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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 35/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - अपान्नपात् छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    तमस्मे॑रा युव॒तयो॒ युवा॑नं मर्मृ॒ज्यमा॑नाः॒ परि॑ य॒न्त्यापः॑। स शु॒क्रेभिः॒ शिक्व॑भी रे॒वद॒स्मे दी॒दाया॑नि॒ध्मो घृ॒तनि॑र्णिग॒प्सु॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । अस्मे॑राः । यु॒व॒तयः॑ । युवा॑नम् । म॒र्मृ॒ज्यमा॑नाः । परि॑ । य॒न्ति॒ । आपः॑ । सः । शु॒क्रेभिः॑ । शिक्व॑ऽभिः । रे॒वत् । अ॒स्मे इति॑ । दी॒दाय॑ । अ॒नि॒ध्मः । घृ॒तऽनि॑र्निक् । अ॒प्ऽसु ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमस्मेरा युवतयो युवानं मर्मृज्यमानाः परि यन्त्यापः। स शुक्रेभिः शिक्वभी रेवदस्मे दीदायानिध्मो घृतनिर्णिगप्सु॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। अस्मेराः। युवतयः। युवानम्। मर्मृज्यमानाः। परि। यन्ति। आपः। सः। शुक्रेभिः। शिक्वऽभिः। रेवत्। अस्मे इति। दीदाय। अनिध्मः। घृतऽनिर्निक्। अप्ऽसु॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 35; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विवाहविषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यथाऽस्मेरा मर्मृज्यमाना युवतयश्शिक्वभिः शुक्रेभिस्सह आपस्समुद्रमिव तं युवानं परियन्ति तथा सत्वमनिध्मोऽस्मे रेवद् दीदायाप्सु घृतनिर्णिक् सूर्य इवास्मान्सदुपदेशेन शोधयतु ॥४॥

    पदार्थः

    (तम्) (अस्मेराः) या अस्मानीरयन्ति ताः। अत्र पृषोदरादिना तलोपः। (युवतयः) प्राप्तयौवनाः (युवानम्) सम्प्राप्तयौवनम् (मर्मृज्यमानाः) भृशं शुद्धाः (परि) सर्वतः (यन्ति) (आपः) (सः) (शुक्रेभिः) शुद्धैरुदकैर्वीर्यैर्वा (शिक्वभिः) सेचनैः। अत्र शीकृधातोः क्वनिपि वाच्छन्दसीति आद्यचो ह्रस्वत्वम्। (रेवत्) श्रीमत् (अस्मे) अस्मान् (दीदाय) प्रकाशयेत् (अनिध्मः) अदीप्यमानः (घृतनिर्णिक्) यो घृतमुदकं नितरां नेनेक्ति पुष्णाति सः। यद्वा घृतस्य सुस्वरूपम्। निर्णिक् इति रूपनाम निघं० ३। ७। (अप्सु) जलेषु ॥४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सम्प्राप्तयौवनाः स्त्रियो ब्रह्मचर्येण कृतविद्यान् हृद्यान् पूर्णविद्यान् यूनः पतीन् संपरीक्ष्य प्राप्नुवन्ति तथा पुरुषा अप्येताः प्राप्नुवन्ति यथा सूर्यो जलं संशोध्य वृष्ट्या सर्वान्सुखयति तथा संशुद्धौ परस्परप्रीतिमन्तौ विद्वांसौ कृतविवाहौ स्त्रीपुरुषौ स्वसन्तानान् शोधयितुमर्हतः ॥४॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    अब विवाह विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (अस्मेराः) हम लोगों को प्रेरणा देनेवाली (मर्मृज्यमानाः) निरन्तर शुद्ध (युवतयः) युवति (शिक्वभिः) सेचनाओं से (शुक्रेभिः) शुद्ध जल वा वीर्यों के साथ (आपः) नदियाँ समुद्र को जैसे-वैसे (तम्) उस (युवानम्) युवा पुरुष को (परियन्ति) सब ओर से प्राप्त होतीं वैसे (सः) वह, तू (अनिध्मः) प्रकाशमान (अस्मे) हम लोगों को (रेवत्) श्रीमान् के समान (दीदाय) प्रकाशित करो वा और (अप्सु) जलों में (घृतनिर्णिक्) जल को पुष्टि देनेवाले सूर्य के समान हम लोगों को श्रेष्ठ उपदेश से शुद्ध करें ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अच्छे प्रकार युवावस्था को प्राप्त युवति स्त्री ब्रह्मचर्य से की विद्या जिन्होंने ऐसे हृदय को प्रिय पूर्ण विद्यावान् युवा पतियों को अच्छे प्रकार परीक्षा कर प्राप्त होती, वैसे पुरुष भी इनको प्राप्त हों, जैसे सूर्य जल को संशोधन कर वृष्टि से सबको सुखी करता है, वैसे अच्छे प्रकार शुद्ध परस्पर प्रीतिमान् विद्वान् विवाह किये हुये स्त्री पुरुष अपने सन्तानों को शुद्ध करने को योग्य हैं ॥४॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशा उत्तम युवावस्था प्राप्त झालेल्या स्त्रिया ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या प्राप्त करून हृदयाला प्रिय, पूर्ण विद्यावान तरुण पती परीक्षा करून निवडतात तसे पुरुषांनीही वागावे. जसा सूर्य जल संस्कारित करून वृष्टी करवितो व सर्वांना सुखी करतो तसे विद्वान, संस्कारित, परस्पर प्रीतियुक्त विवाहित स्त्री-पुरुष आपल्या संततींना संस्कारित करतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Just as young maidens in crystalline purity of body and mind and fragrant modesty anxiously yet bashfully approach the youthful man, feeding his fire and receiving the shower of life and love, so do crystalline streams of water murmuring with exciting energy approach from all round that Apam-napat, fiery energy of the essence of waters, and he, overflowing with vitalising energy, fertilises their thirst for life and creativity. May that, the eternal elan vital distilled from waters by nature, bright and blazing like flames of fire fed with ghrta in yajna, shine on by itself in the waters of life for us.

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