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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 13/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यो ना॑र्म॒रं स॒हव॑सुं॒ निह॑न्तवे पृ॒क्षाय॑ च दा॒सवे॑शाय॒ चाव॑हः। ऊ॒र्जय॑न्त्या॒ अप॑रिविष्टमा॒स्य॑मु॒तैवाद्य पु॑रुकृ॒त्सास्यु॒क्थ्यः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ना॒र्म॒रम् । स॒हऽव॑सुम् । निऽह॑न्तवे । पृ॒क्षाय॑ । च॒ । दा॒सऽवे॑शाय॒ । च॒ । अव॑हः । ऊ॒र्जय॑न्त्याः । अप॑रिऽविष्टम् । आ॒स्य॑म् । उ॒त । ए॒व । अ॒द्य । पु॒रु॒ऽकृ॒त् । सः । अ॒सि॒ । उ॒क्थ्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो नार्मरं सहवसुं निहन्तवे पृक्षाय च दासवेशाय चावहः। ऊर्जयन्त्या अपरिविष्टमास्यमुतैवाद्य पुरुकृत्सास्युक्थ्यः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। नार्मरम्। सहऽवसुम्। निऽहन्तवे। पृक्षाय। च। दासऽवेशाय। च। अवहः। ऊर्जयन्त्याः। अपरिऽविष्टम्। आस्यम्। उत। एव। अद्य। पुरुऽकृत्। सः। असि। उक्थ्यः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 13; मन्त्र » 8
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यः पुरुकृत् सेनेशः दासवेशाय पृक्षाय च सहवसुं नार्मरमवहः येनास्यपरिविष्टमुतापि ऊर्जयन्त्या आपश्च स एवाद्योक्थ्योऽसीति यूयं विजानीत ॥८॥

    पदार्थः

    (यः) (नार्मरम्) नॄन्मारयति स वायुस्तस्याऽयं सम्बन्ध्यग्निस्तम् (सहवसुम्) वसुभिस्सह वर्त्तमानम् (निहन्तवे) नितरां हन्तुम् (पृक्षाय) सेचनाय (च) (दासवेशाय) दासाः सेवका विशन्ति यस्मिँस्तस्मै (च) (अवहः) वहति प्राप्नोति (ऊर्जयन्त्याः) ऊर्जयन्तीषु बलयन्तीषु साध्यः (अपरिविष्टम्) परिवेषरहितम् (आस्यम्) मुखम् (उत) अपि (एव) (अद्य) अस्मिन् दिने (पुरुकृत्) यः पुरूणि बहूनि वस्तूनि करोति सः (सः) (असि) अस्ति (उक्थ्यः) ॥८॥

    भावार्थः

    ये राजजना भृत्यान् सेवकांश्चेष्टं भोजनादिकं दत्वा नन्दयन्ति ते स्तुतिभाजो भूत्वा बहून् भोगाँल्लभन्ते ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यः) जो (पुरुकृत्) बहुत वस्तुओं को करनेवाला सेनापति विद्वान् (दासवेशाय) जिसमें सेवक प्रवेश करते उसके लिये और (पृक्षाय) सेचन करने के लिये (च) भी (सहवसुम्) धनादि पदार्थों के साथ वर्त्तमान (नार्मरम्) मनुष्यों को मरवा देनेवाले पवन सम्बन्धि अग्नि को (अवहः) प्राप्त होता है जिससे (आस्यम्) मुख (अपरिविष्टम्) परिवेष परसने के कर्म से रहित हुआ हो (उत) और (ऊर्जयन्त्याः) बलवती सामग्रियों में उत्तम जल (च) भी विद्यमान है (सः,एव) वही सेनापति (अद्य) आज (उक्थ्यः) कथनीय पदार्थों में (असि) है, यह तुम लोग जानो ॥८॥

    भावार्थ

    जो राजजन भृत्यों को और सेवकों को श्रेष्ठ भोजनादिक देकर आनन्दित करते हैं, वे स्तुति सेवनेवाले होकर बहुत भोगों को प्राप्त होते हैं ॥८॥

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    विषय

    सहवसु 'नार्मर' का विनाश

    पदार्थ

    १. हमारे जीवन में कामदेव अपने सुन्दर रूप से युक्त हुए आते हैं, विषयरूप शतशः वसुओं को हमारे लिए भेंट रूप में उपस्थित करते हैं। जब हम उन भेंटों को देख रहे होते हैं तो ये अपने पुष्पनिर्मित धनुष व पञ्चवाणों से हमारी पाँचों ज्ञानेन्द्रियों पर प्रहार करके हमें मूर्छित कर देते हैं और समाप्त कर देते हैं इसीलिए 'काम' का नाम 'मदन, मन्मथ व मार' हो गया है। इस (यः नार्मरम्) = जो मनुष्यों को मार डालनेवाले (सहवसुम्) = सब वसुओं के साथ उपस्थित हुए कामदेव को (निहन्तवे) = मारने के लिए (अद्य एव) = आज ही (ऊर्जयन्त्याः) = अत्यन्त शक्तिशालिनी वज्रधारा के (अपरिविष्टम्) = यज्ञों से अव्याप्त (आस्यम्) = मुख को (अवहः) = प्राप्त कराता है। इस वज्रधारा की चमकती हुई धार पर पड़कर काम का कृन्तन हो जाता है। क्रियाशीलता ही वस्तुतः यह वज्रधारा है। सदा क्रियाशील बने रहकर हम कामदेव के शिकार नहीं होते। २. इस प्रकार हे प्रभो! आप ही हमारे (पृक्षाय) = हविर्लक्षण अन्नप्राप्ति के लिए तथा (दासवेशाय) = दस्युओं के- दास्यव- प्रवृत्तियों के विनाश के लिए- (पुरुकृत्) = इस पालनात्मक व पूरणात्मक कर्म को करते हैं। 'काम' के विनष्ट होने पर हम संसार के विषयों में नहीं फंसते और सदा त्यागपूर्वक अदन करनेवाले बनते हैं – यही हवि का ग्रहण है। हमारी सब अशुभ वृत्तियों का विनाश हो जाता है। [दासवेशाय - दस्यूनां विनाशाय सा०] । इस महत्त्वपूर्ण कर्म को करनेवाले (सः) = वे आप ही (उक्थ्यः) = स्तुति के योग्य असि हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- निर्मल कर्मों में लगे रहना ही 'काम' को जीतने का उपाय है। इस विजय के होने पर हम सदा त्यागपूर्वक अदन करते हैं और दास्यव वृत्तियों से ऊपर उठे रहते हैं।

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    विषय

    परमेश्वर उत्तम शासक ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो परमेश्वर ( पुरुकुत् ) बहुत पदार्थों और लोकों को बनानेहारा है । जो ( सहवसुं ) वसने वाले प्रणियों और लोकों के साथ, विद्यमान या बसाने, जीवन देने वाले पदार्थों के साथ २ विद्यमान ( नार्मरं ) मनुष्यों को मारने वाले घातक कारण को ( निहन्तवे ) विनाश करने, और (पृक्षाय) अन्नादि के प्राप्त करने और ( दासवेशाय च ) प्राण नाशक पदार्थों के नाश करने के लिये या ( दासवेशाय ) दास, सेवक भृत्यादि पर अनुग्रह करने के लिये ( ऊर्जयन्त्याः ) अन्न उत्पन्न करने वाली भूमि के ( आस्यम् ) मुख को ( उत एव अद्य ) सदा ( अपरिविष्टम् ) किसी पदार्थ से आच्छादित नहीं ( अवहः ) रखता, सदा खुला रखता है ( सः उक्थ्यः असि ) वह ही तू स्तुति के योग्य है । ( २ ) राजा जो ( नार्मरं सहवसुं ) मनुष्यों के घातक धनाढ्य पुरुष को नाश करने के लिये और अन्न और दस्युनाशक, भृत्युपोषक धन की वृद्धि के लिये ( ऊर्जयन्त्याः अपरिविष्टम् आस्यम् ) पराक्रम शील सेना मुख को सदा अनावृत या खुला रखता है । अथवा ( निहन्तवे ) शत्रु नाश के लिये ( नार्मरं सहवसुं च अवहः ) कोश के समान शत्रु बल के नाशक सैन्य को भी धारण करता वह वीर राजा सदा प्रशंसनीय है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, २, ३, १०, ११, १२ भुरिक् त्रिष्टुप् । ७, ८ निचृत्त्रिष्टुप् । ९, १३ त्रिष्टुप् । ४ निचृज्जगती । ५, ६ विराट् जगती ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे राजे सेवकांना व नोकरांना उत्तम भोजन देऊन आनंदित करतात ते स्तुतिपात्र असून त्यांना पुष्कळ भोग प्राप्त होतात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who for the elimination of antihuman forces, even though they might command wealth and power, and for the expansion of the powers of generosity and creativity and for the working forces, rules and provides the unbounded face of the fertile and energising mother earth, he is Indra, lord of manifold action and he is worthy of adoration today.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of scholars is dealt here in.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! our commander should be learned and capable to perform various actions. He should be able to look after the needs of subordinates with wealth etc., along with, quickness to annihilate or kill or get burnt the persons of adverse qualities. His soldiers should be equipped with powerful weapons and their identities should be able to be established. Only such a commander is first and foremost in our references.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those army commanders who keep their soldiers and workers well-fed and well satisfied, they are admired and ultimately get several merits and accomplishments.

    Foot Notes

    (नार्मरम्) नृन्मारयति यः सः वायुस्तस्याऽयं सम्बन्ध्यग्न्स्तिम् = The fire which can kill a man with strong winds. (सहवसुम् ) वसुभिस्सहवर्त्तमानम् । = Equipped with the wealth. (निहन्तवे) नितरां हन्तुम् = For the killers. (दासुवेशाय ) दासा: सेवका: विशन्ति यस्मिंस्तस्मै | = For the recruited soldiers. (अपरिविष्टम्) परिवेषरहितम् = Having no identities. (पुरुकृत्) यः पुरुणि वहूनि वस्तूनि करोति सः = One who performs various acts.

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