ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 51/ मन्त्र 10
र॒यिं दि॑वो दुहितरो विभा॒तीः प्र॒जाव॑न्तं यच्छता॒स्मासु॑ देवीः। स्यो॒नादा वः॑ प्रति॒बुध्य॑मानाः सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठर॒यिम् । दि॒वः॒ । दु॒हि॒त॒रः॒ । वि॒ऽभा॒तीः । प्र॒जाऽव॑न्तम् । य॒च्छ॒त॒ । अ॒स्मासु॑ । दे॒वीः॒ । स्यो॒नात् । आ । वः॒ । प्र॒ति॒ऽबुध्य॑मानाः । सु॒ऽवीर्य॑स्य । पत॑यः । स्या॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
रयिं दिवो दुहितरो विभातीः प्रजावन्तं यच्छतास्मासु देवीः। स्योनादा वः प्रतिबुध्यमानाः सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठरयिम्। दिवः। दुहितरः। विऽभातीः। प्रजाऽवन्तम्। यच्छत। अस्मासु। देवीः। स्योनात्। आ। वः। प्रतिऽबुध्यमानाः। सुऽवीर्यस्य। पतयः। स्याम ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 51; मन्त्र » 10
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्रिमेण स्वयंवर उच्यते ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यथा दिवो विभातीर्दुहितरः किरणाः प्रकाशं ददति। हे देवीर्देव्यस्तथास्मासु स्योनात् प्रजावन्तं रयिमायच्छत वः प्रतिबुध्यमाना वयं सुवीर्य्यस्य पतयः स्याम ॥१०॥
पदार्थः
(रयिम्) धनम् (दिवः) सूर्य्यस्य (दुहितरः) कन्या इव किरणाः (विभातीः) प्रकाशयन्त्यः (प्रजावन्तम्) बह्व्यः प्रजा विद्यन्ते यस्य तम् (यच्छत) गृह्णीत (अस्मासु) (देवीः) विदुष्यः (स्योनात्) सुखात् (आ) (वः) युष्मान् (प्रतिबुध्यमानाः) (सुवीर्य्यस्य) सुष्ठु पराक्रमयुक्तस्य सैन्यस्य (पतयः) (स्याम) ॥१०॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। याः कन्याः प्रभातवेलावत्सुशोभिताः सुखं जनयन्ति ताभिः सह स्वयंवरेण विवाहेनैव मनुष्याः श्रीमन्तो जायन्ते ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
अब अगले मन्त्र से स्वयंवर विवाह कहा है ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे (दिवः) सूर्य्य की (विभातीः) प्रकाश करती हुई (दुहितरः) कन्याओं के सदृश वर्त्तमान किरणें प्रकाश को देती हैं, हे (देवीः) विदुषियों ! वैसे (अस्मासु) हम लोगों में (स्योनात्) सुख से (प्रजावन्तम्) बहुत प्रजायुक्त (रयिम्) धन को (आ, यच्छत) ग्रहण करो (वः) तुम को (प्रतिबुध्यमानाः) प्रतिबोध कराते हुए हम लोग (सुवीर्यस्य) उत्तम पराक्रम युक्त सेना के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥१०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो कन्या प्रभात वेला के सदृश उत्तम प्रकार शोभित सुख को उत्पन्न करती हैं, उनके साथ स्वयंवर विवाह से ही मनुष्य श्रीमान् होते हैं ॥१०॥
विषय
उत्तम सन्तान, धन व सुवीर्य
पदार्थ
[१] (दिवः दुहितरः) = प्रकाश का हमारे जीवनों में प्रपूरण करनेवाली (विभाती:) = चमकती हुई (देवी:) = दिव्यगुणों को जन्म देनेवाली उषाओ! (अस्मासु!) = हमारे में (प्रजावन्तम्) = प्रकृष्ट सन्तानोंवाले (रयिम्) = धन को यच्छत प्राप्त कराओ। उषाकाल में जागरित होकर अपने कर्त्तव्यों में लगते हुए हम उत्तम सन्तानों व धनों को प्राप्त करें। [२] (वः) = आपसे जानेवाले (स्योनाद्) = सुख (आप्रतिबुध्यमानाः) = सदा जागरित होते हुए हम (सुवीर्यस्य) = उत्तम शक्ति के (पतयः) = स्वामी (स्याम) = हों। यह उषाकाल का जागरण हमें शक्तिशाली बनाए ।
भावार्थ
भावार्थ- हम उषाकाल में प्रबुद्ध होकर अपने कर्तव्यकर्मों में तत्पर हों। इससे हमें उत्तम सन्तान, धन व सुवीर्य प्राप्त होगा।
विषय
उषावत् उनका वर्णन । पक्षान्तर में अध्यात्म वर्णन ।
भावार्थ
(दिवः दुहितरः विभातीः देवीः रयिं यच्छन्ति) प्रकाश को देने वाली वा सूर्य की कन्याओं के तुल्य उषाएं प्रकाश प्रदान करती हैं। उसी प्रकार हे (दिवः दुहितरः) कामनाओं को पूर्ण करने वाली (विभातीः) विशेष कान्ति से युक्त हे (देवीः) उत्तम स्त्रियो ! आप (अस्मासु) हमें (प्रजावन्तम्) प्रजा, पुत्रादि से युक्त (रयिम्) ऐश्वर्य (यच्छत) प्रदान करो । (स्योनात्) सुख युक्त गृह से (वः) आप लोगों को अपना अभिप्राय (प्रतिबुध्यमानाः) भली प्रकार जान व जना कर वा उत्तम रीति से शिक्षित करके ही हम लोग (सुवीर्यस्य) उत्तम वीर्य और बल के (पतयः) बालक (स्याम) हों। (२) वेदवाणियां ज्ञान प्रदान करने से ‘दिवः दुहिता’ हैं । अर्थ प्रकाशक होने से ‘देवी’ हैं । वे (स्योनात्) आनन्दमय प्रभु से प्राप्त होकर हमें प्रत्येक पदार्थ का ज्ञान करावें और हम (सुवीर्यस्य पतयः) उत्तम वीर्य के पालक, ब्रह्मचारी हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः–१, ५, ८ त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। २ पंक्तिः। १० भुरिक् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या कन्या उषेप्रमाणे सुशोभित असतात व सुख उत्पन्न करतात त्यांच्याबरोबर स्वयंवर विवाह केल्याने माणसे श्रीमंत होतात. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
0 daughters of the light of heaven, angelic damsels of divinity, bear and bless us with the wealth of progeny so that, illuminative as you are, edified into a state of wakefulness and enlightenment through the peace and bliss of your love and beauty, we, awake and enlightened, may command a blessed force of warlike heroes.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The system of Svayamvara (selection of husband/wife by mutual choice) is mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned ladies ! as the divine, resplendent daughters of the sun in the form of the rays give light, in the same manner, bestow upon us happiness and wealth comprehending good progeny, so that the people awaken or enlighten you for your benefit. May we become the lords of mighty army, consisting of that progeny.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is by marrying by Svayamvara system (self or mutual selection) that these girls who are resplendent or bright like the dawn, generate happiness. Thus the men may become prosperous.
Foot Notes
(सुवीर्य्यस्य) सुष्ठुपराक्रमयुक्तस्य सैन्यस्य | = Of a very powerful army. (स्योनात् ) सुखात् । स्योनमिति सुखनाम (NG 3, 6)। = With happiness. (दुहितरः ) कन्या इव किरणा: । (दिवः) द्योतमानस्य सूर्यस्य । दिवुधातोर्दयुत्यर्थ मादाय व्याख्या । = Rays which are like the daughters of the sun.
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