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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 51/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - उषाः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒च्छन्ती॑र॒द्य चि॑तयन्त भो॒जान्रा॑धो॒देया॑यो॒षसो॑ म॒घोनीः॑। अ॒चि॒त्रे अ॒न्तः प॒णयः॑ सस॒न्त्वबु॑ध्यमाना॒स्तम॑सो॒ विम॑ध्ये ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒च्छन्तीः॑ । अ॒द्य । चि॒त॒य॒न्त॒ । भो॒जान् । रा॒धः॒ऽदेया॑य । उ॒षसः॑ । म॒घोनीः॑ । अ॒चि॒त्रे । अ॒न्तरिति॑ । प॒णयः॑ । स॒स॒न्तु॒ । अबु॑ध्यमानाः । तम॑सः । विऽम॑ध्ये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उच्छन्तीरद्य चितयन्त भोजान्राधोदेयायोषसो मघोनीः। अचित्रे अन्तः पणयः ससन्त्वबुध्यमानास्तमसो विमध्ये ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उच्छन्तीः। अद्य। चितयन्त। भोजान्। राधःऽदेयाय। उषसः। मघोनीः। अचित्रे। अन्तरिति। पणयः। ससन्तु। अबुध्यमानाः। तमसः। विऽमध्ये ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 51; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! या तमसोऽचित्रे विमध्य उषस इव मघोनीरुच्छन्तीरन्तोऽबुध्यमानाः पणयः स्त्रियः सुखेन ससन्तु राधोदेयाय भोजानद्य चितयन्त ता सङ्ग्रहीतव्याः ॥३॥

    पदार्थः

    (उच्छन्तीः) सुवासयन्त्यः (अद्य) (चितयन्त) विज्ञापयन्ति (भोजान्) पालकान् पतीन् (राधोदेयाय) धनं दातुं योग्याय व्यवहाराय (उषसः) प्रातर्वेला इव (मघोनीः) सत्कृतधनानां स्त्रियः (अचित्रे) अनाश्चर्ये (अन्तः) मध्ये (पणयः) प्रशंसनीयाः (ससन्तु) शयीरन् (अबुध्यमानाः) बोधरहिताः (तमसः) रात्रेः (विमध्ये) विशेषान्धकारे ॥३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे पुरुषा ! याः कन्याः स्वसदृश्यो विदुष्यः शुभगुणकर्मस्वभावाः स्युस्ता एव भार्य्यत्वायाङ्गीकार्याः ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जो (तमसः) रात्रि के (अचित्रे) नहीं आश्चर्य जिसमें ऐसे (विमध्ये) विशेष अन्धकार में (उषसः) प्रातर्वेलाओं के सदृश (मघोनीः) सत्कार किया धन का जिन्होंने उनकी स्त्रियाँ (उच्छन्तीः) और उत्तम प्रकार वास देती हुई (अन्तः) मध्य में (अबुध्यमानाः) बोधरहित (पणयः) प्रशंसा करने योग्य स्त्रियाँ (ससन्तु) सुख से सोवें और (राधोदेयाय) धन देने योग्य व्यवहार के लिये (भोजान्) पालन करनेवाले पतियों को (अद्य) आज (चितयन्त) जनाती हैं, वे अच्छे प्रकार ग्रहण करनी चाहिये ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे पुरुषो ! जो कन्या अपने सदृश विदुषी और शुभ गुण, कर्म, स्वभाववाली होवें, वे ही स्त्री होने के लिये स्वीकार करने योग्य हैं ॥३॥

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    विषय

    भोज व पणि

    पदार्थ

    [१] (मघोनी: उषस:) = ऐश्वर्यवाली उषाएँ (अद्य) = आज (उच्छन्ती:) = अन्धकार को दूर करती हुईं (भोजान्) = औरों का पालन करनेवाले लोगों को (राधो देयाय) = कार्यसाधक धनों को देने के लिए (चितयन्त) = प्रज्ञानयुक्त करती हैं। इन उषाओं में ये 'भोज' जागते हैं और धन का दान करनेवाले इनके लिये उषाएँ सचमुच 'मघोनी' होती हैं- ऐश्वर्योंवाली होती हैं । [२] इन भोजों के विपरीत (पणयः) = वणिक्वृत्तिवाले कृपण लोग (अचित्रे) = अचायनीय [अप्रशंसनीय] (तमसः विमध्ये) = अन्धकार के मध्य में, (अन्तः) = इस अन्धकार के अन्दर, (अबुध्यमाना:) = जागृति को न प्राप्त करते हुए (ससन्तु) = सोये रह जाएँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- उषाकालों में प्रबुद्ध होकर दान की वृत्तिवाले 'भोज' हम बनें। पणि बनकर कृपण बनकर सोये ही न रह जाएँ ।

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    विषय

    उषावत् उनका वर्णन । पक्षान्तर में अध्यात्म वर्णन ।

    भावार्थ

    (पणयः) स्तुतिकर्त्ता लोग जो (अबुध्यमानाः) स्वयं स्तुति पाठ का ज्ञान नहीं करते हैं वे जिस प्रकार (तमसः अचित्रे वि मध्ये) ज्ञानरहित अन्धकार के बीच में (ससन्तु) सोते हैं, मग्न रहते हैं उसी प्रकार (पणयः) स्तुत्य स्त्रियां और व्यवहारवान् गृहस्थ जन भी (अबुध्यमानाः) रात्रि काल में न जागती हुई (तमसः) अन्धकार के (अचित्रे मध्ये) चेतना रहित गाढ़ निद्रा के बीच (ससन्तु) सोते हैं जिस प्रकार (उषसः) प्रातः वेलाएं (उच्छन्तीः) प्रकट होती हुई (भोजान् चितयन्त) भोक्ता प्राणियों को जगाती हैं उसी प्रकार (उषसः-मघोनीः) कान्तियुक्त श्रीसम्पन्न स्त्रियां वा समृद्ध प्रजाएं भी (उच्छन्तीः) विशेष रूप से गुणों को प्रकट करती हुई (राधो-देयाय) धनों के दान के लिये (भोजान्) अपने पालक पतियों रक्षक वा राजाओं को (चितयन्त) सदा सचेत करती रहें । उनको ऐश्वर्य दान के लिये चेताती रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः–१, ५, ८ त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। २ पंक्तिः। १० भुरिक् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे पुरुषांनो ! ज्या स्त्रिया तुमच्यासारख्याच विदुषी व शुभ गुण, कर्म, स्वभावयुक्त असतील तर त्याच पत्नी या नात्याने स्वीकारण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Brilliant and blissful magnificent lights of the dawn now in the early hours of the morning wake up and inspire liberal yajakas for the gifts of charity and performance of the morning yajna, while deep down in the folds of impenetrable darkness the slothful misers sleep on, unconscious, unaware and lost in the state of ignorance.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of people's duties is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! you should choose for marriage those praiseworthy girls (one gild for one man), who are like the dawns, sleep soundly at mid-night, are daughters of those who possess admirable wealth, make homes happy and give good advice to their husbands regarding the wealth to be given in charity and other matters.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! you should accept as wives only those girls who are learned like you and are endowed with good merits, actions and temperament.

    Foot Notes

    (ऊच्छन्ती:) सुवासयन्त्यः । उच्छि विवासे । विवासो विनाशः संप्तिरित्यर्थः, इति क्षीरतारङ्गिण्यां क्षीरस्वामी विरचितायाम्। दुःखस्य विनाशः सुखस्य स्थापनम् । = Causing to live happily. (भोजान् ) पालकान्पतीन् । = Husbands who maintain well. (पण्य:) प्रशसनीया: = Admirable, praiseworthy.

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