ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 24/ मन्त्र 9
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - ब्रह्मणस्पतिः
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
स सं॑न॒यः स वि॑न॒यः पु॒रोहि॑तः॒ स सुष्टु॑तः॒ स यु॒धि ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑। चा॒क्ष्मो यद्वाजं॒ भर॑ते म॒ती धनादित्सूर्य॑स्तपति तप्य॒तुर्वृथा॑॥
स्वर सहित पद पाठसः । स॒म्ऽन॒यः । सः । वि॒ऽन॒यः । पु॒रःऽहि॑तः । सः । सुऽस्तु॑तः । सः । यु॒धि । ब्रह्म॑णः । पतिः॑ । चा॒क्ष्मः । यत् । वाज॑म् । भर॑ते । म॒ती । धना॑ । आत् । इत् । सूर्यः॑ । त॒प॒ति॒ । त॒प्य॒तुः । वृथा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स संनयः स विनयः पुरोहितः स सुष्टुतः स युधि ब्रह्मणस्पतिः। चाक्ष्मो यद्वाजं भरते मती धनादित्सूर्यस्तपति तप्यतुर्वृथा॥
स्वर रहित पद पाठसः। सम्ऽनयः। सः। विऽनयः। पुरःऽहितः। सः। सुऽस्तुतः। सः। युधि। ब्रह्मणः। पतिः। चाक्ष्मः। यत्। वाजम्। भरते। मती। धना। आत्। इत्। सूर्यः। तपति। तप्यतुः। वृथा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 24; मन्त्र » 9
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजपुरुषाः कीदृशाः स्युरित्याह।
अन्वयः
स सन्नयः स विनयः स पुरोहितः स सुष्टुतश्चाक्ष्मः स ब्रह्मणस्पतिर्वृथा वर्त्तमानानां तप्यतुर्मती युधि धना यद्वाजं चाद्भरते तस्य युधि सूर्य्य इवेत्तपति प्रतापयुक्तो भवति ॥९॥
पदार्थः
(सः) (सन्नयः) सम्यग्नयो नीतिर्यस्य सः (सः) (विनयः) विविधो नयो यस्य सः (पुरोहितः) पुर एनं विद्वांसो दधति सः (सः) (सुष्टुतः) सुष्ठु स्तुतः प्रशंसितः (सः) (युधि) युद्धे (ब्रह्मणः) धनस्य (पतिः) रक्षकः (चाक्ष्मः) व्यक्तवाक् (यतः) यतः (वाजम्) अन्नादिसामग्रीयुक्तं पदार्थसमूहम् (भरते) धरति (मती) मत्या विज्ञानेन (धना) धनानि (आत्) नैरन्तर्ये (इत्) एव (सूर्य्यः) सवितेव (तपति) (तप्यतुः) दुष्टानां परितापकः (वृथा) मिथ्यैव परपीडने वर्त्तमानानाम् ॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विनयादियुक्ताः प्रशंसितगुणकर्मस्वभावा दुष्टतानिरोधकाः सत्यताप्रवर्त्तकाः सन्ति ते धर्म्येण राज्यं रक्षितुं शक्नुवन्ति ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राज पुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
(सः) वह (सन्नयः) सम्यक् नीतिवाला (सः) वह (विनयः) विविध प्रकार की नम्रतावाला (सः) वह (पुरोहितः) आगे जिसको विद्वान् लोग धारण करते (सः) वह (सुष्टुतः) अच्छे प्रकार प्रशंसित (चाक्ष्मः) स्पष्टवक्ता (सः) वही (ब्रह्मणः) धन का (पतिः) स्वामी (वृथा) निष्प्रयोजन दूसरों को पीड़ा देनेहारे दुष्टों को (तप्यतुः) दुःख देनेवाला विद्वान् वीर पुरुष (मती) विद्वान् से (धना) धनों और (यत्) जिस कारण (वाजम्) अन्नादि सामग्रीयुक्त पदार्थों का (आत्) निरन्तर (भरते) धारण पोषण करता है इससे (युधि) युद्ध में (सूर्य्यः) सूर्य के तुल्य (इत्) ही (तपति) प्रतापयुक्त होता है ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विनय आदि से युक्त प्रशंसित गुणकर्मस्वभाववाले दुष्टता के निरोधक और सत्यता के प्रवर्त्तक हैं, वे धर्मयुक्त व्यवहार से राज्य की रक्षा करने को समर्थ होते हैं ॥९॥
विषय
सूर्य के समान
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार प्रणवरूप धनुषवाला (सः) = वह उपासक (सन्नयः) = अपने जीवन को सम्यक् प्रणीत करनेवाला होता है । (सः) = वह (विनय:) = विनीत होता है । (सः) = वह (पुरोहितः) = औरों के सामने (पुर:) आदर्शरूप से स्थापित होता है। (ब्रह्मणस्पतिः) = ज्ञान का स्वामी बनकर (सः) = वह (युधि) = अध्यात्मसंग्राम में (सुष्टुतः) = उत्तम स्तुतिवाला होता है। यह प्रभुस्तवन ही उसे वासनाओं से पराजित नहीं होने देता। २. (चाक्ष्मः) = द्रष्टा बनकर अथवा क्षमाशील बनकर [चक्ष अथवा क्षम्] (यद्) = जब यह (वाजम्) = शक्ति को तथा (मती) = बुद्धि के साथ (धना) = धनों को (भरते) = धारण करता है। (आत् इत्) = तब शीघ्र ही (तप्यतुः) = शत्रुओं को संतप्त करनेवाला यह व्यक्ति (वृथा) = अनायास ही सूर्यः (तपति) = ज्ञानसूर्य बनकर दीप्त होता है ।
भावार्थ
- भावार्थ - जीवन को सम्यक् चलाते हुए हम विनीत बनें। औरों के लिए आदर्श जीवनवाले होते हुए अध्यात्म-संग्राम में प्रभुस्तवन द्वारा विजयी बनें। द्रष्टा व क्षमाशील बनकर शक्तिवृद्धि व धनों को प्राप्त करें तथा सूर्य की तरह चमकें ।
विषय
और परमेश्वर उत्तम राजा ।
भावार्थ
जो (ब्रह्मणस्पतिः) बड़े राष्ट्र का पालक, बड़े विद्या विज्ञान का पालक विद्वान् है ( सः ) वह ( सन्नयः ) उत्तम मार्ग से प्रजा को लेजाने वाला, (संनयः) उत्तम नीतिमान् हो । (सः विनयः) वह विनीत, विनयशील, राज्य कार्यों को विविध रीति से चलाने में समर्थ है। ( सः पुरोहितः) वह यज्ञ में पुरोहित के समान सबके सामने अध्यक्ष या मार्ग दर्शक, दीपक के समान मुख्य भाग पर नियत हो । ( सः सुस्तुतः ) वह उत्तम स्तुतियुक्त, सुशिक्षित हो । ( सः युधि ) वह युद्ध में भी कुशल हो । वह (चाक्ष्मः) सबको स्पष्ट आज्ञा देने वाला, उत्तम वाणी से उपदेश देने वाला, ( यत् ) जब (मती) अपनी मनन और शत्रुस्तंभन या प्रहार की शक्ति से ( वाजं भरते ) युद्ध और ज्ञानयज्ञ या अन्नादि प्राप्त करता है (आत्-इत्) तभी वह ( सूर्यः ) सूर्य के समान तेजस्वी होकर ( वृथा तप्यतुः ) व्यर्थ निष्प्रयोजनों को सन्तप्त करने हारा होकर (तपति ) तपता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १–११, १३–१६ ब्रह्मणस्पतिः । १२ ब्रह्मणस्पतिरिन्द्रश्च देवते ॥ छन्दः–१, ७, ९, ११ निचृज्जगती । १३ भुरिक् जगती । ६, ८, १४ जगती । १० स्वराड् जगती । २, ३ त्रिष्टुप् । ४, ५ स्वराट् त्रिष्टुप् । १२, १६ निचृत् त्रिष्टुप् । १५ भुरिक् त्रिष्टुप् ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विनयी, प्रशंसित गुण, कर्म, स्वभावाचे, दुष्टतानिरोधक व सत्यप्रवर्तक असतात ते धर्मयुक्त व्यवहाराने राज्याचे रक्षण करण्यास समर्थ असतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Right and true are his policies, unassailable. Correct and firm are his paths of planning and leadership. Front leader is he, ever commanding, and elected first and foremost. Admired is he and admirable, adorable ruler, protector and promoter of the wealth of nations. Clear is his sight and vision, bold his voice and speech, by virtue of which he holds and rules energy and the speed of progress, intelligence and education, and the power and prosperity of the social order through the battles of life. He blazes as the sun and would naturally and without effort heat and season and temper the wastours and wrong-doers.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The qualities of State officials are narrated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
A public servant or government official should be follower of good policy, be polite and seek welfare of all. Such a praised owner of wealth should be straightforward in his speech and should be a trouble-shooter to the useless and tormentor persons. Such a man should always collect wealth and material like food grains with his wisdom (for the State coffers) and that such a man shines in the battle-field like the sun.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those State officials who are polite and show exemplary behavior and virtues indeed are capable to check the nefarious activities of the criminals and always side with truth. They prove their capabilities to ensure the security of the State.
Foot Notes
(सन्नय:) संयग्नयो नितिर्यस्य स: =One who has an ideal policy. (विनयः) विविधो नयो यस्य स:। = One who has varied methods. ( सुष्ठुतः ) सुष्ठु स्तुत: प्रशंसितः = Well praised. (चाक्ष्म:) व्यक्तवाक् = Straight forward in his speech. ( वाजम् ) अन्नादिसामग्रीयुक्तम् पदार्थसमूहम् = Material like the foo grains etc. (तप्यतु:) दुष्टानां परितापकः। = Tormentor of the wickeds. (वृथा) मिथ्यैव परपीड़ने वर्त्तमानानाम् । = Of those who harass people unnecessarily.
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