ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 30/ मन्त्र 8
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
सर॑स्वति॒ त्वम॒स्माँ अ॑विड्ढि म॒रुत्व॑ती धृष॒ती जे॑षि॒ शत्रू॑न्। त्यं चि॒च्छर्ध॑न्तं तविषी॒यमा॑ण॒मिन्द्रो॑ हन्ति वृष॒भं शण्डि॑कानाम्॥
स्वर सहित पद पाठसर॑स्वति । त्वम् । अ॒स्मान् । अ॒वि॒ड्ढि॒ । म॒रुत्व॑ती । धृ॒ष॒ती । जे॒षि॒ । शत्रू॑न् । त्यम् । चि॒त् । शर्ध॑न्तम् । त॒वि॒षी॒ऽयमा॑णम् । इन्द्रः॑ । ह॒न्ति॒ । वृ॒ष॒भम् । शण्डि॑कानाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सरस्वति त्वमस्माँ अविड्ढि मरुत्वती धृषती जेषि शत्रून्। त्यं चिच्छर्धन्तं तविषीयमाणमिन्द्रो हन्ति वृषभं शण्डिकानाम्॥
स्वर रहित पद पाठसरस्वति। त्वम्। अस्मान्। अविड्ढि। मरुत्वती। धृषती। जेषि। शत्रून्। त्यम्। चित्। शर्धन्तम्। तविषीऽयमाणम्। इन्द्रः। हन्ति। वृषभम्। शण्डिकानाम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 30; मन्त्र » 8
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे सरस्वति मरुत्वती धृषती भवती यथा इन्द्रस्त्यं शर्द्धन्तं तविषीयमाणं शण्डिकानां मध्ये वर्त्तमानं वृषभं हन्ति चिदस्माँस्त्वमविड्ढि शत्रून् जेषि तस्मात्सर्वैः सत्कर्त्तव्यास्ति ॥८॥
पदार्थः
(सरस्वति) विज्ञानवति (त्वम्) (अस्मान्) (अविड्ढि) प्रविश (मरुत्वती) प्रशस्तरूपयुक्ता (धृषती) प्रगल्भा (जेषि) जयसि। अत्र शबभावः (शत्रून्) अस्माकं शातकान् सुखविच्छेदकान् (त्यम्) तम् (चित्) इव (शर्द्धन्तम्) बलवन्तम् (तविषीयमाणम्) सेनयेवाचरन्तम् (इन्द्रः) सेनेशः (हन्ति) (वृषभम्) बलिष्ठम् (शण्डिकानाम्) शत्रूणां तस्याऽवयवभूतानां मध्ये वर्त्तमानम् ॥८॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथा राजा शत्रून् हत्वा पुरुषाणां न्यायं करोति तथैव राज्ञी दुष्टाः स्त्रियो निवार्य्य सर्वासां रक्षणं सदा कुर्य्यादर्थाद्यथा पुरुषा न्यायाऽधीशाः स्युस्तथा स्त्रियोऽपि भवन्तु ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (सरस्वति) विज्ञानयुक्त विदुषी रानी (मरुत्वती) प्रशंसितरूपवाली (धृषती) प्रगल्भ्य उत्साहिनी आप जैसे (इन्द्रः) सेनापति (त्वम्) उस (शर्द्धन्तम्) बलवान् (तविषीयमाणम्) सेना जैसे युद्ध करें वैसा आचरण करते हुए (शण्डिकानाम्) शत्रुओं की सेना के अवयवरूप योद्धाओं में वर्त्तमान (वृषभम्) अत्यन्त बली शत्रु को (हन्ति) मारता है (चित्) और वैसे (अस्मान्) हमको (त्वम्) आप (अविड्ढि) व्याप्त वा प्राप्त हो और (शत्रून्) हमारे सुख को नष्ट करनेहारे शत्रुओं को (जेषि) जीतती हो इससे सबको सत्कार करने योग्य हो ॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे राजा शत्रुओं को मार कर पुरुषों का सत्कार व न्याय करता है, वैसे ही रानी दुष्टा स्त्रियों को निवृत्त कर सब स्त्रियों की सदा रक्षा करे अर्थात् जैसे पुरुष न्यायाधीश हों, वैसे स्त्रियाँ भी हों ॥८॥
विषय
स्वाध्याय-प्राणायाम-उपासना
पदार्थ
१. हे (सरस्वति) = ज्ञान की अधिष्ठातृदेवते! (त्वम्) = तू (अस्मान्) = हमें (अविढि) = रक्षित कर । ज्ञान ही हमारा रक्षण करता है। हे सरस्वति! तू (मरुत्वती) = प्राणोंवाली होती हुई, (धृषती) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाली होकर (शत्रून् जेषि) = हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं को जीतती है। सरस्वती की आराधना का अभिप्राय है-स्वाध्याय करना। 'मरुत्त्वती' का भाव है - प्राणायाम द्वारा प्राणसाधना में प्रवृत्त होना। इस प्रकार प्राणायाम के साथ स्वाध्याय हमारे शत्रुओं का धर्षण करता है। २. (इन्द्रः) = वे प्रभु (त्यम्) = उस (चित्) = निश्चय से (शर्धन्तम्) = प्रसहनशील (तविषीयमाणम्) = बल की तरह आचरण करते हुए, अर्थात् अत्यन्त प्रबल (शण्डिकानां वृषभम्) = [शंड् to heart] नाश करनेवालों में उत्तम अर्थात् प्रबल विध्वंसक शत्रु को हन्ति नष्ट करते हैं। हम प्रभु का उपासन करते हैं – प्रभु हमारे शत्रुओं का संहार करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- काम आदि शत्रुओं के नाश के लिए आवश्यक है कि हम 'स्वाध्याय, प्राणायाम व उपासना' का आश्रय लें।
विषय
सेना का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( इन्द्रः वृषभं हन्ति चित् ) जिस प्रकार विद्युत् या वायु वर्षणशील मेघ पर आघात करता है उसी प्रकार ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान्, बलवान् सेनापति या राजा ( त्यं ) उस ( तविषीयमाणं ) सेना से आक्रमण करने वाले, ( शण्डिकानाम् ) शान्ति को भंग करने वाली सेनाओं के बीच में ( वृषभम् ) बलवान्, ( शर्धन्तम् ) उत्साहवान् शत्रु को भी ( हन्ति ) मारे । उसी प्रकार हे ( सरस्वति ) विदुषि स्त्रि! प्रचण्ड वेग से जाने वाली सेने ! (त्वम्) तू (अस्मान् ) हमारे (अविड्ढि) बीच में आ, प्रवेश कर, और ( मरुत्वती ) प्राण के बल से बलवती वाणी और वायु के वेग से बलवती विद्युत् के समान, मरुत अर्थात् वायुवत् बलवान् वीर भटों से युक्त होकर ( धृषती ) शत्रुओं को घर्षण करती हुई ( शत्रून् जेषि ) शत्रुओं का विजय कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १–५, ७, ८, १० इन्द्रः । ६ इन्द्रासोमौ। ९ बृहस्पतिः। ११ मरुतो देवता ॥ छन्दः– १, ३ भुरिक पक्तिः । २, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ५, ६, ७,९ त्रिष्टुप् । १० विराट् त्रिष्टुप् । ११ भुरिक् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा राजा शत्रूचे हनन करून सर्व पुरुषांना न्याय देतो, तसे राणीने दुष्ट स्त्रियांचे निवारण करून सर्व स्त्रियांचे रक्षण करावे, अर्थात् पुरुष जसे न्यायाधीश असतील तशा स्त्रियाही असाव्यात. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Sarasvati, mother of knowledge and divine speech, inspire and protect us. Loud and bold with a troop of stormy commandos you overthrow the enemies. Indra, ruling lord of light and power, too, destroys the defiant and violent intrepidable leader of the forces of damage and darkness.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The theme of the State officials is underlined again.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O queen or wife of the State official ! you are fairly handsome, active, bold and acting like a commander of the army. Fighting a strong enemy, you are worthy of honor and respect because you finish your powerful enemy. You come to us, remove our agonies and win over the enemies.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The ruler kills the enemy and thus respects the worthy persons and administers justice. Equally, the queen or the wife of the State official should deal firmly with the wicked women and administer justice like the male judge.
Foot Notes
(सरस्वति ) विज्ञानवति। = O well-versed in the sciences. (मरुत्वती) प्रशस्तरूपयुक्ता । = Fairly handsome. (ध्रुषती) प्रगल्भा।= Bold.(शत्रून् ) अस्मांक शातकान् सुखविच्छेदकान् । = To our enemies who snatch our happiness. (तविपीयमाणम्) सेनयेवाचरन्तम् । = Acting like an army. (शण्डिकानाम् ) शत्रूणां तस्याऽवयवभूतानां मध्ये वर्त्तमानम्। = Set among the army wings of the enemy.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal