ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 22/ मन्त्र 11
नू ष्टु॒त इ॑न्द्र॒ नू गृ॑णा॒न इषं॑ जरि॒त्रे न॒द्यो॒३॒॑ न पी॑पेः। अका॑रि ते हरिवो॒ ब्रह्म॒ नव्यं॑ धि॒या स्या॑म र॒थ्यः॑ सदा॒साः ॥११॥
स्वर सहित पद पाठनु । स्तु॒तः । इ॒न्द्र॒ । नु । गृ॒णा॒नः । इष॑म् । ज॒रि॒त्रे । न॒द्यः॑ । न । पी॒पे॒रिति॑ पीपेः । अका॑रि । ते॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । ब्रह्म॑ । नव्य॑म् । धि॒या । स्या॒म॒ । र॒थ्यः॑ । सदा॒ऽसाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो३ न पीपेः। अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः ॥११॥
स्वर रहित पद पाठनु। स्तुतः। इन्द्र। नु। गृणानः। इषम्। जरित्रे। नद्यः। न। पीपेरिति पीपेः। अकारि। ते। हरिऽवः। ब्रह्म। नव्यम्। धिया। स्याम। रथ्यः। सदाऽसाः ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 22; मन्त्र » 11
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे हरिव इन्द्र ! यतस्त्वं स्तुतस्सञ्जरित्र इषं दत्वा नद्यो न नु पीपेः। यतस्त्वमस्माभिर्गृणानो न्वकारि ते तुभ्यं नव्यं ब्रह्म दीयेत तस्माद् रथ्यः सदासा वयं धिया तव सखायः स्याम ॥११॥
पदार्थः
(नु) (स्तुतः) प्रशंसितः (इन्द्र) यज्ञैश्वर्य्ययुक्त (नु) (गृणानः) (इषम्) अन्नम् (जरित्रे) विदुषे (नद्यः) सरितः (न) इव (पीपेः) वर्धय (अकारि) (ते) (हरिवः) प्रशस्तविद्यार्थियुक्त (ब्रह्म) धनम् (नव्यम्) नवीनं नवीनम् (धिया) (स्याम) (रथ्यः) (सदासाः) ॥११॥
भावार्थः
हे विद्वन् ! यस्मात्त्वं सर्वेभ्यो विद्यां ददासि तस्मात्त्वया सह मैत्रीं कृत्वा तुभ्यं पुष्कलधनमन्नञ्च दत्वा सततं सत्कुर्याम ॥११॥ अत्रेन्द्रपृथिवीधारणभ्रमणविद्वदध्यापकोपदेशकगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इति द्वाविंशत्तमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (हरिवः) श्रेष्ठ विद्यार्थियों और (इन्द्र) यज्ञ के ऐश्वर्य्य से युक्त ! जिससे आप (स्तुतः) प्रशंसित हुए (जरित्रे) विद्वान् पुरुष के लिये (इषम्) अन्न को देकर (नद्यः) नदियों के (न) सदृश (नु) शीघ्र (पीपेः) वृद्धि कराओ जिससे आप हम लोगों से (गृणानः) प्रशंसा करते हुए (नु) निश्चय (अकारि) किये गये और (ते) आपके लिये (नव्यम्) नवीन-नवीन (ब्रह्म) धन दिया जाय इससे (रथ्यः) रथयुक्त (सदासाः) दासों के सहित वर्त्तमान हम लोग (धिया) बुद्धि से आपके मित्र (स्याम) होवे ॥११॥
भावार्थ
हे विद्वन् ! जिससे आप सब के लिये विद्या देते हो, इससे आपके साथ मित्रता करके आपके लिये बहुत धन और अन्न देकर निरन्तर सत्कार करें ॥११॥ इस सूक्त में इन्द्र, पृथिवी, धारण, भ्रमण, विद्वान्, अध्यापक और उपदेशक के गुण वर्णन करने से इस के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह बाइसवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
ज्ञानरूप वज्र
पदार्थ
मन्त्र की व्याख्या १९.११ पर द्रष्टव्य है । सूक्त का भाव यही है कि प्रभु हमें ज्ञानरूप चार धाराओंवाला वज्र प्राप्त कराते हैं। यह वज्र चतुर्दिक् आक्रमणों से हमारा रक्षण करता है। अगले सूक्त में भी ज्ञानधन की प्राप्ति का उल्लेख है -
विषय
प्रजा को ज्ञान और धन से सम्पन्न करे ।
भावार्थ
व्याख्या देखो सू० १९। ११॥ इत्यष्टमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १, २, ५, १० ३, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ६, ७ त्रिष्टुप् । भुरिक् पंक्तिः । ११ निचृत् पंक्तिः ॥ एकादशचं सूक्तम् ॥ निचत् त्रिष्टुप् । स्वराट् पंक्तिः ।
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वाना! ज्यावेळी तू सर्वांना विद्या देतोस त्यावेळी तुझ्याबरोबर मैत्री करून तुला पुष्कळ धन व अन्न देऊन तुझा सत्कार केला पाहिजे. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Thus faithfully praised, celebrated and worshipped in song, O lord of power and progress, Indra, bless the supplicant worshipper with food, energy and advancement like the streams that flow abundant. This homage of worship is created and offered with the best of our intention and intelligence praying that with the divine gift of latest genius we may be warriors of the chariot and obedient servants of Divinity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duty towards the preachers is elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O noble preceptor ! endowed with the wealth of Yajna (noble deeds) and having good admirable students, you give knowledge and feed your learned pupils and make them grow like the rivers. So, we admire you, and present you new wealth. Let us be friendly to you along with our attendants and with good intellect and actions, having good vehicles.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O enlightened person! as you give knowledge to all, therefore we have friendship with you and honor you by giving abundant wealth and food.
Foot Notes
(इन्द्र) यज्ञेश्वर्य्ययुक्त | = Endowed with the wealth of Yajna. (हरिवः) प्रशस्तविद्यार्थियुक्तः । हरयइति मनुष्यनाम (NG 2, 3 ) = Having good pupils.
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