Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 51 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 51/ मन्त्र 11
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - यवमध्यागायत्री स्वरः - षड्जः

    यस्ते॒ अनु॑ स्व॒धामस॑त्सु॒ते नि य॑च्छ त॒न्व॑म्। स त्वा॑ ममत्तु सो॒म्यम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ते॒ । अनु॑ । स्व॒धाम् । अस॑त् । सु॒ते । नि । य॒च्छ॒ । त॒न्व॑म् । सः । त्वा॒ । म॒म॒त्तु॒ । सो॒म्यम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते अनु स्वधामसत्सुते नि यच्छ तन्वम्। स त्वा ममत्तु सोम्यम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। ते। अनु। स्वधाम्। असत्। सुते। नि। यच्छ। तन्वम्। सः। त्वा। ममत्तु। सोम्यम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 51; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे राजन् ! यस्ते सुते स्वधामन्वसत्स त्वा ममत्तु त्वं तन्वं नियच्छ सोम्यमाचर ॥११॥

    पदार्थः

    (यः) विद्वान् (ते) तव (अनु) (स्वधाम्) अन्नम् (असत्) भवेत् (सुते) (नि) (यच्छ) निगृह्णीहि (तन्वम्) शरीरम् (सः) (त्वा) त्वाम् (ममत्तु) आनन्दतु (सोम्यम्) सोमे भवम् ॥११॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यो भवदनुकूलो भूत्वा धर्मात्मा सन् प्रजा आनन्दयेत् स श्रीमत ऐश्वर्यं प्राप्नुयात्त्वं जितेन्द्रियो भूत्वा प्रजाः साधि ॥११॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे राजन् ! (यः) जो (ते) आपके (सुते) उत्पन्न सोमलता के रस में (स्वधाम्) अन्न (अनु, असत्) पीछे होवे (सः) वह (त्वा) आपको (ममत्तु) आनन्द देवे और आप (तन्वम्) शरीर को (नियच्छ) ग्रहण कीजिये (सोम्यम्) सोमलता में उत्पन्न का पान आदि आचरण कीजिये ॥११॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जो आपके अनुकूल और धर्मात्मा होकर प्रजाओं को आनन्दित करे, वह लक्ष्मीवान् से ऐश्वर्य को प्राप्त होवे और आप इन्द्रियजित् होकर प्रजाओं को सिद्ध कीजिये ॥११॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा! जो तुझ्या अनुकूल धर्मात्मा बनून प्रजेला आनंदित करतो त्याला श्रीमंताकडून ऐश्वर्य प्राप्त व्हावे व तू इंद्रियजित बनून प्रजेला संपन्न करावेस. ॥ ११ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord ruler of the world, whatever and whoever be in accord with your power and pleasure, pray control, direct, administer and order the body-polite into settled form, and may all that give you pleasure and satisfaction, lover and creator of soma peace as you are.

    Top