ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 35/ मन्त्र 6
यो वः॑ सु॒नोत्य॑भिपि॒त्वे अह्नां॑ ती॒व्रं वा॑जासः॒ सव॑नं॒ मदा॑य। तस्मै॑ र॒यिमृ॑भवः॒ सर्व॑वीर॒मा त॑क्षत वृषणो मन्दसा॒नाः ॥६॥
स्वर सहित पद पाठयः । वः॒ । सु॒नोति॑ । अ॒भि॒ऽपि॒त्वे । अह्ना॑म् । ती॒व्रम् । वा॒जा॒सः॒ । सव॑नम् । मदा॑य । तस्मै॑ । र॒यिम् । ऋ॒भ॒वः॒ । सर्व॑ऽवीरम् । आ । ता॒क्ष॒त॒ । वृ॒ष॒णः॒ । म॒न्द॒सा॒नाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वः सुनोत्यभिपित्वे अह्नां तीव्रं वाजासः सवनं मदाय। तस्मै रयिमृभवः सर्ववीरमा तक्षत वृषणो मन्दसानाः ॥६॥
स्वर रहित पद पाठयः। वः। सुनोति। अभिऽपित्वे। अह्नाम्। तीव्रम्। वाजासः। सवनम्। मदाय। तस्मै। रयिम्। ऋभवः। सर्वऽवीरम्। आ। तक्षत। वृषणः। मन्दसानाः ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 35; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे वृषणो वाजास ऋभवो ! मन्दसाना यूयं यो वोऽह्नामभिपित्वे मदाय तीव्रं सवनं सुनोति तस्मै सर्ववीरं रयिमातक्षत ॥६॥
पदार्थः
(यः) (वः) युष्मभ्यम् (सुनोति) निष्पादयति (अभिपित्वे) अभीष्टप्राप्तौ (अह्नाम्) दिनानां मध्ये (तीव्रम्) तेजोमयम् (वाजासः) विज्ञानवन्तः (सवनम्) ऐश्वर्य्यम् (मदाय) नित्यानन्दाय (तस्मै) (रयिम्) श्रियम् (ऋभवः) प्राज्ञाः (सर्ववीरम्) सर्वे वीरा यस्मात्तम् (आ) (तक्षत) साध्नुत (वृषणः) बलिष्ठः (मन्दसानाः) कामयमानाः ॥६॥
भावार्थः
हे विद्वांसो ! ये युष्माकं सेवामाज्ञानुसारेण वर्त्तमानं कर्म च कुर्वन्ति तान् विदुषः सुशिक्षितान् कृत्वा समग्रैश्वर्य्यं प्रापयत ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वृषणः) बलयुक्त (वाजासः) विज्ञानवाले (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (मन्दसानाः) कामना करते हुए आप लोग (यः) जो (वः) आप लोगों के लिये (अह्नाम्) दिनों के मध्य में (अभिपित्वे) अभीष्ट की प्राप्ति होने पर (मदाय) नित्य आनन्द के लिये (तीव्रम्) तेजःस्वरूप (सवनम्) ऐश्वर्य्य को (सुनोति) उत्पन्न करता है (तस्मै) उसके लिये (सर्ववीरम्) सम्पूर्ण वीर जिससे हों उस (रयिम्) धन को (आ, तक्षत) सिद्ध करो ॥६॥
भावार्थ
हे विद्वानो ! जो आप लोगों की सेवा तथा आज्ञा के अनुसार कार्य करते हैं, उनको विद्वान् और उत्तम प्रकार शिक्षित करके सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य को प्राप्त कराइये ॥६॥
विषय
ऋभु, वृषा व मन्दसान
पदार्थ
[१] (यः) = जो प्रभु हे (वाजास:) = शक्तिशाली पुरुषो! (वः) = तुम्हारे लिए (अह्नां अभिपित्वे) = दिनों की [अभिपतने] समाप्ति के समय-जीवन की सन्ध्यावेला में भी (तीव्रं सवनम्) = इस शत्रुसंहार के लिए उग्र सोम को (मदाय) = उल्लास-प्राप्ति के लिए (सुनोति) = उत्पन्न करता है। (तस्मै) = उस प्रभु की प्राप्ति के लिए, हे (ऋभवः) = ज्ञानदीप्त (वृषण:) = शक्तिशाली (मन्दसाना:) = स्तुति करनेवाले लोगो ! (सर्ववीरं रयिम्) = सब वीरताओं के देनेवाले धन को (आनक्षत) = सर्वथा सम्पादित करो। [२] हम ऋभु [ज्ञानदीप्त] वृषा [शक्तिशाली] व मन्दसान [स्तुति करनेवाले] बनें। प्रभु हमारे लिए जिस सोम का सम्पादन करते हैं, उसका हम रक्षण करें। वीरता से युक्त धन का सम्पादन करें। यही प्रभुप्राप्ति का मार्ग है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु को प्राप्त करने के लिए हम ऋभु 'ज्ञानदीप्त' बनें। शक्ति का सम्पादन करें [वृषा] तथा स्तुति की वृत्तिवाले हों [मन्दसान] ।
विषय
कृत्रिम अश्वादि यन्त्र निर्माण ।
भावार्थ
हे (ऋभवः) सत्य ज्ञान के प्रकाशक, हे (वृषणः) बलवान् सुखों के वर्षक, हे (वाजासः) बलवान् ज्ञानवान् पुरुषो ! हे (मन्दसानाः) हर्षानन्द लाभ के इच्छुक जनो ! (यः) जो (अह्नाम् अभि-पित्वे) दिनों के अवसान में (वः) आप लोगों के लिये (तीव्रं) अति उत्तम, सर्वातिशायी, (सवनं) ऐश्वर्य (मदाय) आनन्द हर्ष लाभ के लिये (सुनोति) उत्पन्न करता है (तस्मै) उसकी वृद्धि के लिये आप लोग भी (सर्व-वीरम्) समस्त प्रकार के वीरों, पुत्रों और प्राणों से युक्त (रयिम्) ऐश्वर्य को (आ तक्षत) उत्पन्न करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्द:– १, २, ४, ६, ७, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५ स्वराट् पंक्तिः॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वानांनो! जे तुमची सेवा करतात व आज्ञेनुसार कार्य करतात त्यांना विद्वान व उत्तम प्रकारे शिक्षित करून संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करवून द्या. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Whoever for you distils at the end of the day the exciting soma juice of the beauty and joy of life for the celebration of the holiness of existence, for him, O Rbhus, thinkers and wonder workers of the speed of winds, generous as showers from the clouds, spirits of ecstasy, create and give the wealth of an all round brave progeny for times to come.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of attributes of the enlightened is highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O mighty and highly learned wisemen ! desirous of welfare of all, you confer upon him riches wealth that makes men brave (by giving military training). These brave men pour out at day time and give abiding delight and splendid wealth for the fulfilment of noble desires.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O learned men! it is your duty to train well those persons who serve you and act in compliance to your commands and lead them to prosperity.
Foot Notes
(मन्दसाना:) कामयमानाः । मन्दसाना:- मदि स्तुति- मोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु (म्वा० ) कान्तिः कामना । = Desirous of the welfare of all. (अभिपित्वे) अभीष्टप्राप्तौ । अभिपित्वम्-अभिप्राप्तिरिति (NKT 3, 3, 15) = For the fulfilment of noble duties. (सवनम् ) ऐश्वर्य्यम् । षु प्रसंवैर्श्ययोः । = Wealth.
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