ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 24/ मन्त्र 6
अ॒भि॒नक्ष॑न्तो अ॒भि ये तमा॑न॒शुर्नि॒धिं प॑णी॒नां प॑र॒मं गुहा॑ हि॒तम्। ते वि॒द्वांसः॑ प्रति॒चक्ष्यानृ॑ता॒ पुन॒र्यत॑ उ॒ आय॒न्तदुदी॑युरा॒विश॑म्॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि॒ऽनक्ष॑न्तः । अ॒भि । ये । तम् । आ॒न॒शुः । नि॒धिम् । प॒णी॒नाम् । प॒र॒मम् । गुहा॑ । हि॒तम् । ते । वि॒द्वांसः॑ । प्र॒ति॒ऽचक्ष्य॑ । अनृ॑ता । पुनः॑ । यतः॑ । ऊँ॒ इति॑ । आय॑न् । तत् । उत् । ई॒युः । आ॒ऽविश॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभिनक्षन्तो अभि ये तमानशुर्निधिं पणीनां परमं गुहा हितम्। ते विद्वांसः प्रतिचक्ष्यानृता पुनर्यत उ आयन्तदुदीयुराविशम्॥
स्वर रहित पद पाठअभिऽनक्षन्तः। अभि। ये। तम्। आनशुः। निधिम्। पणीनाम्। परमम्। गुहा। हितम्। ते। विद्वांसः। प्रतिऽचक्ष्य। अनृता। पुनः। यतः। ऊँ इति। आयन्। तत्। उत्। ईयुः। आऽविशम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 24; मन्त्र » 6
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
येऽभिनक्षन्तो विद्वांसस्तं गुहाहितं परमं पणीनां निधिमभ्यानशुस्तेऽन्येषामनृता प्रतिचक्ष्य पुनरु यत आविशमायन् तदुदीयुरुपदिशन्तु ॥६॥
पदार्थः
(अभिनक्षन्तः) अभितो जानन्तः (अभि) (ये) (तम्) (आनशुः) अश्नुवन्ति प्राप्नुवन्ति (निधिम्) विद्याकोशम् (पणीनाम्) व्यवहारनिष्ठानां प्रशंसनीयानां नॄणाम् (परमम्) उत्कृष्टम् (गुहा) बुद्धौ (हितम्) स्थितम् (ते) विद्वांसः (प्रतिचक्ष्य) प्रत्यक्षेण प्रत्याख्यानाय (अनृता) मिथ्याभाषणादिकर्माणि (पुनः) (यतः) (उ) वितर्के (आयन्) प्राप्नुवन्ति (तत्) (उत्) (ईयुः) प्राप्नुयुः (आविशम्) आविशन्ति यस्मिँस्तम् ॥६॥
भावार्थः
ये यथार्थं विज्ञानं प्राप्याधर्माचरणात्पृथग्वर्त्तित्वाऽन्यान् पापाचरणात् पृथक्कृत्य पुनः धर्मविद्याशरीरात्मपुष्टिषु प्रवेशयन्ति तेऽत्यन्तमानन्दं प्राप्याऽन्यानानन्दयितुं शक्नुवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
(ये) जो (अभिनक्षन्तः) सब ओर से जानते हुए (विद्वांसः) विद्वान् लोग (तम्) उस (गुहा,हितम्) बुद्धि में स्थित (परमम्) उत्तम (पणीनाम्) व्यवहारवान् प्रशंसनीय मनुष्यों के (निधिम्) विद्यारूप कोश को (अभ्यानशुः) सब ओर से प्राप्त होते हैं (ते) वे औरों के (अनृता) मिथ्याभाषणादि कर्मों को (प्रतिचक्ष्य) प्रत्यक्ष खण्डन कर (पुनः,इ) फिर भी (आविशम्) जिसमें आदेश करते उस ज्ञान को (आयन्) प्राप्त होते (तत्) उसका (उदीयुः) उदय करें अर्थात् उपदेश करें ॥६॥
भावार्थ
जो यथार्थ विज्ञान को पाकर अधर्माचरण से पृथक् रहकर अन्यों को पापाचरण से पृथक् कर फिर-फिर धर्म विद्या शरीर आत्मा की पुष्टि में प्रवेश कराते, वे अत्यन्त आनन्द को पाकर औरों को आनन्दित करने को समर्थ होते हैं ॥६॥
विषय
फिर ब्रह्मलोक में
पदार्थ
१. (ये) = जो (अभिनक्षन्तः) = प्रातः सायं प्रभु की ओर जाते हुए [अभि-दोनों ओर - दिन के प्रारम्भ में व अन्त में] प्रभु की प्रातः सायं उपासना करते हुए (पणीनाम्) = [पण स्तुतौ] स्तोताओं की (गुहा हितम्) = बुद्धिरूप गुहा में स्थापित (तं परमं निधिम्) = उस उत्कृष्ट ज्ञाननिधि को (अभि आनशुः) = सब तरह से प्राप्त करते हैं- पूर्णतया प्राप्त करते हैं उसके भौतिक व अध्यात्म अर्थों को जानते हुए प्राप्त करते हैं । २. (ते विद्वांसः) = वे विद्वान् (अनृता प्रतिचक्ष्य) = सब अनृतों को अपने से दूर करके (यतः उ आयन्) = जिधर से निश्चयपूर्वक आये थे (पुनः) = फिर (तत्) = उसी ब्रह्मलोक में (आविशम्) = प्रवेश करने के लिए (उदीयुः) = उत्कृष्ट गतिवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु की उपासना से उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। इस ज्ञान को पानेवाले अमृत को छोड़कर फिर उस ब्रह्मलोक को प्राप्त करते हैं जो कि उनका वास्तविक घर है। वहीं से आये थे,वहीं लौट जाते हैं। इस संसार की चमक से मूढ़ नहीं बन जाते ।
विषय
और परमेश्वर उत्तम राजा ।
भावार्थ
( ये ) जो विद्वान् पुरुष ( अभिनक्षन्तः ) सर्वत्र ज्ञानबल से पहुंचते हुए, खोजी लोगों के समान ( गुहाहितम् पणीनां निधिम् ) गुफा या गुप्त स्थान में रखे व्यापारी धनाढ्यों के धन के समान ही ( गुहाहितम् ) बुद्धि में रखे ( तम् ) उस ( पणीनां ) पूर्व के व्यवहारज्ञ, विद्योपदेष्टा पुरुषों के ( परमं ) सर्वोत्कृष्ट ( निधिम् ) शिष्य को समीप बैठाकर देने या धारण करने योग्य ज्ञान कोश को ( अभि आनशुः ) प्राप्त कर लेते हैं ( ते ) वे ( विद्वांसः ) विद्वान् लोग ( अनृता प्रति चक्ष्य ) अनृत, असत्य बातों को परित्याग करके ( पुनः ) फिर वे ( यतः आविशम् आयन् ) जहां से वे उस गुरुगृह में आये थे ( तत् उत् ईयुः ) फिर उसी अपने पितृगृह में चले जाते हैं । अर्थात् खजाना खोदने वाले पहले जिस द्वार से घुसते हैं फिर खजाना लेकर उसी द्वार से गुफ़ा से ऊपर निकल आते हैं उसी प्रकार विद्वान् जन भी खोजते २ वे जिस स्थान पर भी विद्या का खजाना पाते हैं वहां से लेते और फिर जिस पितृगृह से आते हैं स्नातक होकर फिर वहीं चले आते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १–११, १३–१६ ब्रह्मणस्पतिः । १२ ब्रह्मणस्पतिरिन्द्रश्च देवते ॥ छन्दः–१, ७, ९, ११ निचृज्जगती । १३ भुरिक् जगती । ६, ८, १४ जगती । १० स्वराड् जगती । २, ३ त्रिष्टुप् । ४, ५ स्वराट् त्रिष्टुप् । १२, १६ निचृत् त्रिष्टुप् । १५ भुरिक् त्रिष्टुप् ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे यथार्थ विज्ञान प्राप्त करून अधर्माचरणापासून पृथक राहून इतरांना पापाचरणापासून दूर करून पुन्हा पुन्हा धर्म, विद्या, शरीर, आत्म्याची पुष्टी यात प्रवेश करण्यास उद्युक्त करतात ते अत्यंत आनंद प्राप्त करून इतरांना आनंदित करण्यास समर्थ असतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Those saints and scholars who go forward all round in search of the treasures of admirable humanity hidden in the cavern of time find the jewel treasures of wealth and knowledge. But having seen the falsehood and untruth discovered there in the cave go back by the same door by which they came and then come again to propagate the truth and contradict and expose the untruth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More about the learned persons.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The learned persons seek knowledge from all directions. They acquire excellent knowledge from the minds of practical and praiseworthy persons. They contradict the untruth and evil actions and after acquiring true knowledge, they visualize the dawn of wisdom. Let them preach it.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who seek true knowledge and keep aloof from evil conduct and persuade others not to commit sins, they get delight and make others happy. With this, their body and soul get strength.
Foot Notes
(अभिनक्षन्तः) अभितो जानन्तः। = Knowing from all sides. (आनशुः ) अश्नुवन्ति प्राप्नुवन्ति = Secure. (निधिम्) विद्याकोशम् । = Treasurer of knowledge. (पणीनाम् ) व्यवहारनिष्ठानां प्रशंसनीयानां नृणाम् । = Of the persons who are practical and praiseworthy. (प्रतिचक्ष्य) प्रत्यक्षेण प्रत्याख्यानाय। = Contradict directly. (आविशम्) आविशन्ति यस्मि स्तम् = Acquiring true knowledge. ( उदीयु:) प्राप्नुयुः । = Would dawn.
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