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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 51/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क्व॑ स्विदासां कत॒मा पु॑रा॒णी यया॑ वि॒धाना॑ विद॒धुर्ऋ॑भू॒णाम्। शुभं॒ यच्छु॒भ्रा उ॒षस॒श्चर॑न्ति॒ न वि ज्ञा॑यन्ते स॒दृशी॑रजु॒र्याः ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्व॑ । स्वित् । आ॒सा॒म् । क॒त॒मा । पु॒रा॒णी । यया॑ । वि॒ऽधाना॑ । वि॒ऽद॒धुः । ऋ॒भू॒णाम् । शुभ॑म् । यत् । शु॒भ्राः । उ॒षसः॑ । चर॑न्ति । न । वि । ज्ञा॒य॒न्ते॒ । स॒ऽदृशीः॑ । अ॒जु॒र्याः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्व स्विदासां कतमा पुराणी यया विधाना विदधुर्ऋभूणाम्। शुभं यच्छुभ्रा उषसश्चरन्ति न वि ज्ञायन्ते सदृशीरजुर्याः ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्व। स्वित्। आसाम्। कतमा। पुराणी। यया। विऽधाना। विऽदधुः। ऋभूणाम्। शुभम्। यत्। शुभ्राः। उषसः। चरन्ति। न। वि। ज्ञायन्ते। सऽदृशीः। अजुर्याः ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 51; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यद्या शुभ्राः सदृशीरजुर्या उषसः शुभं चरन्त्यासां कतमा पुराणी क्व विधाना ययर्भूणां स्विद् किं विदधुरेवं न वि ज्ञायन्ते इत्थंभूताः स्त्रियो वरा विजानीत ॥६॥

    पदार्थः

    (क्व) कस्मिन् (स्वित्) प्रश्ने (आसाम्) (कतमा) (पुराणी) पुरातनी (यया) (विधाना) (विदधुः) विदध्यासुः (ऋभूणाम्) धीमताम् (शुभम्) कल्याणम् (यत्) याः (शुभ्राः) भास्वराः (उषसः) प्रातर्वेलाः (चरन्ति) गच्छन्ति (न) निषेधे (वि) (ज्ञायन्ते) (सदृशीः) समानाः (अजुर्याः) अजीर्णाः ॥६॥

    भावार्थः

    यथा सर्वाः प्रातर्वेलाः सदृश्यः सन्ति तथैव पतिभिः सदृशा भार्याः प्रशंसनीया भवन्ति ताः सदैव युवावस्थायां यूनः प्राप्यानन्दन्तु नैव विज्ञायते का नवीना का प्राचीनोषा वर्त्तते तद्वत्कृतब्रह्मचर्याः कन्या भवन्ति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यत्) जो (शुभ्राः) चमकीली (सदृशीः) तुल्य (अजुर्याः) नहीं जीर्ण अर्थात् नवीन (उषसः) प्रातर्वेलायें (शुभम्) कल्याण को (चरन्ति) प्राप्त होती हैं (आसाम्) इनके मध्य में (कतमा) कौन सी (पुराणी) पुरानी (क्व) किस में (विधाना) करती (यया) जिससे (ऋभूणाम्) बुद्धिमानों का (स्वित्) क्या (विदधुः) विधान करें ऐसा (न) नहीं (वि, ज्ञायन्ते) जाना जाता है, इस प्रकार की स्त्रियों को श्रेष्ठ जानें ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे सम्पूर्ण प्रातर्वेला तुल्य होती हैं, वैसे ही पतियों के साथ सदृश स्त्रियाँ प्रशंसा करने योग्य होती हैं, वह सदा ही युवावस्था में युवा पुरुषों को प्राप्त होकर आनन्दित हों, नहीं जाना जाता है कि कौन नवीन कौन प्राचीन प्रातर्वेला होती है, वैसे ब्रह्मचर्य्य से युक्त कन्या होती हैं ॥६॥

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    विषय

    प्रारम्भ, मध्य व अन्त की उषाएँ -

    पदार्थ

    [१] (आसाम्) = इन उषाओं में (कतमा) = अत्यन्त आनन्द को देनेवाली वह (पुराणी) = पुराकाल में होनेवाली उषा (क्व स्वित्) = भला अब कहाँ है । (यया) = जिस उषा से (ऋभूणाम्) = [ उरु भान्ति ] ज्ञानदीप्त पुरुषों के (विधाना) = कार्यों को चार भागों में बटे वेदज्ञान प्राप्ति रूप कार्य को (विदधुः) = करते थे। वह जीवन यज्ञ के प्रातः सवन [प्रथम चौबीस वर्षों की] की उषाएँ अब कहाँ हैं? उन उषाओं में तो हम ऋभुओं के कार्यों को करने में ही तत्पर थे- ज्ञानप्राप्ति मात्र ही हमारा कार्य था। कितना आनन्द था उन उषाकालों में। [२] (यत्) = जो (शुभ्राः) = दीप्त (उषस:) = उषाएँ (शुभम्) = यज्ञादि शुभ कार्यों को करती थीं, माध्यन्दिनसवन की [पच्चीस से अड़सठ वर्ष तक की] उषाएँ भी अब कहाँ है ? जिस समय गृहस्थ में सदा प्रातः प्रबुद्ध होकर हम पञ्चयज्ञों में प्रवृत्त हुआ करते थे, वे उषाएँ भी जा चुकीं । [३] अब इस सायन्तनसवन में भी [ उनहत्तर से एक सौ सोलह वर्ष तक] ये उषाएँ उसी प्रकार चल रही हैं। पहली उषाओं से भिन्न रूप में (न विज्ञायन्ते) = ये नहीं जानी जातीं । (सदृशी:) = ये उसी प्रकार से चल रही हैं, उन पुराणी उषाओं से भिन्न नहीं प्रतीत होती । (अजुर्या:) = ये जीर्ण हो गयी प्रतीत नहीं होतीं। हम जीर्ण होने से पहली सुन्दर उषाओं को निःसन्देह स्मरण करें। परन्तु उषाएँ तो एकरूप से चलती चलती रहती हैं, इनमें पुराणपन नहीं आ जाता, ये अजुर्य हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जीवन के प्रारम्भ में हम ऋभु बनकर ज्ञानदीप्ति की प्राप्ति में लगे थे। मध्य में शुभ यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त रहें। अब अन्त में भी ये उषाएँ हमारे लिए उसी प्रकार अक्षीणतावाली बनी रहें ।

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    विषय

    उषावत् उनका वर्णन । पक्षान्तर में अध्यात्म वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (शुभ्राः उषसः शुभं चरन्ति) दीप्तिमती प्रभात वेलाएं दीप्ति युक्त उज्वल प्रकाश करती हैं, वे सब (सदृशीः सत्यः अजुर्याः) एक समान रहकर पुरानी नहीं मालूम होतीं और (आसां कतमा पुराणी) उन उषाओं के बीच में कौन सी पुरानी है और (क्व-स्वित्) वह वेला कहां रहती है ? (यया) जिसमें (ऋभवः) प्रकाश से दीप्त किरणें अपने (विधाना विदधुः) नाना प्रकाश, ताप आदि कर्म करते हैं उसी प्रकार (यत्) जो (शुभ्राः) दीप्तियुक्त, आभूषण एवं लावण्य, तेज आदि से उज्ज्वल, (उषसः) कान्तिमती उत्तम कन्याएं (अजुर्याः) वयस और सबल वीर्य की हानि न करती हुई, ब्रह्मचारिणी रहकर (सदृशीः) बल वीर्य में अपने पतियों के तुल्य रहकर (शुभं) शुभ, विवाहादि शोभा युक्त कार्य करती हैं । वे (न विज्ञायन्ते) विपरीति नहीं जानी जातीं। (आसां पुराणी कतमा) उनमें से कौन श्रेष्ठ वा आयु में बड़ी (यया) जिसके साथ विद्वान जन् (ऋभूणां) विद्वानों के बनाये (विधाना विदधुः) यज्ञादि अनेक अनुष्ठानों को (क्वस्विद्) किस २ दशा में और कहां २ (विदधुः) करते हैं। अर्थात् ब्रह्मचारिणी स्त्रियें सदृश पति को प्राप्त होकर बलवती, दीर्घायु सर्वत्र साथ देने वाली हो। (२) वेदवाणियां भी ज्ञानमय होने से शुभ्र हैं, वे उत्तम ज्ञान देती हैं । पुरातन हैं । जिससे विद्वान् यज्ञादि अनुष्ठान नाना स्थानों पर करते रहते हैं । सब से पुरानी कौन २ यह नहीं जाना जासकता । सब सदृश हैं, वे रूप से ‘अजुर्या’ नित्य हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः–१, ५, ८ त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। २ पंक्तिः। १० भुरिक् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी प्रत्येक उषा तुलना करण्यायोग्य असते तशा पतीबरोबर त्यांच्यासारख्या भार्या प्रशंसनीय असतात. त्या सदैव युवावस्था प्राप्त करून युवा पुरुषांबरोबर आनंदित राहाव्यात. कोणती उषा नवीन व कोणती प्राचीन हे कळून येत नाही. तशाच ब्रह्मचर्ययुक्त (तेजस्वी) कन्या असतात. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Where and which of these dawns is that ancient one by which the wonder works of the Rbhus, miraculous artists and experts, were accomplished? Which one of these glorious dawns that go about so blissfully, all alike and unaging? No, not known.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of men and women are described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! as the bright dawns happily proceed, they are not distinguished being similar and undecaying. Which of them is old? By which the rites of the geniuses are accomplished and which are new? It very difficult to say, such women who are bright or splendid on account of their virtues are very good.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As all dawns are alike, so the wivesd who are like their husbands in virtues are admirable. They should marry young men when in youth, and be even happy and full of bliss. As it is not known which dawn is old and which one is new, such is the position of those girls who have observed Brahmacharya for a long time. They remain young and energetic for a very long time.

    Foot Notes

    (ऋभूषाम् ) क्षीमताम् । ऋभूरिति मेधा विनाम (NG 3, 15)। = Of the wise. (अजुर्याः) अजीर्णाः । न+जु-वयोहानी (चु०) । = Undecaying.

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