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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यो दे॒वो दे॒वत॑मो॒ जाय॑मानो म॒हो वाजे॑भिर्म॒हद्भि॑श्च॒ शुष्मैः॑। दधा॑नो॒ वज्रं॑ बा॒ह्वोरु॒शन्तं॒ द्याममे॑न रेजय॒त्प्र भूम॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । दे॒वः । दे॒वऽत॑मः । जाय॑मानः । म॒हः । वाजे॑भिः । म॒हत्ऽभिः॑ । च॒ । शुष्मैः॑ । दधा॑नः । वज्र॑म् । बा॒ह्वोः । उ॒शन्त॑म् । द्याम् । अमे॑न । रे॒ज॒य॒त् । प्र । भूम॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो देवो देवतमो जायमानो महो वाजेभिर्महद्भिश्च शुष्मैः। दधानो वज्रं बाह्वोरुशन्तं द्याममेन रेजयत्प्र भूम ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। देवः। देवऽतमः। जायमानः। महः। वाजेभिः। महत्ऽभिः। च। शुष्मैः। दधानः। वज्रम्। बाह्वोः। उशन्तम्। द्याम्। अमेन। रेजयत्। प्र। भूम ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यो महद्भिर्वाजेभिश्च शुष्मैस्सह महो जायमानो देवो देवतमो राजा बाह्वोर्वज्रं दधानोऽमेन सूर्य्यो द्यां भूम च यथा प्र रेजयत् तथोशन्तं कामयमानं शत्रुं कम्पयते तमस्माकं सुखं कामयमानं वयं वृणुयाम ॥३॥

    पदार्थः

    (यः) (देवः) विद्वान् (देवतमः) विद्वत्तमः (जायमानः) उत्पद्यमानः (महः) महान् (वाजेभिः) वेगवद्भिः सैन्यैः (महद्भिः) महागुणविशिष्टैः (च) (शुष्मैः) बलैस्सह (दधानः) धरन् (वज्रम्) शस्त्राऽस्त्रम् (बाह्वोः) भुजयोः (उशन्तम्) कामयमानम् (द्याम्) प्रकाशम् (अमेन) बलेन (रेजयत्) कम्पयते (प्र) (भूम) भूमिम्। अत्र पृषोदरादिना रूपसिद्धिः ॥३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो न्याय्येन दण्डेन सूर्यः प्रकाशं भूगोलांश्च कम्पयन्निव प्रजां अधर्म्माचरणात् कम्पयति स एव पूर्णविद्यो राजवरो ज्ञायते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यः) जो (महद्भिः) बड़े गुणों से विशिष्ट (वाजेभिः) वेगयुक्त सेनाजनों और (शुष्मैः) बलों के साथ (महः) बड़ा (जायमानः) उत्पन्न होता हुआ (देवः) विद्वान् (देवतमः) अत्यन्त विद्वान् राजा (बाह्वोः) भुजाओं के बीच (वज्रम्) शस्त्र और अस्त्र को (दधानः) धारण करता हुआ (अमेन) बल से सूर्य्य (द्याम्) प्रकाश (च) और (भूम) पृथिवी को जैसे (प्र, रेजयत्) कम्पाता है, वैसे (उशन्तम्) कामना करते हुए शत्रु को कम्पाता है, उस हम लोगों के सुख की कामना करते हुए राजा को हम लोग स्वीकार करें ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो योग्य दण्ड से सूर्य्य, प्रकाश और भूगोलों को कम्पाते हुए के सदृश प्रजाओं को अधर्म्माचरण से कम्पाता है, वही पूर्ण विद्वान् राजा होता है ॥३॥

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    विषय

    देवतमः देवः [देवाधिदेव]

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो प्रभु (देव:) = प्रकाशमय हैं, (देवतमः) = सर्वाधिक प्रकाशमय हैं। जो (वाजेभिः) = अपनी गतियों द्वारा (जायमान:) = सर्वत्र प्रादुर्भूत हो रहे हैं - सभी जगह प्रभु की रचना का महत्त्व प्रकट हो रहा है। (च) = और जो प्रभु (महद्भिः शुष्मैः) = महान् बलों से (महः) = महान् व पूज्य हैं । [२] ये प्रभु (बाह्वोः) = भुजाओं में (उशन्तम्) = चमकते हुए (वज्रम्) = वज्र को (दधानः) = धारण किये हुए हैं। ये वज्रधारी प्रभु (अमेन) = बल से द्याम् द्युलोक को तथा (भूम) = इस पृथिवीलोक को (प्र रेजयत्) = अत्यन्त दीप्त करनेवाले होते हैं। ये सारा द्युलोक तथा पृथ्वीलोक प्रभु की शक्ति से ही शक्ति-सम्पन्न हो रहा है उसी से दीप्त हो रहा है 'तस्य भासा सर्वमिदं बिभाति' ।

    भावार्थ

    भावार्थ– प्रभु ही महान् देव हैं। प्रभु ही सारे ब्रह्माण्ड का शासन कर रहे हैं। वे ही सम्पूर्ण लोकों को दीप्त करनेवाले हैं।

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    विषय

    बल पराक्रम का यश ।

    भावार्थ

    (यः) जो (देवः) दानशील, सूर्य के समान तेजस्वी (देवतमः) विजिगीषुओं में सर्वश्रेष्ठ, (महद्भिः) बड़े २ (वाजेभिः) अन्नादि ऐश्वर्यों, बलों और (शुष्मैः) शत्रुशोषक सैन्यों से (महः) महान्, पूज्य, और (जायमानः) प्रसिद्ध हो वह (बाह्वोः) बाहुओं में (उशन्तं) कान्ति से चमचमाते (वज्रं) खड्ग को (दधानः) धारण करता हुआ (अमेन) बल से (द्याम्) आकाश को सूर्य के समान प्रताप से (भूम) भूमि को (रेजयत्) कंपावे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १, २, ५, १० ३, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ६, ७ त्रिष्टुप् । भुरिक् पंक्तिः । ११ निचृत् पंक्तिः ॥ एकादशचं सूक्तम् ॥ निचत् त्रिष्टुप् । स्वराट् पंक्तिः ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्यप्रकाश भूगोलाला कंपित करतो, तसे जो न्याय व दंडाने प्रजेला अधर्माचरणापासून रोखून कंपित (भयभीत) करतो, तोच पूर्ण विद्वान राजा असतो. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra is the leader who, brilliant ruler, most majestic among brilliant ones, newly rising, great, wielding the blazing thunderbolt in hands, makes the earth and skies shine with his grandeur, and, with his great forces and dynamic intelligence, makes the proud and passionate tremble and the loving and shining ones shine more brilliant.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of an Indra (king) are underlined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! let us elect that man (as king) who is desirous of our happiness, is a special person, and has become great with impetuous armies. He is not only a scholar but the best among the enlightened persons, and holds powerful arms in his arms. He shakes off the wicked enemy with his might like the sun and shakes off the firmament and the earth.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

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    Foot Notes

    (अमेन) बलेन । = With strength. (वाजेभिः ) वेगवद्भिः सैन्यै: । वाज इति बलनाम (NG 2, 9) तद् युक्तः सैन्यैः । = With impetuous armies.

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