोतव्य प्रशंसनीय आनन्द से (बृहत्-वदन्ति) बहुत गुणगान करते हैं (धीराः-संरभ्य) बुद्धिमान् ज्ञान में संलग्न हुए (उपब्दिभिः) वाणियों से (पृथिवीम्) प्रथित जनसभा को (आघोषयन्तः) भलीभाँति पूरित करते हुए (स्वसृभिः) अङ्गुलियों द्वारा-अङ्गुलियों को फ़ैलाकर-खोलकर (अनर्तिषुः) नृत्य करते हैं ॥४॥
भावार्थ
विद्वान् जन परमात्मा के आनन्दमधु को प्राप्त कर उसकी स्तुति करते हैं, उसके ध्यान में रत होकर गुणगान करते हुए आनन्द से नृत्य किया करते हैं ॥४॥
विषय
प्रभु स्तवन से पृथ्वी को गुञ्जित करना
पदार्थ
[१] ये लोग (बृहद् वदन्ति) = खूब ही ज्ञानोपदेश करते हैं। (मदिरेण) = हर्ष से परिपूर्ण- उल्लासमय (मन्दिना) = [ shihing] दीप्त शब्दों से (इन्द्रं क्रोशन्तः) = परमैश्वर्यवाले प्रभु को पुकारते हुए (अना) = मुख से (मधु अविदन्) = मधु को प्राप्त करते हैं सदा मधुर ही शब्दों को बोलते हैं। प्रभु का स्तवन करनेवाला सभी को प्रभु पुत्र जानता हुआ कड़वा बोल ही नहीं सकता। [२] ये (धीराः) = ज्ञानी पुरुष (संरभ्या) = प्रभु का आश्रय करके (स्व-सृभिः) = आत्मतत्त्व की ओर ले जानेवाली गतियों से (अनर्तिषुः) = जीवन के नृत्य को करते हैं । प्रभु की प्रेरणाओं के अनुसार ही चलते हैं। [३] प्रभु प्रेरणाओं के अनुसार चलते हुए ये (पृथिवीम्) = इस पृथिवी को (उपब्दिभिः) = प्रभु के स्तवन के शब्दों से (आघोषयन्तः) = आघोषित करनेवाले होते हैं । इनके आश्रम प्रभु के गुणगान के शब्दों से गूँज उठते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञानी पुरुष मधुर शब्दों में प्रभु का स्तवन करते हैं। प्रभु गुणगान से पृथ्वी को गुँजा देते हैं। इनके सारे काम इन्हें प्रभु की ओर ले जानेवाले होते हैं।
विषय
परमेश्वर की भक्ति में मग्न रहें, सब के साथ हर्षित हों।
भावार्थ
(एते) ये (मन्दिना) स्तुति युक्त, (मदिरेण) हर्षप्रद, स्तुति वचन से (बृहत्) उस महान् प्रभु का (वदन्ति) उपदेश करते हैं, (अना) मुख से (इन्द्रम्) उस प्रभु को (क्रोशन्तः) पुकारते हुए (मधु अविदन्) उसके हर्षजनक ज्ञान को स्वामी से अन्नवत् प्राप्त करते हैं। वे (उपब्दिभिः) नाना उपदेशों से (पृथिवीम् आघोषयन्ति) गर्जनाओं से मेघों के तुल्य भूमि को आघोषित करते हुए (सं-रभ्याः) कार्य में दृढोद्योगी होकर (धीराः) बुद्धिमान् जन (स्वसृभिः) स्वतः चलने वाली शक्तियों या वाणियों सहित वा भगनीवत् सहयोगिनी प्रजाओं के साथ (अनर्त्तिषुः) प्रसन्नता से नृत्य करते, आनन्द उल्लास का अभिनय करते हैं। वे प्रभु के प्रेम और उल्लास में नाच उठते हैं। खूब प्रसन्न होते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरर्बुदः काद्रवेयः सपः॥ ग्रावाणो देवता॥ छन्द:- १, ३, ४, १८, १३ विराड् जगती। २, ६, १२ जगती त्रिष्टुप्। ८,९ आर्चीस्वराड् जगती। ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। १४ त्रिष्टुप्। चतुर्दशर्चं सूक्तम॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मधु-अविदन्) विद्वांसः परमात्मन आनन्दमधु यदा लभन्ते तदा (अना-इन्द्रं क्रोशन्तः) मुखेन परमात्मानं स्तुवन्तः शब्दयन्तः “क्रोशतेः शब्दकर्मणः” [निरु० २।२५] (मन्दिना-मदिरेण बृहद् वदन्ति) स्तुत्येन प्रशंसनीयेन “मन्दी मन्दतेः स्तुतिकर्मणः” [निरु० ४।२४] हर्षेण बहु वदन्ति (धीराः-संरभ्य) धीमन्तः ध्याने संरब्धाः संज्ञानाः सन्तः (उपब्दिभिः पृथिवीम्-आघोषयन्तः) वाग्भिः “उपब्दिः-वाङ्नाम” [निघ० १।११] पृथिवीं प्रथितां जनसभां समन्तात् पूरयन्तः (स्वसृभिः-अनर्तिषुः) अङ्गुलीभिः-अङ्गुलीः प्रसार्य “स्वसारः-अङ्गुलीनाम” [निघ० २।५] नृत्यन्ति ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
They speak wide and bold, exalt Indra with joy in words of ecstasy, tasting, knowing and proclaiming sweets of honey by music of the tongue. Having experienced and enjoyed the taste of sweetness repeatedly, the veterans express the ecstasy in dance with gestures, movements and expressions, the earth resounding with the music of their joy.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान लोक परमात्म्याच्या आनंदमधुला प्राप्त करून त्याची स्तुती करतात. त्याच्या ध्यानात रत होऊन गुणगान करत आनंदाने नृत्य करतात. ॥४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal